स्टीफन हॉकिंग नहीं रहे. 14 मार्च 2018 मानवजाति के लिए शोक मनाने का दिन है. दुनिया की मौजूदा जनसंख्या में ज्यादातर ने आइंस्टीन को नहीं देखा, न्यूटन के सिर्फ किस्से सुने हैं. मगर हमें हॉकिंग्स के समय में पैदा होने का सौभाग्य मिला था. वैसे प्रोफेसर हॉकिंग्स ने दुनिया से जाने के लिए जो दिन चुना वो अद्भुत है. उतना ही अद्भुत जितना उनका समय को समझने का सिद्धांत.
3-14 यानी चौदह मार्च π पाई की तारीख है. पाई अनंत तक जाने वाली संख्या है. बचपन में आपने गणित में π का मान 22/7 से निकाला होगा. 3.14.... आप गणना करते जाइए, सिलसिला चलता रहेगा. आइंस्टीन इसी तारीख को दुनिया में आए. मार्क्स और अब प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग्स इसी तारीख को दुनिया से गए. इन लोगों ने जो विचार शुरू किए उनका अंत कहीं नहीं नहीं है. उसकी संभावनाएं कहीं खत्म नहीं होतीं.
हॉकिंग की किताब ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम दुनिया भर में चर्चित किताब है. इसको हर बार पढ़ने के बाद आपको कुछ नया समझ में आएगा. दुनिया और समय के बारे में. आइंस्टीन ने दुनिया को बताया कि संसार मात्र दो चीजों से बना है. एक द्रव्यमान है और दूसरा ऊर्जा है. हॉकिंग ने बताया कि संसार की उत्पत्ति कैसे हुई.
जब अंतरिक्ष भी नहीं था
हॉकिंग की मानें तो ब्रह्मांड की शुरुआत दो चीज़ों से हुई. एक मैटर था और एक ऐंटी मैटर. एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ. बिग बैंग के नाम से जाने वाले इस विस्फोट के बाद मैटर बढ़ता चला गया और एंटी मैटर कम होता गया. इसके साथ ही ढेर सारी ऊर्जा बनी.
हॉकिंग ने ब्लैक होल के बारे में भी बताया. आम भाषा में ब्लैक होल किसी तारे के मरने से पैदा हुई रचना है. इसमें बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण होता है. इतना ज्यादा कि प्रकाश तक को खींच ले. उदाहरण के लिए अगर आप एक गेंद सामने की तरफ फेंके तो वो कुछ दूर जाकर गिर जाएगी. क्योंकि ग्रैविटी उसको नीचे खींच लेगी. ब्लैक होल में अगर कोई टॉर्च लेकर सामने दीवार की तरफ जलाए तो रौशनी दीवार पर टकराने की जगह नीचे जमीन पर गिर पड़ेगी.
प्रोफेसर हॉकिंग्स के सिद्धांतों के बाद समय को एक नए तरीके से देखा जा सकता है. काल्पनिक समय या इमेजनरी टाइम का कॉन्सेप्ट समय को गणित के नियमों में बांधकर देखता है. जैसे हम गणित में माना कि ये बराबर एक्स मान लेते हैं. समय भी मानी हुई चीज़ हो सकती है.
हमें लगता है कि समय चल रहा है. शताब्दियां बदल रही हैं. ऐसा भी तो हो सकता है कि हम चल रहे हैं और समय वहीं रुका हुआ है. सड़क पर गाड़ी चल रही है. तो हमें लगता है कि पेड़ पीछे जा रहे हैं. मगर क्या सच में ऐसा है? सड़क वहीं है, पेड़ वहीं हैं ये तो हम हैं जो चल रहे हैं. इसका मतलब हुआ कि जो पेड़ हमारे पीछे छूट गया है वो कहीं तो होगा. जो आने वाला है वो भी कहीं तो होगा. इसी पर जावेद अख्तर की एक नज़्म भी है, ये वक्त क्या है.
स्टीफन ने 1000 साल के अंदर दुनिया के आग का गोला बन जाने की बात भी कही है. मतलब जितना समय कुतुबमीनार को अब तक हुआ है, आज से उतने समय बाद दुनिया में इंसान का नामों निशान नहीं रहेगा. इसी के लिए वो दूसरे ग्रहों पर बसने वाले जीवन की संभावनाओं की तलाश कर रहे थे. एक ऐसा अंतरिक्षयान जो प्रकाशवर्ष की दूरी बहुत कम समय में पूरी कर सके. मगर ऐसा हो नहीं सका. इससे पहले ही प्रोफेसर हॉकिंग्स दुनिया छोड़कर चले गए.
जीवटता और जज़्बे की मिसाल रहे हॉकिंग ने मानव सभ्यता के लिए बड़ा नुक्सान है. इसकी भरपाई कैसे होगी पता नहीं. आइए पढ़ते हैं जावेद अख्तर की समय पर लिखी नज़्म के कुछ हिस्से.
ये वक़्त क्या है? ये क्या है आख़िर कि जो मुसलसल गुज़र रहा है ये जब न गुज़रा था तब कहां था? कहीं तो होगा गुज़र गया है तो अब कहां है? कहीं तो होगा? कहां से आया किधर गया है? ये कब से कब तक का सिलसिला है ये वक़्त क्या है? … कभी कभी मैं ये सोचता हूं कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त जा रहे हैं मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं तो क्या ये मुमकिन है सारी सदियां क़तार-अंदर-क़तार अपनी जगह खड़ी हों ये वक़्त साकित हो और हम ही गुज़र रहे हों ... ये वक़्त क्या है?
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