ग़ज़ल गायकी के अंदाज को समझने की आज दूसरी कड़ी है. आज हम आपको ग़ज़ल गायकी के बारे में वो बात बताएंगे जिससे आप समझ सकेंगे कि आखिर गायकी के इस तरीके और बाकी तरीकों में एक जैसी बातें कौन सी हैं.
साथ ही मंच पर एक शायर की सुनाई गई ग़ज़ल को कैसे एक कलाकार सुरों में पिरो देता है. इसकी बानगी से ही बात शुरू करते हैं. 1926 में लखनऊ में जन्मे बेहद नामी शायर कृष्ण बिहारी नूर की ये ग़ज़ल पहले उनके अंदाज में सुनिए. इस ग़ज़ल के एक-एक शेर को सुनिए. आपकी सहूलियत के लिए हम वीडियो के साथ साथ ग़ज़ल भी दे रहे हैं.
जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं.
इतने हिस्सों में बट गया हूं मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं.
जिंदगी! मौत तेरी मंजिल है दूसरा कोई रास्ता ही नहीं.
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे, झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं.
जिंदगी! अब बता कहां जाएं जहर बाजार में मिला ही नहीं.
जिसके कारण फसाद होते हैं उसका कोई अता-पता ही नहीं.
धन के हाथों बिके हैं सब कानून अब किसी जुर्म की सजा ही नहीं.
कैसे अवतार कैसे पैगंबर ऐसा लगता है अब खुदा ही नहीं.
उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या ख्वाब-दर-ख्वाब कुछ मजा ही नहीं.
जड़ दो चांदी में चाहे सोने में, आईना झूठ बोलता ही नहीं.
अपनी रचनाओं में वो जिंदा है 'नूर' संसार से गया ही नहीं. कृष्ण बिहारी 'नूर' की इस ग़ज़ल के कुछ शेरों को जगजीत सिंह ने बेहद खूबसूरती से गाया भी है. आप वो वीडियो भी देखिए.
दरअसल, कहते हैं कला चाहे कोई भी हो अपने जन्म से लेकर काफी समय तक वो अपने मूल स्वरूप में ही रहती है. इसके बाद उसमें धीरे-धीरे बदलाव का दौर शुरू होता है. जाहिर है बदलाव का ये दौर बदलते समय की जरूरत होता है. ग़ज़ल के साथ भी ऐसा ही हुआ है.
ग़ज़ल गायकी भी बदलते वक्त के साथ साथ दूसरी गायन शैलियों से प्रभावित होती रही है. जैसा हमने आपको पहले भी बताया था कि यूं तो ग़ज़ल गायकी को सुगम संगीत या लाइट म्यूजिक माना जाता रहा है. फिर भी इसको गौर से समझने पर इसमें अन्य शैलियों जैसी कुछ बातें दिखाई देती हैं.
ग़ज़ल और दूसरी गायन शैलियों में एक जैसा क्या है?
अगर बारीकी से देखा जाए तो ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो ग़ज़ल गायकी और बाकी शैलियों में एक जैसी होती हैं. ये समानता है किसी भी शब्द के भाव को समझाने के लिए स्वरों का सहारा लेने की. कुछ जानकार कहते हैं कि ग़ज़ल गायकी के दौरान तानों और अंतरों को पेश करते समय कलाकार मुर्कियों और खटकों का भी प्रयोग करता है. इसलिए इसे खयाल गायकी के करीब कहा जा सकता है.
रागदारी में रागों के शुद्ध स्वरूप को लेकर थोड़ी रियायत ले लेना इसे ठुमरी के करीब लाता है. रागों के संदर्भ की बात करेंगे तो ग़ज़ल गायकी टप्पा गायन के भी करीब है.
कौन से रागों में ज्यादा गाई जाती है ग़ज़ल?
हिंदुस्तानी संगीत में राग का मतलब एक खास ध्वनि रचना से होता है. जो अपने स्वरों से दिलोदिमाग पर असर करती है. ग़ज़ल गायकों ने भी ग़ज़लों को ज्यादातर किसी ना किसी राग पर ही कंपोज किया है. इसमें किसी तरह की कोई बंदिश भी नहीं है. राग भूपाली, राग यमन, देस, पीलू, सारंग, झिंझोटी, खमाज, काफी, बिलावल, भीमपलासी, गौड़मल्हार, शिवरंजनी, पूरिया धनाश्री, तोड़ी, ललित, दरबारी, भैरव, अहीर भैरव जैसे बेहद प्रचलित रागों को आधार मानकर खूब ग़ज़लें कंपोज की गई हैं.
आपको शुद्ध शास्त्रीय राग कामोद में कंपोज की गई एक ग़ज़ल सुनाते हैं. इसे कुलदीप सिंह ने कंपोज किया था. शायर थे जावेद अख्तर और ग़ज़ल गाई थी जगजीत सिंह ने.
साजों के लिहाज से भी बात कर लेते हैं. सबसे पहले तो गायकी में साज का महत्व जान लेते हैं. गायकों के स्वरों को आधार देने और गायकी के प्रभाव को बढ़ाने का काम साज ही तो करते हैं. साज को चार तरह से बांटा गया है, ताल वाद्य, सुशीर वाद्य, अवनाद्य वाद्य और घन वाद्य. ग़ज़ल गायकी में इस्तेमाल किए जाने वाले वाद्य भी गायकी की दूसरी शैलियों जैसे ही है.
ग़ज़ल गाते वक्त कलाकार आम तौर पर वॉयलिन, हारमोनियम, तबला, ढोलक, संतूर, सितार, की-बोर्ड और परकशन इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल करते हैं. आपको जगजीत सिंह की ही गाई एक और ग़ज़ल सुनाते हैं जो उन्होंने सिडनी के ओपेरा हाउस में गाई थी. यूं तो उनकी ये ग़ज़ल और भी कई एल्बम में है लेकिन इस लाइव कार्यक्रम में उनके साथी कलाकारों ने जिस शानदार तरीके से संगत की है कि आपको मजा आएगा. ठुकराओ अब के प्यार करो मैं नशे में हूं...
ग़ज़ल की बात यहीं तक. आने वाले हफ्तों में आपको कव्वाली और दूसरी शैलियों के बारे में भी बताएंगे. आप अपनी प्रतिक्रिया हमें
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