फिल्म थ्री इडियट्स हिंदुस्तानी सिनेमा की बड़ी फिल्मों में से एक है. फिल्म की कहानी जबरदस्त है. कामयाबी जबरदस्त है. फिल्म में फरहान इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो कर रहा है लेकिन बनना चाहता है फोटोग्राफर. फिल्म का वो सीन याद करिए जब फरहान अपने अब्बा से बात करता है. वो कहता है, 'मुझे नहीं समझ आती इंजीनियरिंग. बन भी गया तो बहुत खराब इंजीनियर बनूंगा, अब्बा! रैंचो बहुत सिंपल सी बात कहता है. जो काम में आपको मजा आए उसे अपना प्रोफेशन बनाओ. फिर काम काम नहीं खेल लगेगा.'
इस इमोशनल डायलॉग के बाद फरहान के पिता उसके लिए प्रोफेशनल कैमरा खरीदने की बात कहते हैं. कम ही लोग जानते हैं कि ये इस फिल्म के डायरेक्टर राजकुमार हीरानी की जिंदगी का सच्चा किस्सा है. जिसे उन्होंने ज्यों का त्यों अपनी फिल्म में उतार दिया है. ये सच्ची कहानी तब की है जब राजकुमार हीरानी करीब बीस साल के थे. उन्होंने चार्टेड एकाउंटेसी में ‘इनरोल’ किया था. परीक्षाएं सिर पर थीं. उन्हें इस कोर्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी. सबकुछ पिता की मर्जी पर हो रहा था. आखिरकार एक दिन शाम को राजकुमार हिरानी ने बड़ा फैसला किया. जिसे वो अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला मानते हैं.
हुआ यूं कि नागपुर शहर की उस शाम राजकुमार हिरानी के पिताजी अपने कमरे में अकेले थे. सूखे गले और धीमी चाल से राजू उनके पास गए. उन्होंने बहुत डरते-डरते अपने पिताजी से कहाकि वो चार्टेड एकाउंटेसी का इम्तिहान नहीं देना चाहते. राजू हिरानी की उम्मीदों से उलट पिताजी ने इतना सुनने के बाद बगैर ज्यादा पूछताछ किए कहाकि कल से वो उनके ऑफिस को ज्वॉइन कर लें. राजू के मन का बोझ उतर चुका था. इस बात से खुश होकर राजू पतंग उड़ाने चले गए.
हिंदुस्तान आने के बाद उन्होंने अपने परिवार के साथ रिफ्यूजी कैंप में दिन बिताए. हालात बहुत चुनौती भरे थे. खाने-पीने जैसी बुनियादी बातों की चुनौती थी. वो पढ़ना चाहते थे लेकिन पढ़ने से पहले पेट भरना था. आखिरकार राजू हिरानी के पिता ने चूड़ी बनाने के एक कारखाने में काम किया. उसके बाद उन्होंने कुछ समय आइसक्रीम बेचकर भी पेट भरा. फिर वो किसी तरह अपनी बहन के पास नागपुर पहुंचे. जहां उन्होंने एक जनरल स्टोर में काम किया.
नागपुर में ही उन्होंने नाइट स्कूल में दाखिला लिया और पढ़ाई की. बाद में उन्होंने टाइपिंग का इंस्टिट्यूट खोला. जिसका नाम रखा राजकुमार कॉर्मस इंस्टिट्यूट. दिलचस्प बात ये है कि तब तक राजकुमार हिरानी का जन्म भी नहीं हुआ था. बाद में जब उनका जन्म हुआ तो उनका नाम इसी इंस्टिट्यूट के नाम पर रखा गया.
खैर, पिता से मिली छूट के बाद राजकुमार हिरानी अपने कुछ ऐसे दोस्तों से जुड़ गए जो नियमित तौर पर थिएटर किया करते थे. इससे पहले राजू का थिएटर करने का इकलौता अनुभव तब का था जब वो नौवीं क्लास में पढ़ते थे. उस समय उन्होंने नूरजहां नाटक में हिस्सा लिया था. राजू हिरानी का मन थिएटर में जम चुका था. वो तमाम ऐसे लोगों के संपर्क में आ चुके थे जो थिएटर में खासे सक्रिय थे. ऐसे ही एक दोस्त देबाशीष के साथ मिलकर उन्होंने बांग्ला नाटकों का हिंदी अनुवाद भी किया.
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इन तमाम नए अनुभवों के बाद उन्होंने एक बार फिर अपने पिताजी से बात की और थिएटर कोर्स से जुड़ने के लिए हरी झंडी ली. हालांकि एफटीआई में दाखिला का उनका पहला प्रयास नाकाम रहा. अगले साल उन्होंने फिर इम्तिहान दिया. इस बार डायरेक्शन में नहीं बल्कि एडिटिंग में. राजू को एफटीआई में एडमिशन मिल गया.
संजय लीला भंसाली एफटीआई में राजू हिरानी के साथ थे. भंसाली ने ही राजू को बताया कि विधु विनोद चोपड़ा अपनी फिल्म 1942-ए लव स्टोरी के प्रोमो के लिए एडिटर ढूंढ रहे हैं. राजू हिरानी इस तरह फिल्मों में आ गए. हालांकि इस तरह के छिट-पुट काम से अलग उन्होंने एक कंपनी भी खोल ली थी. जो टेलीविजन के लिए विज्ञापन बनाया करती थी.
ये राजू हिरानी की किस्मत ही थी कि फिल्मों में भले ही उन्हें बहुत काम नहीं मिल रहा था लेकिन उनकी कंपनी ठीक-ठाक बिजनेस कर रही थी. फाइनेंसियली राजू बेहतर स्थिति में थे. फेवीकोल का मशहूर विज्ञापन ‘जोर लगा के हइशा’ उन्हीं का बनाया हुआ था.
विधु विनोद चोपड़ा ने राजू से फिल्म करीब का प्रोमो भी एडिट कराया. इसके बाद बतौर एडिटर उन्होंने मिशन कश्मीर फिल्म एडिट की. फिल्म निर्माण की तमाम बारीकियां उन्होंने इस दौरान सीख ली थी. वो वक्त आ गया था जब राजू को लगा कि अब उन्हें अपनी फिल्म बनानी चाहिए.
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राजू ने जो पहली फिल्म बनाई उसने ही धमाल मचा दिया. आपको याद ही होगा वो फिल्म थी-मुन्नाभाई एमबीबीएस. इस फिल्म के बाद राजू हिरानी हिट फिल्म की गारंटी हो गए. उन्होंने मुन्नाभाई का सीक्वल बनाया लगे रहो मुन्ना भाई. फिर उनकी फिल्म आई थ्री इडियट्स, फिर पीके, फिर संजू. इन पांचों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की. राजू हिरानी अब तक 15 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुके हैं. कई नेशनल अवॉर्ड उनकी झोली में हैं.
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