आपने राजा मेंहदी अली खान का नाम सुना है? अगर नहीं, तो हम आपको कुछ फिल्मी नगमों की एक-एक लाइन याद दिलाते हैं- इस सवाल का जवाब देना आपके लिए आसान हो जाएगा. मेरी याद में तुम ना आंसू बहाना, मेरा सुंदर सपना बीत गया, आप की नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, अगर मुझसे मोहब्बत है मुझे सब अपने गम दे दो, लग जा गले से फिर ये हसीं रात हो ना हो, नैना बरसे रिमझिम, झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, नैनों में बदरा छाए... इन लाइनों को सुनने के बाद सिर्फ यह जान लेना काफी होगा कि यह सभी सुपरहिट नगमें राजा मेंहदी अली खान की कलम से निकले थे.
भारत की आजादी यानी 1947 से लेकर अगले करीब 20 साल तक राजा मेंहदी अली खान ने फिल्मी दुनिया के लिए जो भी लिखा शानदार लिखा. उनका लिखा एक-एक गाना आज भी लोगों की जुबां पर रहता है. दरअसल, राजा मेंहदी अली खान अदब की दुनिया का बड़ा नाम था. 1947 में देश के विभाजन के बाद जब तमाम मुस्लिम पाकिस्तान जा रहे थे, उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला किया. इतना ही नहीं अगले ही साल उनके लिखे गाने 'वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद’ ने लोगों में जोश भर दिया.
राजा मेंहदी अली खान ने अपने दौर के सभी बड़े संगीतकारों के लिए गीत लिखा. यह बदकिस्मती ही थी कि राजा मेंहदी अली खान लंबी उम्र नहीं जिए और केवल 37-38 साल की उम्र में 1966 में दुनिया छोड़ गए. आज हम उन्हीं के लिखे एक गाने की बात करेंगे, उसके राग की कहानी किस्से सुनेंगे. लेकिन उससे पहले इस महान गीतकार के लिखे कुछ दूसरे गाने सुन लेते हैं.
आज की राग का किस्सा जुड़ा हुआ है मशहूर फिल्म मेरा साया से. जाने-माने निर्देशक राज खोसला ने 60 के दशक में यह फिल्म बनाई थी. यह फिल्म पहले मराठी और तमिल में बन चुकी थी. फिल्म में सुनील दत्त और साधना मुख्य भूमिका में थे. फिल्म के संगीत का जिम्मा मदन मोहन का था. मदन मोहन और राजा मेंहदी अली खान की जोड़ी पहले भी सुपरहिट नगमें दे चुकी थी. इस फिल्म के 3 गाने कमाल के हिट हुए. नैनों में बदरा छाए, तू जहां-जहां चलेगा और झुमका गिरा रे. तू जहां-जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा गाना फिल्म में 2 बार इस्तेमाल हुआ था. जो फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता था. इसी गाने को तैयार करने के लिए मदन मोहन ने शास्त्रीय राग नंद का सहारा लिया. उन्होंने राग नंद की जमीन पर इस गाने को तैयार किया. जिसके 2 हिस्से तैयार किए गए, दोनों हिस्सों को लता मंगेशकर ने ही गाया था. आइए आपको यह गाना सुनाते हैं.
इस गाने की लोकप्रियता ऐसी रही कि लता मंगेशकर ने पिछले 50 साल में जितने स्टेज शो किए होंगे उसमें लगभग हर जगह इस गाने की फरमाइश की गई. यहां तक कि भारतीय क्रिकेट के स्टार सचिन तेंडुलकर के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में जब लता जी को स्टेज पर बुलाया गया तो खुद मास्टर ब्लास्टर ने भी उनसे इसी गाने की फरमाइश की थी. आपको भी वो वीडियो दिखाते हैं. दूसरा वीडियो मशहूर सितार वादक उस्ताद शुजात खान का है. जो इसी गाने को अपना पसंदीदा गाना बताते हुए सितार पर बजा रहे हैं. यह इस राग की खूबी और इस गाने की भी खूबी है.
एक गाने के बहाने राग नंद की जो कहानी शुरू हुई है उसके शास्त्रीय पक्ष की बात करते हैं. राग नंद को राग नंद कल्याण भी कहा जाता है. इसके अलावा इसी राग को आनंदी या आनंद कल्याण भी कहा जाता है. राग नंद चंचल प्रवृति का राग है. इस राग में विलंबित आलाप नहीं होता है. मंद्र सप्तक में इसका गायन भी नहीं किया जाता है. राग नंद कल्याण थाट का राग है. इस राग में दोनों ‘म’ इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा बाकी सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं. इस राग की जाति षाडव संपूर्ण है. राग नंद को गाने-बजाने का समय रात का पहला प्रहर है. राग नंद में बिहाग, कामोद, गौड़ सारंग और हमीर जैसे रागों की छाप भी दिखाई देती है. राग नंद में ‘प’ और ‘रे’ स्वर की संगति बार-बार दिखाई जाती है. आइए अब आपको इस राग के आरोह अवरोह और पकड़ के बारे में बताते हैं.
आरोह- सा ग S म, प ध नी प, सां अवरोह- सां ध नी प, ध म (तीव्र) प, ग म ध प रे S सा पकड़- ग म ध प गरे S सा, सा ग S म S S इस सीरीज की परंपरा के अनुसार अब हमें आपको राग नंद के कुछ वीडियो दिखाने हैं. ऐसे वीडियो जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकारों के हैं. जो पहला वीडियो हम आपको दिखा रहे हैं वो पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर साहब का है. जयपुर अतरौली घराने के इस दिग्गज कलाकार को 90 के दशक में देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था. दूसरी क्लिप में उस्ताद शुजात खान अपने एक टीवी कार्यक्रम के दौरान बनारस के दिग्गज कलाकार पंडित छन्नू लाल मिश्रा का गाया राग नंद सुनवा रहे हैं.
आज उस्ताद शुजात खान की चर्चा हमने 2 बार की है तो क्यों ना राग नंद के शास्त्रीय वादन पक्ष को समझने के लिए उन्हीं के पिता और बेहद सम्मानीय सितार वादक उस्ताद विलायत खान का बजाया राग नंद सुना जाए. उस्ताद विलायत खान पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे पुरस्कारों को यह कहकर ठुकरा चुके थे कि अगर सितार के लिए कोई भी सम्मान मिलना चाहिए तो वो इसके लिए पहले हकदार हैं. आइए सुनते हैं उस्ताद विलायत खान साहब का बजाया राग नंद.
राग नंद की आज की कहानी में इतना ही, अगले हफ्ते एक और शास्त्रीय राग की कहानी किस्से और रागदारी की इस सीरीज के साथ मुलाकात होगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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