live
S M L

कौन सा था वो शास्त्रीय राग जिसने दिलाई थी केएल सहगल को बड़ी पहचान

केएल सहगल ने अपने छोटे से करियर में प्रभावी अभिनय के साथ-साथ कई यादगार नगमें भी फिल्म इंडस्ट्री को दिए, ‘जब दिल ही टूट गया’, ‘गम दिए मुस्तकिल’ जैसे गाने आज भी संगीत प्रेमियों को याद हैं

Updated On: Jul 01, 2018 09:10 AM IST

Shivendra Kumar Singh Shivendra Kumar Singh

0
कौन सा था वो शास्त्रीय राग जिसने दिलाई थी केएल सहगल को बड़ी पहचान

ये वो दौर था जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर केएल सहगल का जादू बोलता था. सिर्फ 42 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गए केएल सहगल का फिल्म इंडस्ट्री में करियर ज्यादा बड़ा नहीं था. ये अलग बात है कि अपने छोटे से करियर में उन्होंने प्रभावी अभिनय के साथ साथ कई यादगार नगमें भी फिल्म इंडस्ट्री को दिए. ‘जब दिल ही टूट गया’, ‘गम दिए मुस्तकिल’ जैसे गाने आज भी संगीत प्रेमियों को याद हैं. ये बात तो हर कोई जानता है कि शोहरत की बुलंदियों को छूने वाले गायक मुकेश शुरू में केएल सहगल की नकल किया करते थे. भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर केएल सहगल की गायकी की दीवानी थीं.

कहते हैं कि कुंदन लाल सहगल बिना शराब पीए गाना नहीं गाते थे. एक बार नौशाद साहब ने उनसे कहा कि वो बिना पीए ही गाने की कोशिश करें. पहले तो सहगल साहब ने ऐसा करने से सीधा इनकार कर दिया. बाद में जब उन्होंने बिना पीए गाया तब वो अमर गाना रिकॉर्ड हुआ- जब दिल ही टूट गया हम जीकर क्या करेंगे.

जब सहगल साहब की अर्थी उठी तो ये गाना भी बजाया गया. उन्होंने अपने मरने से पहले ही ऐसी इच्छा जताई थी. खैर, चलिए आज के राग की कहानी आपको सुनाते हैं. आपको बताते हैं कि फिल्मी गायकी में तमाम शोहरत हासिल करने वाले केएल सहगल को असल में किस गाने से पहचान मिली थी. वो गाना था- झूलना झुलाओ री. इस गाने की रिकॉर्डिंग 1932 में हुई थी. सुनिए केएल सहगल की आवाज में झुलना झुलाओ री.

ये गाना शास्त्रीय राग देवगंधार पर कंपोज किया गया था. इसी दौरान गाए गए गैर फिल्मी गीतों से केएल सहगल को रातों रात पहचान मिली. केएल सहगल उस वक्त 27-28 बरस के थे. राग देवगंधार की जमीन पर 1950 में आई फिल्म ‘सरगम’ का एक गाना भी कंपोज किया गया था. फिल्म सरगम उस दौर के जाने माने निर्देशक पीएल संतोषी ने राज कपूर को लेकर बनाई थी. आज के दौर के जाने माने फिल्मकार राजकुमार संतोषी पीएल संतोषी के ही बेटे हैं. खैर, फिल्म सरगम के उस गाने के बोल थे-जब दिल को सताए गम. संगीतकार थे सी रामचंद्र और गायिका थीं लता मंगेशकर.

यह भी पढ़ें- 'दिल जो ना कह सका’... एक अमर गाने के बनने की क्या है कहानी?

लता मंगेशकर और सी रामचंद्र की जोड़ी ने फिल्म इंडस्ट्री को कई यादगार नगमें दिए हैं. खास तौर पर जब संगीतकार सी रामचंद्र दर्दभरे नगमें बनाते थे तो उनके दिमाग में गायक के तौर पर सिर्फ लता मंगेशकर का नाम ही आता था. तमाम फिल्मी गानों के अलावा लता मंगेशकर का गाया अमर गीत ऐ मेरे वतन के लोगों भी सी रामचंद्र ने ही कंपोज किया था. फिलहाल आप सुनिए फिल्म सरगम का गाया लता मंगेशकर का गाना- जब दिल को सताए गम.

आइए अब आपको राग देवगंधार का शास्त्रीय पक्ष बताते हैं. राग देवगंधार आसावरी थाट का राग माना जाता है. इसमें ‘ध’, ‘नी’ कोमल और दोनों गंधार इस्तेमाल किए जाते हैं. आरोह और अवरोह में सात-सात सुर होने की वजह से इस राग की जाति संपूर्ण होती है. राग देवगंधार में वादी सुर ‘ध’ और संवादी ‘ग’ है. वादी और संवादी शब्द की आसान समझ के लिए हम आपको बताते रहे हैं कि शतरंज के खेल में जो महत्व बादशाह और वजीर का होता है वही महत्व किसी भी शास्त्रीय राग में वादी संवादी सुरों का होता है.

यह भी पढ़ें- उस राग की कहानी जिसमें बना है सचिन तेंदुलकर का पसंदीदा फिल्मी गाना

राग देवगंधार को गाने बजाने का समय दिन का दूसरा पहर माना गया है. इस राग के बारे में एक और कहानी बहुत प्रचलित है. कहते हैं कि पहले इस राग का नाम द्विगंधार था. ऐसा इसलिए क्योंकि इस राग में दोनों ‘ग’ लगते हैं. बाद में यही द्विगंधार धीरे-धीरे देवगंधार हो गया. राग देवगंधार उत्तरार्ध प्रधान राग है. राग देवगंधार राग आसावरी और राग जौनपुरी से मिलता जुलता राग है लेकिन आलाप के आखिर में ‘ग’ का प्रयोग इसे अपने जैसी रागों से अलग करता है. आइए आपको राग देवगंधार का आरोह-अवरोह और पकड़ भी बताते हैं.

आरोह- सा रे म प, नी S नी सां

अवरोह- सां नी S प, म प S रे सा, रे ग म प रे सा

पकड़- म प S सा रे सा, रे नी सा रे ग S म

इस राग को और विस्तार से समझने के लिए आप राग देवगंधार के बारे में बनाया गया ये वीडियो देख सकते हैं. वीडियो भले ही पंजाबी में है लेकिन इसे आप आसानी से समझ सकते हैं. राग देवगंधार में दरअसल कीर्तन काफी होते हैं.

आइए अब आपको राग देवगंधार के शास्त्रीय पक्ष की अदायगी से परिचित कराते हैं. आपको राग देवगंधार की दो क्लिप दिखाते हैं. पहली क्लिप में ग्वालियर घराने के बेहद प्रतिष्ठित कलाकार पंडित नारायण राव व्यास का गाया राग देवगंधार है. पंडित नारायण राव व्यास पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य थे.

दूसरी क्लिप में आपको एक ऐसे कलाकार का गाया राग देवगंधार सुनाते हैं जिसके घर में कीर्तन की परंपरा थी. उस कलाकार का जन्म हुआ था गोवा में लेकिन उसने बचपन से ही खुद को शास्त्रीय संगीत को समर्पित कर दिया. ये कहानी है दिग्गज शास्त्रीय गायक पंडित जीतेंद्र अभिषेकी की, जिनकी एक और खासियत थी कि वो खुद को किसी घराने का कलाकार नहीं मानते थे. आज के दौर के प्रचलित गायक पंडित शौनक अभिषेकी उनके पुत्र हैं. जानी मानी गायिका शुभा मुदगल के तमाम शिष्यों में पंडित जीतेंद्र अभिषेकी भी शामिल हैं. आप सुनिए पंडित जीतेंद्र अभिषेकी का गाया राग देवगंधार.

वादन में राग देवगंधार के शास्त्रीय पक्ष को समझने के लिए देखिए महान कलाकार उस्ताद विलायत खान का बजाया राग देवगंधार. ये रिकॉर्डिंग कोलकाता की है जिसमें उस्ताद विलायत खान ने बाद में राग भैरवी भी बजाया है. उस्ताद विलायत खान को सितार वादन में गायकी अंग के लिए अब भी याद किया जाता है.

शास्त्रीय राग की कहानियों में आज इतना ही. अगले हफ्ते एक और नए राग और उसके किस्से कहानियों के साथ आपसे मुलाकात होगी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi