‘घर वाले मानेंगे या नहीं, पापा तो बिल्कुल नहीं, मान भी गए तो उसके घरवालों ने साफ कह दिया ‘लव-मैरिज’ बिल्कुल नहीं.’ जब भी कोई लव मैरिज करने के बारे में सोचता तो ये बातें सबसे पहले दिमाग में आती हैं और ये कोई 21वीं सदी में ही नहीं है. ऐसा पहले भी होता रहा है, और आगे भी होता रहेगा. इस बीच वैलेंटाइन डे से पहले खबर आती है कि बिहार के गया में एक प्रेमी जोड़े को अपनी प्यार की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी. इससे थोड़ा पहले चले जाएं तो नीतीश कटारा हत्याकांड भी है और पीछे ही जाना है तो क्यों न करीब 250 साल पहले वारिस शाह के हीर-रांझा के पास ही चले जाएं. जहां इन्हें भी अपने प्यार की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी थी.
वैलेंटाइन डे पर सारी दुनिया में जहां प्यार और मोहब्बत की बात हो रही है. वहीं दूसरी तरफ समाज का एक आइना ये भी है कि मोहब्बत करनी तो जाति, धर्म देखकर करो. नहीं करोगे तो वही हश्र होगा जो इससे पहले भी प्यार करने वालों का होता रहा है. प्यार में पहली लड़ाई ही समाज के साथ होती है. अगर हम कहे ऐसा सिर्फ बिहार, यूपी या हरियाणा में ही होता है, तो ये ठीक नहीं होगा. राजधानी दिल्ली भी इस बात की गवाह रही है कि जब भी किसी ने धर्म और जाति से परे जाकर विवाह करने की कोशिश की तो समाज या परिवार ने उसमें कुछ ऐसा ही एक्शन लिया. दिल्ली के ख्याला में तो अंकित सक्सेना की हत्या लड़की के परिवारवालों ने कर दी क्योंकि उसने जिस लड़की से प्यार किया था वो किसी दूसरे धर्म की थी. मतलब आपका प्यार, प्यार न हुआ समाज और परिवार की दीवारों पर टिकी हुई छत हो गई. अगर समाज ने आपके प्यार को स्वीकार किया तो ठीक नहीं किया तो समझो गए...
समाज/परिवार का ये रवैया, किस्से या कहानी कोई नई नहीं है. ऐसा पहले भी हुआ है. वारिस शाह के हीर-रांझा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. बॉलीवुड के गानों से लेकर तमाम जगहों पर आपने ये नाम तो सुना होगा और अगर आप पंजाब प्रांत के रहने वाले हैं तो फिर तो कोई बात ही नहीं है. क्योंकि इनके किस्से तो वहां हर गली-मोहल्ले में सुनाए जाते हैं. तो चलिए पहले वारिस शाह के हीर-रांझा के बारे में ही जान लेते हैं-
हीर-रांझा
1766 में वारिस शाह ने हीर-रांझे की कहानी लिखी थी. जिसे बाद में कहा गया कि यह खुद उनकी कहानी थी. कुछ इतिहासकारों ने इस पर कहा कि वारिश शाह को मनदीप नाम की लड़की से प्यार हो गया था. जिसके बाद उन्होंने लोगों को हीर-रांझे से मिलवाया. हीर पंजाब के झंग में पैदा हुई थी और वह बहुत खूबसूरत थी. वहीं रांझे का जन्म चेनाब नदी के पास तख्त हजारा गांव में हुआ था. वह अपने चारों भाईयों में सबसे छोटा था. रांझे का भाई खेतों में रात-दिन मेहनत करता था, लेकिन रांझा इससे अलग वंझली (बांसुरी) बजाया करता था. अपने भाई से जमीन पर झगड़ा होने के बाद रांझा ने अपना घर छोड़ दिया था. जिसके बाद वह दूसरे गांव में चला गया था और ये गांव था हीर का. यहां उसकी मुलाकात हीर से हुई और हीर को देखते ही रांझा को उससे प्यार हो गया. हीर के पिता ने रांझा को पशु चराने का काम दे दिया.
रांझा जब भी वंझली बजाता था तो हीर झूम उठती थी. इसके बाद दोनों चोरी छिपे एक दूसरे से मिलने लगे. हीरे के अंकल (चाचा) को इसकी खबर लगी तो उन्होंने हीर की शादी साइदा खैरा नामक व्यक्ति से करने का फैसला किया. हीर अपने गांव से चली जाती है और रांझा पूरे देश के ग्रामीण इलाकों में हीर को ढूंढता रहता है. इस बीच वह गोरखनाथ से मिलता है और उनसे मिलने के बाद रांझा जोगी बन जाता है. रांझा पंजाब के गांव में घूमता है और एक दिन वह उस गांव में पहुंच जाता है जहां हीर की शादी हुई होती है. हीर के चाचा को इसकी खबर लगती है तो वह गुस्से में हीर को जहर दे देते हैं. रांझा को जब इसकी खबर लगती है तो वह हीर के घर की तरफ भागता, लेकिन तबतक बहुत देर हो जाती है. हीर को जिस मिठाई (लड्डू) में मिलाकर जहर दिया गया था, उसी बची हुई मिठाई को खाकर रांझा भी मर जाता है.
ये तो एक उदाहरण है इसमें आपको कई और भी उदाहरण मिल जाएंगे. जिसमें चाहे रोमियो-जूलियट हों या चाहे शीरी-फराद हों. इसके अलावा हाल ही में तो सब आपके सामने ही है. वैलेंटाइन डे की चमक आपको बड़े शहरों में तो देखने को मिल जाएगी, लेकिन एक मानसिकता अभी भी ऐसी है जिसके लिए प्यार और मोहब्बत जैसी कोई चीज नहीं होती अगर इस नाम का कुछ होता है तो वो सिर्फ जुर्म. इसमें या तो परिवार और समाज आपके प्यार को स्वीकार कर ले नहीं तो उदाहरण आपके सामने ही हैं. मतलब सीधा सा फंडा आपका प्यार आपके हाथ में नहीं समाज के हाथ में है. इसके लिए एक शब्द भी है- ऑनर किलिंग. एक नहीं हर वैलेंटाइन डे पर हमारी यही मांग रहेगी कि कोई भी प्रेम कहानी ऑनर किलिंग का शिकार नहीं हो.
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