मुंबई की 'मायानगरी' एक ऐसा कसीनो है जहां बड़े-बड़े बाजीगर अपनी किस्मत आजमाने आते हैं. लेकिन, जीतता वही है जिसे लोगों के दिलों पर राज करने का हुनर मालूम होता है. बचे हुए लोग ‘वड़ा पाव’ खाकर घर वापस जाने के लिए ट्रेन पकड़ लेते हैं. आज से 75 साल, 6 महीने और 19 दिन पहले पंजाब के अमृतसर में एक ऐसे ही बाजीगर का जन्म हुआ था. बॉलीवुड की डिक्शनरी में उन्हें 'राजेश खन्ना' कहते हैं, दुनिया उन्हें प्यार से 'काका' पुकारती है.
आज काका की पुण्यतिथि है, भले ही वो इस दुनिया में मौजूद न हों लेकिन उनका जिक्र करो तो लाखों राजेश खन्ना जिंदा मालूम पड़ते हैं. कोई उनकी मुस्कान का कायल है तो कोई डायलॉग का. किसी को उनकी एक्टिंग बहुत भाती है तो किसी को उनका शरारती अंदाज. लगता ही नहीं कि काका इस दुनिया में नहीं हैं. अपने लाखों फैन्स के दिलों में वो आज भी धड़कते दिखाई पड़ जाते हैं.
सूरज जैसी चमक, मनमोहक मुस्कान और मीठी शरारतों के बीच डायलॉग बोलने की ऐसी कला जो आने वाली पीढ़ियों को भी दीवाना कर दे. 'बाबूमोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं ' 1971 में आई फिल्म 'आनंद' में काका का बोला हुआ यह डायलॉग आज भी लोगों को अपना कायल बना जाता है. 1972 में काका की एक फिल्म आई थी 'अमर-प्रेम', इस फिल्म में उन्होंने एक डायलॉग बोला था- पुष्पा मुझसे ये आंसू देखे नहीं जाते. आई हेट टियर्स. ये वो डायलॉग था जिसे हर प्रेमी अपनी प्रेमिका को बोलते समय खुद को राजेश खन्ना समझता था.
कुछ ऐसा ही किरदार था राजेश खन्ना का, जिसे उन्होंने ताउम्र बरकरार रखने की कोशिश की. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि लड़कियां उन्हें खून से खत लिखा करती थीं. पत्रकार यासिर उस्मान की किताब 'राजेश खन्ना: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार.' के मुताबिक मशहूर स्क्रिप्ट राइटर सलीम खान ने कहा था, ये जो शोहरत की शराब है, इसका नशा अलग है और बहुत गहरा है.
जैसे-जैसे शोहरत बढ़ती है तो पैसा भी बढ़ता है जोकि डबल नशा है. ये कॉकटेल जैसा है. ये नशा ज्यादा हो जाए तो कोई भी आदमी लड़खड़ा के गिर जाएगा.हालांकि उस दौर में लोग शाहरुख खान की लोकप्रियता को पांच गुना बढ़ाकर राजेश खन्ना की लोकप्रियता का अंदाजा लगाते थे. लेकिन वो कहते हैं न..समय हमेशा एक सा नहीं रहता. काका की खुशियों को भी समय की नजर लग गई और जिंदगी ने अचानक पलटा मार दिया.
ऐसा सफर जिसे कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
राजेश खन्ना की फिल्म 'सफर' का एक गाना है..'जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं'. ये गाना काका की जिंदगी पर बिल्कुल सटीक बैठता है. कहते हैं कि राजेश खन्ना की जिंदगी में एक दौर ऐसा आया जब उन्होंने खुद को 14 महीनों तक दीवारों के बीच कैद कर लिया था. उस दौर की मशहूर एक्ट्रेस डिंपल कपाड़िया चाहती थीं कि राजेश उनके साथ समय गुजारें लेकिन काका तो जैसे जिंदगी से रूठ ही गए थे.
उन्हें न किसी से बात करना पसंद था और न ही किसी से मिलना. शराब, पार्टी और फ्लॉप फिल्मों ने काका की जिंदगी का रुख मोड़ दिया था. एक के बाद एक सिगरेट को अपने मुंह से लगाते काका की जिंदगी जहर बनती जा रही थी. वह गहरी सोच में डूबे रहते थे. शादी के बाद डिंपल उनके जीवन में आ तो गईं थी लेकिन दिल अभी भी बराबरी पर नहीं मिला था. डिंपल काका का इंतजार करती थीं, वह उनसे बातें करना चाहती थीं लेकिन उन दोनों के बीच केवल सिगरेट का उड़ता हुआ धुंआ नजर आता था.
जब काका अपनी आखिरी सिगरेट को ऐश ट्रे में बुझाते थे तो डिंपल को लगता था कि काका अब कुछ बोलेंगे. लेकिन, वह बस इतना ही पूछते थे 'बच्चों ने आज क्या किया?' यह दौर ऐसा था जब गिरते हुए करियर ग्राफ और शादी का बोझ काका पर भारी पड़ने लगा था. डिंपल और काका के झगड़े होने लगे थे. मीडिया रिपोर्ट में यहां तक कहा गया कि काका ने डिंपल की पिटाई कर दी. आखिर में डिंपल ने काका का घर छोड़ दिया और अपने पापा के पास रहने चली गईं.
काका अपने दिल की कोई बात डिंपल से नहीं कह पाते थे. उन्होंने इंटरव्यू में कहा था कि उनका दिल आत्महत्या करने का होता था. जिस तरह अंजू महेन्द्रू पहली गर्लफ्रेंड होने के बावजूद काका की कामयाबी नहीं संभाल पाई थीं, उसी तरह डिंपल कपाड़िया काका की नाकामयाबी को नहीं संभाल सकीं. डिंपल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि राजेश खन्ना के लिए मुमताज ही सही हमसफर होतीं, काका को उन्हीं से शादी करनी चाहिए थी.
अमिताभ बच्चन से क्यों 1.50 रुपए कम था राजेश खन्ना का हेयरकट
राजेश खन्ना अपने जमाने के सुपरस्टार थे, वह लाखों दिलों पर राज करते थे. 'आखिरी खत' से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले काका ने अपनी जिंदगी में बेहतरीन फिल्में की. आनंद, कटी पतंग, अराधना, अमर प्रेम, हाथी मेरे साथी जैसी तमाम खूबसूरत फिल्में काका के फिल्मी सफर को बयां करती हैं. उन्होंने 168 से ज्यादा फिल्मों में काम किया.
हालांकि 'नमक हराम' फिल्म से लोकप्रियता की चाबी काका के हाथ से सरक कर अमिताभ बच्चन के हाथ में चली गई. जब नमक हराम बनने की शुरुआत हुई, उस समय अमिताभ बच्चन एक फ्लॉप हीरो थे. उनके पास समय ही समय था इसलिए अमिताभ के हिस्से की शूटिंग पहले ही पूरी कर ली गई थी.
डिस्ट्रीब्यूटर्स को लगता था कि अमिताभ इस फिल्म के मुख्य हीरो हैं और राजेश खन्ना केवल गेस्ट अपीयरेंस दे रहे हैं. डिस्ट्रीब्यूटर्स ने अमिताभ के कान के ऊपर रखे बालों का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि आपका हीरो बंदर की तरह लगता है, अगर बाल कटा लेगा तो हमें भी पता लग जाएगा कि उसके कान हैं भी या नहीं. लेकिन अमिताभ बच्चन के आने वाले वक्त को काका की निगाहों ने पढ़ लिया था.
काका ने कहा था- मेरा दौर बीत चुका, ये रहा कल का सुपरस्टार
काका ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी से कहा था, मेरा दौर बीत चुका है, ये रहा कल का सुपरस्टार. तब तक अमिताभ बच्चन का कान को ढंकने वाला हेयरस्टाइल सुपरहिट हो चुका था. मुंबई के हेयर-कटिंग सैलून्स के बाहर बोर्ड लग चुके थे. राजेश खन्ना हेयर कट- 2 रुपए और अमिताभ बच्चन हेयर कट- 3.50 रुपए.
हालांकि अमिताभ के आगे निकलने से ज्यादा काका को इस बात की ज्यादा फिकर थी कि उनके फैंस उन्हें छोड़कर न चले जाएं और इस चिंता ने एक ऐसी ख्वाहिश का रूप ले लिया था जो उनके अंतिम समय में भी अधूरी रह गई. ये वो दौर था जब काका अपना आखिरी समय मुंबई के लीलावती अस्पताल में गुजार रहे थे.
इस दौरान उन्होंने कहा था कि वो और फिल्में बनाना चाहते हैं लेकिन अब उनके पास वक्त नहीं है. दरअसल ये बात केवल फिल्में बनाने की नहीं थी, काका किसी भी जरिए अपने फैंस की धड़कनों को दोबारा महसूस करना चाहते थे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. 18 जुलाई 2012 को काका अपने बंगले 'आशीर्वाद' में दुनिया को अलविदा कह गए.
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