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नौसिखिया ‘शार्प-शूटर' ने बनवा डाली थी भारत की पहली 'स्पेशल टास्क फोर्स'!

बात है सन् 1995 के आसपास की. यानी अब से करीब 25 साल पहले की. उस जमाने में भारत के राज्यों की पुलिस के पास न आज से आधुनिक साधन थे. न अत्याधुनिक घातक मार वाले हथियार

Updated On: Dec 23, 2018 09:18 AM IST

Sanjeev Kumar Singh Chauhan Sanjeev Kumar Singh Chauhan

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नौसिखिया ‘शार्प-शूटर' ने बनवा डाली थी भारत की पहली 'स्पेशल टास्क फोर्स'!

हिंदुस्तान जैसे विशाल देश में 'स्पेशल पुलिस टास्क फोर्स' यानी S.T.F. बनाने का श्रेय उत्तर प्रदेश पुलिस. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री. राजस्थान के मौजूदा गवर्नर. यूपी कैडर के एक वरिष्ठ नामी-गिरामी पुलिसिया एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट आईपीएस अफसर को जाता रहा है. आज से नहीं. करीब 21 साल यानी दो दशक से भी ज्यादा पहले से. आम इंसान ने अब तक यही देखा-सुना-पढ़ा-लिखा है. असल में यह सब ठीक नहीं है, अगर मैं यह कहूं! तो मेरा यह हैरतंगेज तर्क किसी के भी गले आसानी से नहीं उतरेगा. लिहाजा इस सच को सही साबित करना भी जरूरी है. इसके लिए पढ़िये 'संडे क्राइम स्पेशल' की यह खास-किश्त जो, मय गवाह-सबूत सिद्ध कर देगी कि हां, जो मैं कह-लिख रहा हूं, देश में एसटीएफ की ‘पैदाईश’ के पीछे छिपा सच वही है.

अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग

बात है सन् 1995 के आसपास की. यानी अब से करीब 25 साल पहले की. उस जमाने में भारत के राज्यों की पुलिस के पास न आज से आधुनिक साधन थे. न अत्याधुनिक घातक मार वाले हथियार. न रणनीति या फिर खतरनाक अपराधों और अपराधियों से निपटने के लिए कोई विशेष किस्म की तकनीक. कालांतर में यह सब जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे राज्य पुलिस में शामिल होता गया. हर राज्य की पुलिस ने अपनी जरूरत के हिसाब से शार्प-शूटर, पुलिस महकमे में अलग-अलग विशेष अनुभाग तैयार कर लिए. थाने चौकी में सिर्फ एफआईआर दर्ज करके मामलों की तफ्तीश का ही काम समेट कर छोड़ दिया गया. कुछ राज्यों ने व्हाइट कॉलर क्राइम से निपटने के लिए आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ECONOMIC OFFECENCES WING) बना लीं. आधुनिक तकनीक पर आधारित क्राइम से निपटने के लिए क्राइम-ब्रांच का गठन कर लिया.

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आतंकवाद और खूंखार अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल सेल (विशेष प्रकोष्ठ) गठित कर लिए गए. थानों में एक अदद एसएचओ के साथ-साथ दो-दो इंस्पेक्टर तैनात कर दिए गए. ताकि एक एसएचओ इलाके में शांति-सुरक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था देखे. दूसरा इंस्पेक्टर (एडिश्नल एसएचओ) उसके सहयोगी के तौर पर बतौर मददगार रहे. देश की राजधानी दिल्ली के थानों में तो बाकायदा तीसरे इंस्पेक्टर (दिल्ली पुलिस में A.T.0) की भी तैनाती की गई है. यह तीसरा इंस्पेक्टर सिर्फ और सिर्फ ‘पड़ताल’ यानी तफ्तीश और कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलात ही देखता है. कुछ राज्यों में पुलिस महकमे ने एसआईटी यानी स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम भी बना रखी है. मतलब वही कि, हर राज्य पुलिस की अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग.'

आजकल एनकाउंटरों के अनुभव लिखने में व्यस्त पूर्व दबंग आईपीएस अजय राज शर्मा

आजकल एनकाउंटरों के अनुभव लिखने में व्यस्त पूर्व दबंग आईपीएस अजय राज शर्मा

अपराधियों से पढ़ती है पुलिस!

यह बात पहली नजर में पढ़ने देखने सुनने में अटपटी या बेहूदा लगती है. सच को भी मगर नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. अपराध शास्त्र और या अपराध विज्ञान की तह में पहुंचने पर यह साबित हो जाता है कि, वास्तव में तफ्तीश या पड़ताल. पुलिस अपराधियों से ही सीखती-पढ़ती है. अपराध और अपराधी अगर हो ही नहीं. तो फिर पुलिस को आखिर बजरिए तफ्तीश करने का मौका कैसे मिलेगा? इसका जीता-जागता सबूत है कि, अपराधी जब अपराध को अंजाम देकर फरार हो जाता है. पुलिस उसके बाद ही निकलकर सामने आती है. अपराध से पहले तो पड़ताल संभव ही नहीं है.

इससे साफ है कि, हमेशा पुलिस ‘फॉलो’ करती है अपराधी को. न कि, अपराधी वारदात के बाद खुद ही चलकर जाता है. पुलिस को बुलाने के लिए कि, उसने घटना को अंजाम देने जाना है. पुलिस उसके साथ-साथ चले. यही वजह है कि, हर आपराधिक घटना और अपराधी पुलिस के लिए किसी ‘पाठ’ से कमतर नहीं. इस तथ्य से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के वरिष्ठ क्रिमिनल वकील सत्य प्रकाश शर्मा भी इत्तेफाक रखते हैं. बकौल एडवोकेट एसपी शर्मा, ‘समाज से क्रिमिनल और क्राइम अगर खतम हो जाए. तो फिर पुलिस, कोर्ट-कचहरी, कानून का भला क्या काम?’

खूंखार अपराधी जो बने पुलिस के ‘गुरू’!

1990 के दशक में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों ने देश और दुनिया को हिला दिया था. उससे पहले देश में सीरियल बम-ब्लास्ट का फॉर्मूला शायद ही कहीं किसी ने देखा सुना हो! दाऊद इब्राहिम एंड कंपनी द्वारा किए गए उन भीषण धमाकों और उससे हुई बर्बादी ने महाराष्ट्र पुलिस को ऐसा पाठ पढ़ाया, जिसे मुंबई पुलिस कभी नहीं भूलेगी. दिल्ली पुलिस के पूर्व जॉइंट-कमिश्नर (क्राइम) आलोक कुमार के मुताबिक, ‘मुंबई सीरियल बम धमाकों के बाद ही पता लगा कि, शातिर दिमाग अपराधी पुलिस-पब्लिक को कन्फ्यूज करने के लिए एक साथ कई जगह बम विस्फोट कर या करा सकते हैं.

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शहर में एक साथ कई वारदातों से पुलिस और पब्लिक दोनों की ही मुश्किलें बढ़ जाती हैं. बेकसूर पब्लिक बेवजह शिकार होकर परेशान होती है. जबकि पुलिस या किसी भी जांच एजेंसी को पड़ताल में खासी परेशानियों से जूझना पड़ता है. शहर में एक साथ हुई कई वारदातों के बाद पुलिस या जांच एजेंसियों को किसी तरह की रणनीति अमल में लानी चाहिए? यह 1990 के दशक में हुए मुंबई बम ब्लास्ट से ही सीखने को मिला.’

एक दाऊद इब्राहिम ही क्यों? छोटा शकील, छोटा राजन, आफ़ताब अंसारी, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना बजरंगी, बबलू श्रीवास्तव जैसे अंडरवर्ल्ड और जरायम की दुनिया से जुड़े और भी तमाम नाम हैं जिन्होंने, पुलिस और देश की जांच एजेंसियों को ‘पड़ताल’ का पाठ पढ़ाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी. अगर यह तमाम अंतरराष्ट्रीय स्तर के अपराधी खुद का दिमाग अपराध की रूपरेखा में न लगाते. रोज नए नए तरीके क्राइम को अंजाम देने में न करते. तो शायद पुलिस का तफ्तीशी दिमाग कभी खुलता भी कैसे? कुल जमा अगर यह कहा जाए कि, वाकई पुलिस, अपराधी और अपराध से ही सीखती है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

जिसने बनवा डाली देश की पहली S.T.F.

ऐसे में जाहिर सी बात है कि जब पुलिस अपराधी पर डिपेंड हो जाएगी. तो उसे अपराध होने और अपराधी के जन्म लेने का इंतजार भी करना पड़ेगा. फिर शुरू होता है सिलिसिला. जैसा अपराध-अपराधी उसी नक्श-ए-कदम की पुलिस और उसकी पड़ताल और पुलिसिया तफ्तीश की रणनीति. अपराध की दुनिया में इसका सर्वोत्तम उदाहरण है पूर्वी उत्तर प्रदेश का कुख्यात शार्प-शूटर और कॉंन्ट्रेक्ट किलर श्रीप्रकाश शुक्ला. अपराध की दुनिया में जब श्रीप्रकाश का जन्म हुआ तो, उस वक्त उसकी उम्र महज 25-26 साल की रही थी. उस छोटी उम्र में भी श्रीप्रकाश ने जिस तरह कहर बरपाया. उसने तमाम बहादुर समझे जाने वाले आला पुलिस अफसरों के होश-फाख्ता कर दिए थे.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति के साथ अजय राज शर्मा.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति के साथ अजय राज शर्मा.

पुलिस से लेकर सीएम तक हलकान

ऐसा नहीं है कि, उस जमाने में यूपी पुलिस कमजोर थी. या यूपी पुलिस के पास जाबांजों का अकाल था. इस सबके बावजूद श्रीप्रकाश की चुनौती ने यूपी पुलिस के अच्छे-अच्छे नामी गिरामी पुलिस वालों को पसीना ला दिया. उसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि उससे, निपटने के लिए पुलिस को कुछ नया और हैरतंगेज रास्ता या फॉर्मूला ही अख्तियार करना होगा. कालांतर में हुआ भी वही. हताश यूपी पुलिस और हलकान सूबे के सरकारी हुक्मरान. यहां तक कि उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (राजस्थान के मौजूद राज्यपाल) की भी जान के लाले पड़ गए. वजह थी श्रीप्रकाश ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का ही कत्ल करके ‘ठिकाने’ लगाने की करोड़ों रुपए की ‘सुपारी’ ले ली. मतलब फिर वही. जब अपराधी भारी पड़ा तो पुलिस ने दिमाग दौड़ाना शुरू किया. यानी आगे-आगे श्रीप्रकाश शुक्ला सा नौसिखिया मगर खतरनाक शार्प-शूटर. उसके पीछे-पीछे ट्रेंड पड़ताली पुलिस.

इसलिए मेरा खून खौलना लाजिमी था

‘यह बात है सन् 1997 के आसपास की. जब यूपी जैसे देश के विशाल सूबे में श्रीप्रकाश किसी से काबू नहीं आ रहा था. सूबे के सीएम कल्याण सिंह की सुपारी ले चुका. राज्य के गवर्नर मोती लाल वोरा उसे लेकर खासे परेशान थे. लखनऊ में दिन-दहाड़े हमारे पुलिस इंस्पेक्टर आर.के. सिंह को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया. लखनऊ दवा व्यापारी संघ के पदाधिकारी के बेटे को अल-सुबह अपहरण कर ले गया. यूपी से दिल्ली तक उसका आतंक हो गया. आम आदमी और पुलिस की बात छोड़ भी दीजिए. नेता-मंत्री खुद को हर वक्त गोलियों के निशाने पर समझने लगे. तब मेरा दिमाग ठनका. हो न हो कोई भी अपराधी कम से कम पुलिस से ऊपर तो जाकर जिंदा नहीं रह सकता है. अगर ऐसा होने लगा तो फिर, पुलिस के गठन का मतलब ही क्या?

उन दिनों मैं बतौर एडिश्नल डायरेक्टर जनरल पीएसी सीतापुर में पोस्टिड था. श्रीप्रकाश बिहार में एक अस्पताल में घुसकर कड़ी सुरक्षा के बीच एक विधायक/मंत्री का कत्ल करके साफ बच निकला था. पीएसी में पोस्टिंग के चलते मेरा सिविल पुलिस और श्रीप्रकाश शुक्ला से यूं तो कोई सीधा वास्ता नहीं था. फिर भी एक आईपीएस पुलिस अफसर होने के नाते खून तो खौलना लाजिमी ही था. ’ बताते हैं 1966 बैच यूपी कैडर के पूर्व आईपीएस सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के रिटायर्ड महानिदेशक और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर अजयराज शर्मा.

पूर्व आईपीएस और यूपी पुलिस में स्पेशल टास्क फोर्स के जन्मदाता अजय राज शर्मा (फोटो सौजन्य अशोक सक्सेना दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी)

पूर्व आईपीएस और यूपी पुलिस में स्पेशल टास्क फोर्स के जन्मदाता अजय राज शर्मा (फोटो सौजन्य अशोक सक्सेना दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी)

बदहाल पुलिस की गोद में जन्मी ‘एसटीएफ’

बकौल अजयराज शर्मा, ‘ज्यों-ज्यों पुलिस कमजोर त्यों-त्यों श्रीप्रकाश शुक्ला बेकाबू होता जा रहा था. तब मेरे दिमाग में आइडिया आया. श्रीप्रकाश ने जैसे अपनी नई उम्र के शार्प-शूटर लड़कों की क्रूर टीम बनाई है. उसी पैटर्न पर मगर उससे भी क्रूर (खतरनाक) टीम आखिर अगर पुलिस अपने नौजवान बहादुर सिपाहियों को इकट्ठा करके बना ले तो भला सफलता क्यों नहीं मिलेगी? बस श्रीप्रकाश-सेना को नेस्तनाबूद करने के लिए एक अदद इसी सवाल के जबाब में मैंने महकमे के कुछ नये शार्प शूटर बहादुर लड़कों को इकट्ठा करने की सोची. और यूपी पुलिस के इन्हीं बहादुर नौसिखिये तेज निशानेबाजों की छोटी सी टीम को नाम दे दिया स्पेशल पुलिस टास्क फोर्स यानी UP POLICE S.T.F. और चंद दिन बाद वही हुआ जो मेरी तमन्ना थी.

खूंखार और खूनी श्रीप्रकाश शुक्ला की नौसिखिया मगर खतरनाक इरादों वाली सेना पर हमारी छोटी सी मगर उससे भी खतरनाक एसटीएफ कहीं ज्यादा भारी साबित हुई. और श्रीप्रकाश सहित उसके दो और साथियों को दिल्ली से सटे इंदिरापुरम-वसुंधरा इलाके में सितंबर 1997 महीने में ढेर कर डाला. यह साबित करते हुआ कि, पुलिस कभी-कभार किन्हीं मौकों पर कमजोर हो सकती है, मगर नपुंसक कतई नहीं.’

अजयराज शर्मा इस सवाल को कतई अन्यथा नहीं लेते कि, ‘असल मायने में देश की किसी राज्य की पुलिस में एसटीएफ का असली जन्मदाता पुलिस से पहले श्रीप्रकाश शुक्ला था! जिसने पुलिस को एसटीएफ बनाने केलिए मजबूर कर दिया. या पुलिस को इस हद तलक चिढ़ा दिया कि, श्रीप्रकाश जैसे अपराधियों को नेस्तनाबूद करने के लिए एसटीएफ जैसी घातक मगर काबिल टीम को खड़ा करने का फार्मूला अजयराज जैसे दबंग आईपीएस के जेहन में जन्म ले गया.’ बकौल अजयराज शर्मा, ‘यह सत्य है कि, जरायम की दुनिया में अगर श्रीप्रकाश सा खूंखार शूटर न जन्मा होता तो, एसटीएफ का जन्म शायद 21 साल पहले भी न हुआ होता.’

कौन है ‘अजेय’ निशानेबाज अजयराज?

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिलांतर्गत तहसील-थाना मढ़ियान के गांव अटारी निवासी इंद्र राज शर्मा और उमेश्वरी शर्मा के यहां 6 दिसंबर सन् 1944 को हुआ था ‘अजेय’ अजयराज शर्मा का जन्म. कालांतर में यह परिवार जिला मुख्यालय स्थित मोहल्ला मुजफ्फरगंज में आकर रहने लगा. कक्षा पांच तक की शिक्षा देहरादून के सेंट जोसफ (जोजफ) स्कूल (बोर्डिंग) में हुई. पिता उस जमाने में इलाके के धनाढ्य किसान थे. 1956 में देहरादून से इलाहाबाद पहुंच गये. इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के बीएचएस यानी ब्यॉयज हाईस्कूल में कक्षा-6 में दाखिला लिया. यूइन क्रिश्चिन कॉलेज इलाहाबाद से 1963 में स्नातक किया.

उसके बाद इलाहाबाद विश्व विद्यालय से 1965 में आधुनिक इतिहास (मॉर्डन हिस्ट्री) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. उसी दौरान अक्टूबर 1965 में ही U.P.S.C. की परीक्षा दी. पास होने के बाद जुलाई 1966 में आईपीएस ट्रेनिंग के लिए देहरादून स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी चले गए. पुलिस (आईपीएस) ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1969 में सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी नियमित) पहली पोस्टिंग मिली बरेली जिले में. उसके बाद यूपी में ‘एंटी डकैती ऑपरेशन चंबल घाटी’ अनुभाग का गठन अजयराज शर्मा के चातुर्य के मद्देनजर ही किया गया. जिसका उन्हें पहला मुखिया बनने का मौका मिला.

तमाम विवादों-विरोधों और चिल्ल-पों के बावजूद उन्हें यूपी कैडर आईपीएस होने के बाद भी दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाया गया. 31 दिसंबर 2004 को डायरेक्टर जनरल सीमा सुरक्षा बल (डीजी बीएसएफ)से रिटायर हो गए. फिलहाल खुद की पुलिसिया जिंदगी पर किताब लिखने में मशरूफ हैं.

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