1987 का साल भारतीय टेलीविजन के इतिहास में बड़ी अहमियत रखता है. इसी साल टीवी पर रामायण सीरियल की शुरुआत हुई थी. ये कहना गलत नहीं होगा कि इस एक सीरियल के प्रसारण के दौरान पूरा हिंदुस्तान रुका रहता था. आज की पीढ़ी इस लोकप्रियता का अंदाजा शायद ना लगा पाए. आप इंटरनेट पर जाएं. रामायण सीरीयल के बारे में ‘सर्च’ करें. आपको कई दिलचस्प कहानियां पढ़ने को मिलेंगी. मसलन- चंडीगढ़ में एक दुल्हन शादी के मंडप में नहीं पहुंची. बाराती लंबे समय तक इंतजार करते रहे. जब इंतजार की हद हो गई तो कुछ लोगों ने पता करने की कोशिश की कि आखिर दुल्हन है कहां, पता चला कि दुल्हन ने कह रखा था कि वो उस रोज के रामायण का ‘टेलीकास्ट’ देखकर ही मंडप में जाएगी.
ऐसे ही जयपुर के बिड़ला मंदिर में चालीस हजार लोग सिर्फ इसलिए जमा हो गए थे क्योंकि वहां रामायण सीरियल में राम का किरदार निभा रहे अरुण गोविल और सीता का किरदार निभा रही दीपिका आने वाले थे. चालीस हजार की तादाद में कुछ हाई प्रोफाइल नेता भी शुमार थे. भारत के तमाम शहरों और गांवों में रामायण के टेलीकास्ट के समय लोग अगरबत्ती जलाकर बैठा करते थे. चप्पलें कमरे के बाहर उतार दी जाती थीं. यकीन ना कर पाने वाली ये बातें सच हैं. इस ऐतिहासिक धारावाहिक को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने का काम करने वाले थे- रामानंद सागर.
रामायण की लोकप्रियता के कुछ और किस्से सुनाता हूं. कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह रामायण के टेलीकास्ट के दौरान कोई फोन कॉल रिसीव नहीं करते थे. दो बड़े नेताओं के राष्ट्रपति भवन में शपथ समारोह में देरी से पहुंचने के पीछे भी रामायण का टेलीकास्ट ही था. ऐसे ही जम्मू कश्मीर में एक पावर स्टेशन को इसलिए फूंक दिया गया था क्योंकि रामायण के वक्त बिजली चली गई थी.
मुंबई में एक बच्चे की गंभीर चोट लगने से याददाश्त चली गई थी. कहा जाता है कि बाद में रामायण देखकर उसकी याददाश्त वापस आई. यहां तक कि घर में किसी के निधन के बाद भी लोगों ने अंतिम संस्कार से पहले रामायण का टेलीकास्ट देखा. ये संभव है कि इसमें से कुछ किस्से मनगढ़ंत हों लेकिन इस बात को शायद ही कोई मना करेगा कि रामायण देखने वाला हर एक दर्शक उसे सिर्फ एक सीरियल मानकर नहीं देखा करता था.
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78 एपीसोड के इस सीरियल के बीच बीच में रवींद्र जैन का शानदार संगीत और गायकी भी उतनी ही लाजवाब थी. शायद यही वजह है कि रामायण पौराणिक धारावाहिकों में दुनिया भर में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला सीरियल बन गया था. ये रिकॉर्ड बाकयदा लिम्का बुक में दर्ज है.
रामानंद सागर का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था. बचपन का नाम था चंद्रमौली चोपड़ा. मां चल बसीं तो पिता ने दूसरी शादी कर ली. इस भावनात्मक संघर्ष के अलावा और भी बड़े संघर्ष उनके बचपन में थे. पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. रामानंद सागर ने दिन में चपरासी से लेकर ट्रक क्लीनर तक का काम किया और रात को पढ़ाई. इस मेहनत ने रंग दिखाया. वो संस्कृत और परसियन में गोल्ड मेडलिस्ट रहे. आजादी के बाद रामानंद सागर हिंदुस्तान आ गए. उन्होंने मुंबई का रुख किया. इस दौरान उन्होंने बंटवारे के दर्द पर एक किताब भी लिखी. जिसका शीर्षक था और इंसान मर गया.
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खैर, मुंबई पहुंचने के बाद वहां उन्हें पृथ्वीराज कपूर के साथ काम करने का मौका मिला. ये रामानंद सागर की काबिलियत ही थी कि अगले दस साल में उनका अपना प्रोडक्शन हाउस बनकर तैयार था. इससे पहले फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन राज कपूर के पैर जमाने में भी रामानंद सागर का बड़ा योगदान रहा. राज कपूर के निर्देशन में जो शुरुआती फिल्में सुपरहिट हुईं उसमें फिल्म बरसात का नाम आता है. बरसात की कहानी रामानंद सागर की ही लिखी हुई थी. इसी फिल्म की कामयाबी के बाद ही राज कपूर ने आरके स्टूडियो खरीद लिया था. बतौर संगीतकार ये शंकर जयकिशन की पहली फिल्म थी. जिसके गानों ने धमाल मचा दिया था.
अगले करीब 35 साल तक रामानंद सागर फिल्मी दुनिया में सक्रिय रहे. उन्होंने फिल्में लिखीं, डायलॉग्स लिखे, डायरेक्शन किया और फिल्में प्रोड्यूस भी की. करीब दो दर्जन फिल्मों में किसी ना किसी तरह उनका योगदान रहा. इसमें आरजू, आंखें और पैगाम जैसी फिल्में खासी हिट हुईं. 1960 में उन्हें फिल्म पैगाम की कहानी के लिए पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. फिल्म पैगाम में दिलीप कुमार, वैजयंती माला ने अभिनय किया था. इसके बाद फिल्म आरजू में उन्होंने साधना, राजेंद्र कुमार और फिरोज खान जैसे कलाकारों को डायरेक्ट किया.
इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर नॉमिनेशन मिला. अपने दूसरे फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए उन्हें 1969 में रिलीज फिल्म आंखे तक इंतजार करना पड़ा. माला सिन्हा और धर्मेंद्र को लेकर बनाई गई इस फिल्म के लिए रामानंद सागर को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का अवॉर्ड मिला. 1985 में जब उन्होंने फिल्मी दुनिया से अलग होकर रामायण सीरियल बनाया तो फिर वो वापस फिल्मी दुनिया में नहीं जा पाए.
रामायण की कामयाबी ने उन्हें छोटे पर्दे पर लगातार व्यस्त रहा. रामायण के बाद उन्होंने विक्रम और बेताल, लवकुश, कृष्णा, अलिफ लैला और साईं बाबा जैसे सीरियल भी बनाए. अपनी जिंदगी के आखिरी समय में भी वो ‘एक्टिव’ रहे. 80 बसंत देखने के बाद भी वो टेलीविजन सीरियल निर्माण में लगे रहे. साईं बाबा उनका आखिरी सीरियल साबित हुआ. 2005 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा. रामानंद सागर को भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया. लेकिन उनका असली पुरस्कार वो प्यार है जो उन्हें करोड़ों दर्शकों ने रामायण के लिए दिया.
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