एक नाम है, जिसे लेते ही 1974 की मैगजीन का कवर याद आता है. निर्वस्त्र महिला मुंबई की सड़क पर दौड़ते हुए. बहुत से लोगों को नाम याद आ गया होगा. प्रोतिमा बेदी.
बहुत से लोग उन्हें इस तस्वीर के लिए जानते हैं. कुछ लोग उन्हें कबीर बेदी की पत्नी के तौर पर जानते हैं. कुछ लोग पूजा बेदी की मां की वजह से जानते हैं. बहुत से लोग ओडिसी नृत्यांगना के तौर पर जानते हैं. लेकिन उनकी असली पहचान जिंदगी को जीने की उनकी जंग और विद्रोही के तौर पर होनी चाहिए.
प्रोतिमा गुप्ता से प्रोतिमा बेदी और प्रोतिमा गौरी तक के सफर में संघर्ष है. विद्रोह है. कामयाबी है. नाकामयाबी भी है. लेकिन इन सबसे ऊपर जिंदगी की हर मुश्किलों से निकलकर एक खास जिजीविषा है, जो उन्हें किसी अलग मुकाम पर ले जाती है.
1949 साल था, जब दिल्ली में प्रोतिमा का जन्म हुआ था. कुछ लोग 1948 भी कहते हैं. दिन 12 अक्टूबर ही था. पिता व्यापारी थे. एक बंगाली महिला से उन्होंने शादी की थी, जिसकी वजह से घर छोड़ना पड़ा था. शायद विद्रोह के बीज वहीं प्रोतिमा में पनपे थे. प्रोतिमा अपने मां-बाप के चार बच्चों में दूसरे नंबर पर थीं. कहा जाता है कि मां-बाप से उन्हें प्यार नहीं मिला. काफी समय परिवार से अलग भी रहना पड़ा.
युवा हुईं, तो मॉडलिंग शुरू की. यहां बॉम्बे डाइंग के एक विज्ञापन के लिए पिता से थप्पड़ भी खाना पड़ा. उसी वक्त एक फिल्म मैगजीन लॉन्च हो रही थी. सोचा गया कि कैसे इसे हिट कराया जाए. मालिक रूसी करंजिया ने तय किया कि ऐसी महिला ढूंढी जाए, जिसकी निर्वस्त्र तस्वीर कवर पर छप सके. उनकी बेटी रीता मेहता ने प्रोतिमा का नाम सुझाया.
निर्वस्त्र फोटो से लगा पिता को सदमा
रीता ने एक इंटरव्यू में कहा था-मैंने प्रोतिमा से पूछा कि क्या तुम मुंबई की सड़क पर बिना कपड़ों के दौड़ सकती हो? वो तैयार हो गईं. सुबह-सुबह का समय तय किया गया. फ्लो फाउंटेन के पास जगह थी. तैयब बादशाह फोटोग्राफर थे. तस्वीरें खिंच गईं. प्रोतिमा उससे खुश नहीं थीं. तय किया कि फिर शूट होगा. इस बार जगह जुहू बीच थी. हालांकि बाद में जो फोटो छपी, उन्हें गोवा की बीच का बताया गया. प्रोतिमा की यह तस्वीर छपने का पिता को सदमा लगा. कुछ रोज बाद उनकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. प्रोतिमा को लगता रहा कि इस दुर्घटना में सदमे का भी रोल है. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने अपनी ‘आजाद जिंदगी’ की ख्वाहिश पर कोई लगाम नहीं लगने दी.
उसके बाद तो उनके जीवन में एक के बाद एक पुरुष आए. कबीर बेदी से शादी की, जो ज्यादा समय नहीं चली. जो पुरुष आए, उनमें कई बहुत बड़े नाम थे. यहां तक कि पूजा आठ महीने की थीं, तभी प्रोतिमा का नाम एक विदेशी के साथ जोड़ा जाने लगा था. कबीर बेदी की जिंदगी भी इसी तरह की थी.
हालांकि कुछ समय बाद हालात बदले. प्रोतिमा की अलग तरह की इमेज बनी. यह अलग बात है कि आज भी प्रोतिमा बेदी की दो जिंदगियों में पहली वाली पर ही ज्यादा बात की जाती है, या यूं कहें कि उसके बारे में गॉसिप ज्यादा होता है. गंभीर बात उसके बाद की जिंदगी पर है.
निजी जीवन के इन तमाम किस्सों के बीच प्रोतिमा ने केलूचरण महापात्र से ओडिसी नृत्य सीखा. उन्होंने बैंगलोर के पास नृत्यग्राम बनवाया, जहां नृत्य सिखाया जाता है. दरअसल, उन्होंने गलती से एक बार ओडिसी देख लिया था. वो गलत थिएटर में चली गई थीं. जैसी उनकी जिंदगी रही, उसी तरह उन्होंने तुरंत तय किया कि अब यही उनकी जिंदगी होगी.
जिद के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून
हालांकि गुरु ने सिखाने से मना कर दिया और कहा कि तुम्हारी उम्र काफी ज्यादा है. तुम अब नहीं सीख पाओगी. प्रोतिमा तब 26 साल की थीं. उन्होंने जिद पकड़ ली. इसके चलते उन्होंने अपना लाइफस्टाइल बदला, दोस्तों को छोड़ दिया. सिगरेट, शराब सब छोड़ दी. यहां तक कि उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि परिवार टूटने की वजह भी यही रही.
डांस सीखने में उन्होंने बहुत कुछ सीखा. यहीं पर उन्होंने पहली बार किसी के पांव छुए. हर शाम पूजा करना शुरू किया. गुरु से थप्पड़ खाए. उन्हीं गुरु के लिए एक तरह उन्होंने नृत्यग्राम की स्थापना की. फिर उन्होंने नृत्यग्राम छोड़ा. वो अपने बेटे सिद्धार्थ के साथ रहना चाहती थीं. लेकिन सिद्धार्थ ने आत्महत्या कर ली. प्रोतिमा के लिए आजाद जिंदगी जीने की जंग जारी रही.
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि अब वो अपनी पूरी जिंदगी हिमालय को देना चाहती हैं. वो कैलाश मानसरोवर गई थीं. यहां 18 अगस्त, 1998 को लैंडस्लाइड में उनकी मौत हो गई. आजाद जिंदगी की तलाश में जीतीं प्रोतिमा गौरी जीवन से आजाद हो गईं. उनकी जिंदगी बड़े सबक देती है. उसमें जिंदगी की रंगीनियां दिखती है. नृत्य को लेकर तपस्या जैसी दिखती है. उसके बाद एक साध्वी का अंदाज नजर आता है.
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