साल 2001 की बात है. टीवी न्यूज इंडस्ट्री में करीब एक साल का तजुर्बा लेकर मैं बॉम्बे गया था. मकसद था ‘फिक्शन’ लिखना. जाने से पहले जो रेफरेंस लेकर गया था उसमें से एक रेफरेंस सागर सरहदी का था और दूसरा इरफान का. एक रेफरेंस वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने दिया था दूसरा वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने. इरफान से मेरे परिचय की शुरूआत वहीं से होती है. कहानी दिलचस्प है. ज्यादातर अभिनेताओं के करियर के शायद शुरूआती दौर में कुछ यूं होता है कि लोग उसके चेहरे को तो जानते हैं लेकिन नाम नहीं. मेरी इरफान से मुलाकात के किस्से में यही संयोग है.
मैंने काम की तलाश में इरफान को फोन किया. उनसे समय लिया और उनके घर मिलने के लिए पहुंच गया. अगर वो गूगल के वर्चस्व का दौर रहा होता तो शायद मैं भी रास्ते में उनकी फोटो देखकर गया होता. लेकिन ऐसा था नहीं. मैं तय समय पर इरफान के घर पहुंचा. इरफान की पत्नी सुतपा सिकदर ने दरवाजा खोला और बताया कि इरफान मेरे आने के बारे में बताकर गए हैं लेकिन उन्हें थोड़ी देर होगी इसलिए मैं उनका इंतजार करूं. छोटा सा घर था. जिस कमरे में मुझे बिठाया गया था उसी के एक कोने में एक ड्रेसिंग टेबल रखा था. ड्रेसिंग टेबल पर शीशे और लकड़ी के बीच एक पासपोर्ट साइज की फोटो लगी हुई थी. जिसकी फोटो थी उस अभिनेता को मैं अच्छी तरह पहचानता था. उस अभिनेता के दमदार अभिनय को मैंने चंद्रकांता और भारत एक खोज जैसे सीरीयल्स में देखा था. अब बड़ी दुविधा यही थी कि क्या जिस इरफान से मैं मिलने आया हूं ये उन्हीं का फोटो है.
ठंडे दूध के साथ सोडा डालकर पीने से तुरंत आराम मिलेगा
करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद इरफान आए. हाफ पैंट और कंधे पर बैग. उन्हें देखते ही मेरी सारी शंकाएं दूर हो गईं. शीशे पर लगी तस्वीर वाला दमदार अभिनेता मेरे सामने खड़ा था. मन में ये भरोसा भी जगा कि इतने दमदार अभिनेता से मिलने आया हूं तो मेरा काम हो ही गया. खैर, इरफान बैठे. बातचीत शुरू हुई. शुरूआती बातचीत के केंद्र में उदय प्रकाश की हालिया प्रकाशित किताब ‘पीली छतरी वाली लड़की थी’. मैंने इरफान को अपने पढ़ने लिखने के शौक से लेकर फिक्शन लिखने की अपनी इच्छा के बारे में बताया. इरफान सब ध्यान से सुनते रहे. फिर अचानक उन्होंने पूछा, क्या पिओगे? मतलब रम लोगे या कुछ और?
मैंने कहा कि मेरे मुंह में जबरदस्त छाले निकले हुए हैं इसलिए कुछ भी खाना पीना संभव नहीं है. इरफान को जाने क्या सूझा वो वहां से उठे. लौटे तो उनके हाथ में बोतल वाला दूध था. उन्होंने अपनी पत्नी से खाने वाला सोडा मांगा. सोडे को दूध की बोतल में डाला और मेरे सामने बढ़ाते हुए बोले- इसे पीओ. ठंडे दूध के साथ सोडा डालकर पीने से तुरंत आराम मिलेगा. दस मिनट के भीतर वाकई थोड़ी राहत मिली. काम की बातचीत शुरू हुई तो कहने लगे कि इन दिनों मेरे पास कोई ऐसा काम नहीं है जिसमें मेरी मदद ली जा सके या मुझे इन्गेज किया जा सके. मुझे काम देने की जिम्मेदारी उन्होंने अपनी पत्नी सुतपा सिकदर को सौंपी.
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ऐसा इसलिए क्योंकि सुतपा उन दिनों माधुरी दीक्षित के साथ एक बड़ा रिएलिटी शो प्लान कर रही थीं. जिसमें ऑनस्क्रीन शादियां होनी थीं. उस शो का काम समझने के बाद मैंने उनके लिए कुछ सैंपल स्क्रिप्ट भी लिखी थीं. हालांकि बाद में सुतपा ने मुझे बताया कि इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट की वजह से उस शो पर ताला लग गया है. खैर, उस रोज हुई मुलाकात से इरफान के साथ हुए परिचय का सिलसिला चलता रहा. बॉम्बे में अपनी दाल ना गलती देखकर मैं वापस नोएडा आ गया. एक बार फिर न्यूज चैनल की नौकरी शुरू हो गई. इसी के कुछ महीनों बाद इरफान के करियर को बदलने वाली फिल्म आई- हासिल.
मोबाइल संदेशों पर इरफान से मेरी बातचीत होती रही. ये भी संयोग ही था कि हासिल की शूटिंग उसी इलाहाबाद में होनी थी जहां का मैं रहने वाला हूं. इरफान से दूसरी मुलाकात इलाहाबाद में ही हुई. होटल यात्रिक में हुई उस मुलाकात में इरफान ने बताया था कि हासिल के शूट के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शूटिंग कितना चुनौती भरा काम था. जहां कुछ लोगों ने फिल्म की यूनिट से पैसा मांग दिया था. खैर, हासिल आई और इरफान अलग ही लीग में चले गए.
इंडस्ट्री के बड़े गंभीर मुद्दों को छुआ जाए
अगले कुछ महीनों में उनसे मुलाकात का सिलसिला बढ़ गया. हुआ यूं कि मैं ज़ी न्यूज में था. उन दिनों हम लोग हाजी मस्तान और करीम लाला जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन पर एक सीरीज बना रहे थे. उस सीरीज की एंकरिंग इरफान किया करते थे. उसके शूट के दौरान अक्सर उनसे मुलाकात होती थी. इस बीच इरफान की फिल्में एक के बाद एक धूम मचाती जा रही थीं. उनकी व्यस्तता बढ़ती जा रही थी. बावजूद इसके बीच-बीच में उनसे इक्का दुक्का मैसेज का आदान प्रदान चलता रहा. 2013 में मेरी दूसरी किताब विजय चौक-लाइव आई. ये किताब टीवी न्यूज इंडस्ट्री की चटपटी खबरों को लेकर लिखी गई थी. इन चटपटी खबरों के बहाने मेरा प्रयास था कि इस इंडस्ट्री के बड़े गंभीर मुद्दों को छुआ जाए.
इरफान तब तक बड़े स्टार हो चुके थे. दर्जन भर बड़ी और कामयाब फिल्में उनकी झोली में थीं. दुनिया भर के अवॉर्ड्स उनके खाते में थे. मेरा मन था कि वो मेरी किताब की भूमिका लिखें. इरफान ने किताब की भूमिका में लिखा- इस किताब के पन्ने पढ़कर यही लगा कि लेखक के अनुभव उसे कोंच रहे हैं, वह सब के मन का हिस्सा होना चाहते हैं. अनुभूतियों को पर लग गए हैं. खबरों के उद्योग के अंदर की ‘धुंआ’ धार पेशकश है- विजय चौक लाइव. उन्होंने जानबूझकर धुंआधार शब्द में धुंआ को कौमा के अंदर रखने को कहा था. इसके बाद से लेकर अब तक इरफान की कामयाबी का ग्राफ लगातार ऊपर उठा है. वो अंतर्राष्ट्रीय स्टार बन चुके हैं. फिल्मों से लेकर विज्ञापन जगत में वो छाए हुए हैं. एक फैन के तौर पर उनके लगभग हर काम को मैंने देखा है.
परेशान करने वाली बात ये है कि इन दिनों वो बीमार रहे. एक दुर्लभ किस्म की बीमारी ने उन्हें घेर लिया है. अपनी बीमारी की जानकारी देने से लेकर अभी तक बीच बीच में वो खुद ही अपडेट देते रहते हैं. उनकी पत्नी सुतपा से इस बीच मेरा एक दो बार संपर्क हुआ है. मैं लगातार उन्हें शुभकामनाएं भेजता रहता हूं. खुद को कोसता हूं कि काश मेरे पास भी उनकी बीमारी के लिए दूध में सोडा डालकर राहत दिलाने जैसी कोई तरकीब होती.
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