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'बोले मेरे लिप्स, आई लव अंकल चिप्स' से लेकर 'बहती हवा सा था वो' के संगीतकार की दिलचस्प कहानी

संगीतकार शांतनु मोइत्रा के जन्मदिन पर खास

Updated On: Jan 22, 2019 08:22 AM IST

Shivendra Kumar Singh Shivendra Kumar Singh

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'बोले मेरे लिप्स, आई लव अंकल चिप्स' से लेकर 'बहती हवा सा था वो' के संगीतकार की दिलचस्प कहानी

साल 2005 की बात है. प्रदीप सरकार एक फिल्म बना रहे थे. विज्ञापन की दुनिया में उनका बड़ा नाम था लेकिन फिल्म डायरेक्शन में ये उनका पहला कदम था. फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे विधु विनोद चोपड़ा.साहित्यकार शरद चंद्र चटर्जी के उपन्यास परिणिता पर आधारित इस फिल्म के संगीत को तैयार करने की जिम्मेदारी एक अपेक्षाकृत नए संगीतकार पर थी. जिनका नाम है शांतनु मोइत्रा.

शांतनु ने इस फिल्म में ‘पीयू बोले’, ‘सूना मन का आंगन’, ‘कैसी पहेली जिंदगानी’, ‘कस्तो मजा’ जैसे लाजवाब गाने तैयार किए. इन गानों को खूब लोकप्रियता मिली. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कारोबार भी किया. नतीजा ये हुआ कि जल्दी ही शांतनु मोइत्रा के पास तमाम फोन आने लगे. शांतिप्रिय जिंदगी बिताने वाले शांतनु परेशान हो गए.

उनकी परेशानी की वजह क्या थी ये भी आपको बताएंगे लेकिन पहले आपको बताते हैं कि इस परेशानी से बचने के लिए उन्होंने क्या किया. शांतनु मोइत्रा ने परिणिता के बाद जब जब हिट संगीत दिया तो वो फिल्म की रिलीज के बाद पहाड़ों पर चले गए. जहां मोबाइल का नेटवर्क ही नहीं आता था. फिल्म थ्री इडियट्स की सफलता के बाद उन्होंने ऐसा ही किया था. ऐसे लाजवाब संगीतकार और दिलचस्प शख्सियत का आज जन्मदिन है.

दरअसल, शांतुन मोइत्रा का बैकग्राउंड ब्रांड मैनेजमेंट का था. उन्हें संगीत आता था। लेकिन संगीत उनकी आय का जरिया नहीं था. उन्हें बहुत ज्यादा काम करने से डर लगता था. वो हमेशा इस राय को मानने वालों में से थे कि वक्त बीतने के बाद लोग सिर्फ आपके अच्छे काम को याद रखते हैं ना कि आपने कितना काम किया. लिहाजा वो दिल्ली के चितरंजन पार्क में अपने परिवार वालों के साथ सुकून का जीवन जी रहे थे.

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संगीत में उनकी पहली सीढ़ी थी एक विज्ञापन. जिसका जिंगल आज भी लोगों की जुबां पर है. बोले मेरे लिप्स, आई लव अंकल चिप्स. इस विज्ञापन के हिट होने के बाद भी शांतनु अपना संगीत 30 सेकेंड के जिंगल में ही बांध कर रखना चाहते थे. लेकिन किस्मत में जो लिखा है उसे बांधना उनके हाथ में नहीं था. संयोग कुछ ऐसा बना कि उन्होंने गायिका शुभा मुद्गल के साथ एक एल्बम बनाई. वो एल्बम थी- अबके सावन. इस एल्बम ने संगीत की दुनिया में धूम मचा दी. पॉप म्यूजिक की दुनिया में ये एक ताकतवर कदम था. इस एल्बम के आने के बाद भी शांतुन मोइत्रा दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. जिसकी वजह थी चितरंजन पार्क में दोस्तों के साथ लगने वाले अड्डे से उनकी मोहब्बत.

शांतनु मोइत्रा को दिल्ली से निकालने का श्रेय जावेद अख्तर को जाता है. हुआ यूं कि एक कार्यक्रम में शांतनु मोइत्रा की मुलाकात जावेद अख्तर से हुई. वहां किसी ने जावेद अख्तर को बता दिया कि अबके सावन एल्बम का संगीत शांतनु मोइत्रा ने तैयार किया है. जावेद अख्तर शांतनु मोइत्रा के पीछे पड़ गए कि उन्हें मुंबई चलना चाहिए. सच्चाई ये है कि तब तक शांतनु का मुंबई जाने का कोई प्लान नहीं था. जावेद अख्तर लगभग पीछे ही पड़ गए. उन्होंने उस कार्यक्रम के बाद भी कई बार शांतनु मोइत्रा को फोन करके मुंबई आने का प्लान पूछा. यहां तक कि जावेद अख्तर ने अपने दोस्त सुधीर मिश्रा से जाकर ये भी कह दिया कि वो अगर अपनी आने वाली फिल्म ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में अच्छा संगीत चाहते हैं तो उन्हें शांतनु मोइत्रा से बात करनी चाहिए.

जाहिर है जावेद अख्तर की सिफारिश मायने रखती थी. सुधीर मिश्रा ने शांतनु से बात की. ये तय हुआ कि शांतनु मोइत्रा एक महीने के लिए मुंबई में रहकर हजारों ख्वाहिशें ऐसी का संगीत तैयार करेंगे. ये अलग बात है कि वो एक महीने आज एक दशक के बाद भी खत्म नहीं हुए हैं. ये भी दिलचस्प है कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी के बाद फिल्म परिणिता के लिए जब शांतुन विधु विनोद चोपड़ा से मिलने जा रहे थे तब ही जावेद अख्तर ने उनसे कह दिया था कि अब वो दिल्ली वापस लौटने का ख्वाब देखना छोड़ दें. बाद में शांतनु को अपने पुराने दोस्तों में प्रसून जोशी, जयदीप साहनी और दिबाकर बनर्जी का साथ भी मुंबई में ही मिल गया तो उन्हें मुंबई रास आने लगी.

परिणिता के बाद लगे रहो मुन्ना भाई, एकलव्य, थ्री इडियट्स, राजनीति, मद्रास कैफे, पीके जैसी फिल्मों ने शांतनु मोइत्रा को फिल्म इंडस्ट्री में अलग पहचान दी है. वो साल में चार पांच फिल्में करते हैं लेकिन उन फिल्मों के संगीत में अलग खुशबू होती है. इसके पीछे की कहानी को भी जानना जरूरी है. शांतनु मोइत्रा के परिवार में संगीत था. उनके पिता और मां दोनों शास्त्रीय संगीत और नृत्य से जुड़े हुए थे.

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बावजूद इसके शांतनु मोइत्रा संगीत से इसलिए दूर भागते थे क्योंकि उन्होंने बचपन में अपने परिवार का आर्थिक संकट देखा था. उन्हें अपने पिता की संघर्ष भरी जिंदगी याद थी. लिहाजा उन्होंने संगीत से खुद को दूर रखा. हालांकि कामयाबी मिलने के बाद भी वो अपने पिता से संगीत की बारीकियां समझते रहे.

पिता ने हमेशा एक ही सीख दी कि कोशिश करो कि जब भी कुछ नया क्रिएट हो तो उसमें क्लासिकल या लोकसंगीत की जगह बने. यही वजह है कि शांतनु मोइत्रा के संगीत में लोकसंगीत की छाप जमकर सुनाई देती है. उनके पिता ने इस बात को तब जाकर माना जब उन्हें एक रोज मछली बेचने वाले ने इसलिए डिस्काउंट दिया क्योंकि उसे पता चला कि परिणिता का संगीत उनके बेटे ने दिया है. शांतुन आज भी हिंदुस्तान के लोकसंगीत को अपनी फिल्मों के संगीत में पिरोते हैं. ठीक वैसे ही जैसे कई दशक पहले अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी या फिर एसडी बर्मन मिलाते थे. ज्यादा काम करने से अब भी दूर भागते हैं. फिल्म के हिट होने के बाद मोबाइल से उन्हें अब भी डर लगता है.

 

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