दुनिया में अब तक चींटियों की 13 हजार से ज्यादा नस्लें खोजी जा चुकी है. हम इंसान किस्मत वाले हैं कि ये इतनी छोटी होती हैं. अगर कहीं ये चींटियां बिल्लियों के बराबर की होतीं, तो ये ब्रह्मांड पर राज कर रही होतीं. उन्होंने मंगल ग्रह तक पहुंचने का तरीका खोज निकाला होता. तब, चींटियों ने चांद पर कब्जा कर लिया होता और हर तरह की गणितीय या गुरुत्वाकर्षण के फॉर्मूले को सुलझा लिया होता. अगर चींटियां बड़े आकार की होतीं, तो वो बिना धातुओं का इस्तेमाल किए हथियार बना चुकी होतीं. वो समंदर के पार जाकर दुनिया के तमाम जीवों का खात्मा कर चुकी होतीं.
चींटियां अभी जितनी बड़ी हैं, अगर उसके मुकाबले बड़ी होतीं, तो वो दूसरे जीवों से लगातार जंग लड़ रही होतीं. फिर भी इस जंग से न जमीन तबाह होती. न पानी गंदा होता और न ही हवा खराब होती.
मुझे चींटियों से बेहद प्यार है. वो इंसानों सरीखी हैं. आकार में छोटी हैं. लेकिन उनमें हमारी बुरी आदतें नहीं हैं. पर, चींटियां बड़ी सफाई से और सजगता से काम करती हैं. कोई चीज बर्बाद नहीं करतीं.
मैं चींटियों की तारीफ में लगातार कसीदे पढ़ सकती हूं. इसकी वजह ये है कि मैं रोज़ उनके बारे में कोई न कोई नई बात जानती हूं.
इंसानों और चींटियों में बहुत सी समानताएं हैं. वो भी हमारी तरह हर वक्त जंग में बावस्ता रहती हैं. हम इंसानों की तरह चींटियां भी हर वक्त जिंदगी की जद्दोजहद में लगी होती हैं. इंसानों की ही तरह चींटियां भी अक्सर खाने और अपने इलाके को लेकर झगड़ती हैं. लेकिन, चींटियां लड़ाई की शुरुआत आपस में भिड़ने से करती हैं. या फिर वो अपनी ही प्रजाति की चींटियों के दूसरे झुंड से भिड़ती हैं. फिर कई बार चींटियां, दूसरी नस्ल की चींटियों से भिड़ जाती हैं. ऐसा वो इंसानों से बहुत पहले से करती आ रही हैं.
चींटियां आज से करीब 10 करोड़ साल पहले उस वक्त भी धरती पर मौजूद थीं, जब यहां डायनासोर्स का राज था. अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग के एक शोध के मुताबिक, चींटियों के सबसे पुराने जीवाश्म करीब 9.9 करोड़ साल पुराने हैं. यूनिवर्सिटी का ये रिसर्च करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. लड़ते हुए शहीद हुई चींटियों के जीवाश्म बर्मा में पाए गए हैं.
इन चींटियों के मैमथ जैसे मोटे दांत थे, जो शिकार को चुभाकर सुन्न करने के काम आते थे. राहत की बात ये है कि चींटियों की मौजूदा नस्ल के पास ये हथियार नहीं है.
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मार्क मॉफेट ने अपनी किताब एडवेंचर्स एमंग एंट्स में कैलिफोर्निया में अर्जेंटीना नस्ल की चींटियों के दो झुंडों में इलाके को लेकर चलने वाली जंग के बारे में लिखा है. इस जंग के पहले मोर्चे पर लाखों चींटियां रोज शहीद होती हैं. चींटियों की ये जंग न जाने कब से छिड़ी हुई है.
ये जानकर ऐसा लगता है कि मोर्चे पर भारत-पाकिस्तान के सैनिक आमने-सामने हैं. चार्ल्स डार्विन ने भी चींटियों के बीच इंसानों जैसी जंग का जिक्र किया है.
चींटियों और इंसानों में कई समानताएं हैं.
1) फ्लोरिडा ऐंट्स यानी फॉर्मिका आर्चबोल्डी नस्ल की चींटियां अपने बिलों को दुश्मन की खोपड़ियों से सजाती हैं. इन चींटियों के जबड़े बहुत मजबूत होते हैं. ये आकार में भी बड़ी होती हैं. इनके डंक बहुत खतरनाक होते हैं. इनके मुंह ऐसे होते हैं, जैसे कोई संड़सी. इन चींटियों की एक और खूबी होती है. हमला होने की सूरत में ये छलांग लगाकर निकल भागती हैं. हैरत होती है कि इतनी छोटी सी चींटी ये सब कैसे कर लेती है.
2) इनसेक्ट्स सोसियाक नाम की पत्रिका में एक रिसर्च प्रकाशित हुई. इसमें ये बात सामने आई है कि फ्लोरिडा ऐंट के अंदर एक एसिड छिड़कने वाली नाक होती है. ठीक वैसी ही जैसी मशीनगन होती हैं. ये अपने दुश्मन पर जहरीले एसिड का छिड़काव करती हैं. वो अपने शिकार हुए लोगों के सिर काट लेती हैं और उन्हें ट्रॉफी के तौर पर अपने बिल में ले जाकर सजाती हैं.
फ्लोरिडा ऐंट्स खुद को मोम की एक परत में छुपा लेती हैं. इस मोम से ऐसी खुशबू आती है कि दुश्मन मदहोश होकर खिंचा चला आता है. चींटियों के लिए ऐसी बू बड़े काम की होती है.
चींटियों के आंख तो होती है. पर वो शिकार का पीछा करने के लिए बू के भरोसे होती हैं. इसी की मदद से वो खाने की तलाश के बाद अपने घर को लौटती हैं. वो बू की मदद से ही दुश्मन और दोस्त में फर्क जानती हैं.
3) लेकिन फॉर्मिका आर्चबोल्डी चींटियों की अपनी दिक्कतें होती हैं. पॉलीयेर्गस नाम की चींटियां, आर्चबोल्डी की पूरी की पूरी बस्ती को ही गुलाम बना कर उनका ब्रेनवॉश कर देती हैं.
पॉलीयेर्गस चींटियों को डकैत, अपहरणकर्ता कहा जाता है. वो ऐसे काम करती हैं: पहले पॉलीयेर्गस रानी चींटी आर्चबोल्डी की उस बस्ती का पता लगाती है, जिसका अपहरण करना है. वो उस बस्ती में घुस कर वहां की रानी चींटी को मार देती है और उसके खून से नहाती है.
इसके बाद पॉलीयेर्गस रानी चींटी आर्चबोल्डी रानी की जगह ले लेती है. वो खून से नहाए होने की वजह से पहचानी नहीं जाती. फिर वो आर्चबोल्डी के बिल में अपने ढेर सारे अंडे दे देती है. जब इन अंडों से दूसरी चींटियां निकलती हैं, तो वो आर्चबोल्डी की बस्ती को अपना गुलाम बना लेती हैं.
4) रिसर्चरों ने पाया है कि चींटियां गिरोह बनाकर शिकार करती हैं. नीली लेप्टोजेनिस चींटियां बड़े से बड़े शिकार को खींच लाती हैं. कंबोडिया के नोम कुलेन नेशनल पार्क में ऐसा देखा गया है. हर चींटी अपने आगे चल रही चींटी के पेट में अपने पंजे को घुसा देती है. वहीं सबसे आगे चलने वाली चींटी किसी शिकार के भीतर पंजा घुसा देती है. पीछे की तरफ चलते हुए चींटी शिकार को घसीट ले जाती हैं.
दूसरी चींटियां भी कतार बनाती हैं. जुलाहा चींटियां और फौजी चींटियां कतार बनाकर अपने घोसले की सिलाई करती हैं. और पानी की बाधा पार करती हैं. लेकिन लेप्टोजेनिस चींटियां दुनिया के वो पहले कीड़े हैं, जो लंबी कतार बनाकर शिकार को खींच ले जाती हैं. इस कतार के आगे चलने वाली कुछ चींटियां रास्ता साफ करती चलती हैं.
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5) फीडोल मेगासेफैलिया नाम की बड़े सिर वाली चींटियों की बस्तियों में सैनिक चींटियां होती हैं. उनके सिर बहुत बड़े होते हैं. उनके जबड़े भी विशाल होते हैं. उससे वो दूसरी चींटियों पर हमला करती हैं और शिकार को चीर-फाड़ डालती हैं.
बायोलॉजिकल जर्नल ऑफ लिनयेन सोसाइटी के मुताबिक ये बड़े सिर वाली फौजी चींटियां जब दूसरी चींटियों का शिकार करती हैं, तो उनका आकार और बड़ा हो जाता है.
बड़े सिर वाली चींटियां दुनिया घूमती हैं. वो इंसानों के साथ दूर-दूर तक चली जाती हैं. किसी गर्म इलाके में उनके पहुंचने पर स्थानीय चींटियों की तबाही तय होती है. इसके अलावा ये चींटियां मकड़ियों और दूसरे कीड़े-मकोड़ों का भी शिकार करती हैं.
बड़े सिर वाली चींटियां दूर तक फैल जाती हैं. अपने कई घोसले बनाती हैं. आपस में सहयोग से वो एक-दूसरे की सुरक्षा करती हैं. बच्चे पैदा करने में सहयोग करती हैं और अपने इलाके का विस्तार करती हैं. एक-दूसरे की मदद से वो तीन गुना तक ज्यादा बढ़ जाती हैं. इन चींटियों का जेनेटिक विश्लेषण करें, तो पता ये चलता है कि ये नए माहौल में ढलने की उनकी खूबी का नतीजा है कि उनका आकार इतना बढ़ जाता है.
6) ट्रैप जॉ चींटियां एंटीना की मदद से मुक्केबाजी जैसे मुकाबले करती हैं. ये बिल के आस-पास अपने शक्ति प्रदर्शन से अपना राज कायम करने की जंग होती है. किसी भी बस्ती में चींटियां काम के हिसाब से कई दर्जों में बंटी होती हैं. वो अपने एंटीना की मदद से जंग लड़ती हैं. जीतने वाली चींटी बिल में रहकर उसकी सुरक्षा करती है और हारने वाली को खाने की तलाश में बाहर जाना होता है.
अमेरिका की इलिनॉय यूनिवर्सिटी के चींटी विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट इनसेक्ट सोसियाक्स में छापी है. इस में उन्होंने बताया है कि किस तरह एंटीना की मदद से लड़ाई में चींटियों की चार नस्लों ने अपने दुश्मनों का खात्मा कर दिया.
एक सेकेंड में ये चींटियां 19.5 से लेकर 41.5 वार तक करती देखी गई हैं. कंबोडिया की ओडोन्टोमैकस रिक्सोसस चींटी एक सेकेंड में 19 वार करती है, तो फ्लोरिडा की ओडोन्टोमैकस ब्रुन्यूस एक सेकेंड में 41 से ज्यादा वार करती है. ये दुनिया की सबसे तेज बॉक्सर कही जाएं तो गलत न होगा.
7) बोर्नियो की टेररिस्ट ऐंड कोल्बोप्सिस एक्सप्लोडेन्स चींटियां भी ऐसे ही हमले करती हैं. जूकीज़ नाम की पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अगर इन चींटियों का सामना किसी और कीड़े से होता है तो इन चींटियों के शरीर से एक चिपकने वाला जहरीला रस निकलता है, इससे दुश्मन भाग जाता है. कई बार उसकी मौत भी हो जाती है. हमला करने वाली चींटी भी कई बार मर जाती है.
8) फौजी चींटियां कई बार दुश्मन पर हमला करने के लिए टुकड़ियां भेजती हैं. ये हमलावर दस्ता जंगल में आगे बढ़ता है और अगर इसे अपनी नस्ल की चींटियों की कोई और सेना दिख जाती है, तो या तो वो एक-दूसरे की अनदेखी करती हैं, या फिर दोनों अपने रास्ते बदल लेती हैं. लेकिन, इन चींटियों की सेना को अगर कोई दूसरी नस्ल की चींटी दिख जाती है, तो वो हमला बोल देती हैं.
भले ही दुश्मन तादाद में ज्यादा क्यों न हो. दोनों ही पक्षों के दुश्मन अपनी सेनाएं इकट्ठा कर के जंग लड़ती हैं. ये कई दिनों तक जारी रहती है. आखिर में फौजी चींटियां, अपने दुश्मनों को परास्त कर के उनकी बस्तियों को तबाह-ओ-बर्बाद कर डालती हैं.
जब फौजी चींटियों का दस्ता पहुंचता है तो शिकारी चींटियां बिल छोड़ देती हैं. वो अपने बच्चों को लेकर दूर भाग जाती हैं. वहां वो फौजी चींटियों के तबाही मचाकर वापस जाने का इंतजार करती हैं. जब दुश्मन चला जाता है, तो ये चींटियां अपने बच्चों के साथ वापस बिल में आ जाती हैं.
9) जंग में घायलों के इलाज के लिए सेवा करने वाली टुकड़ी भी चाहिए. मेगापोनेरा एनालिस नाम की अफ्रीका में पाई जाने वाली काले रंग की छोटी चींटी दीमकों की बस्तियों पर हमला करती है. इस हमले के दौरान दीमक कई बार चींटियों के पैर काट डालते हैं. ऐसी घायल चींटियों को वहीं छोड़ने के बजाय, उनके साथी उन्हें वापस घर ले आती हैं, ताकि वो इलाज से अपने आप को बेहतर कर सकें और दोबारा किसी हमले में शामिल हो सकें. जब घायल चींटियां बिल में आती हैं, तो जो सेहतमंद चींटियां होती हैं, वो उनकी देखभाल करती हैं.
ये चींटियां, घायलों के जख्म लंबे वक्त तक चाटती रहती हैं. इस असामान्य बर्ताव का नतीजा ये होता है कि घायल चींटियां फिर ठीक हो जाती हैं. एम. एनालिस की बस्तियां बहुत बड़ी नहीं होतीं. रोज़ाना दर्जन भर के आस-पास नई चींटियां पैदा होती हैं. ऐसे में रोज़ एक या दो चींटियों की मौत भी भारी पड़ सकती है. इसीलिए ये चींटियां घायलों की देखभाल करती हैं.
10) अमेरिका में दक्षिण अमेरिकी फायर ऐंट की सेनाओं पर अक्सर आक्रमणकारी चींटियां जीत हासिल करती हैं. ये आक्रमणकारी चींटियां क्रेज़ी ऐंट्स के नाम से जानी जाती हैं. साइंस पत्रिका में टेक्सस यूनिवर्सिटी के चींटी विशेषज्ञों ने छोटी क्रेज़ी चींटियों की जीत की वजह बताई है.
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असल में फायर ऐंट्स का जहर बहुत घातक होता है. दूसरी चींटियां इसके संपर्क में आते ही मर जाती हैं. लेकिन, क्रेजी ऐंट्स कही जाने वाली चींटियां इस जहर से बच जाती हैं. जब भी किसी क्रेजी ऐंट चींटी पर ये जहर पड़ता है, तो वो जंग के मैदान से बाहर चली जाती है और खुद का जहरीला लेप अपने ऊपर लगा लेती है.
ये मरहम का काम करता है. फायर ऐंट के जहर का असर इससे खत्म हो जाता है. तब ये क्रेजी ऐंट चींटी ठीक होकर दोबारा जंग के मैदान में कूद जाती है. ये रणनीति इतनी असरदार है कि आज की तारीख में फायर ऐंट की नस्ल तबाही की ओर बढ़ रही है.
चींटियां अपने और बाकी लोगों में सीधा सा फर्क रखती हैं. अपनी बस्ती के साथी और बाकी दुनिया. इंसान भी तो ऐसे ही दूसरे जीवों से खुद को अलग रखता है.
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