साल 1955 की बात है. मुंबई में बेहद प्रतिष्ठित हरिदास सम्मेलन का आयोजन था. 17 साल के एक नए कलाकार को भी उस कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देने के लिए बुलाया गया था. उस कलाकार को श्रोताओं के लिए संतूर बजाना था. लेकिन कार्यक्रम के कुछ देर पहले ही उस कलाकार ने आयोजकों के सामने एक अनोखी शर्त रख दी.
तबला और संतूर बजाने पर अड़ गए थे
उस कलाकार ने कहा कि वो पहले तबला सोलो बजाएंगे और उसके बाद संतूर. ये अनोखी शर्त थी. इससे पहले किसी कार्यक्रम में इस तरह का प्रयोग नहीं हुआ था कि किसी कलाकार ने एक ही मंच पर दो अलग अलग वाद्ययंत्र बजाए हों. इस बात से आयोजक बृजनारायण जी नाराज भी हो गए. उन्होंने उस कलाकार से कहा भी कि सम्मेलन में तबला बजाने के लिए उस्ताद अल्लारखा खां साहब, अनोखे लाल जी, सामता प्रसाद जी, पंडित किशन महाराज, हबीबुल्लाह खान साहब और अहमद जान थिरकवा जैसे बड़े बड़े कलाकार तबला वादन के लिए ही आए हैं. ऐसे में वो उस कम उम्र के कलाकार से तबला क्यों बजवाएंगे?
लेकिन ये तर्क उस नवोदित कलाकार को समझ नहीं आया. वो अपनी जिद पर अड़ा रहा. आखिर में बृजनारायण जी ने नाराज होकर उस कलाकार से कहा कि उनके पास आधे घंटे का वक्त है. इसी आधे घंटे में उन्हें दोनों वाद्ययंत्र यानी तबला और संतूर दोनों बजाना है. इसके बाद क्या हुआ ये कहानी आगे बढ़ाने से पहले आपको बता दें कि वो नवोदित कलाकार थे- पंडित शिवकुमार शर्मा. जिनका आज जन्मदिन है.
जब नामी-गिरामी कलाकारों ने लगाई वंस मोर की रट
खैर, वापस लौटते हैं अपनी कहानी पर. अपनी जिद मनवाने के बाद पंडित शिवकुमार शर्मा ने मंच पर जगह ली. पहले आधे घंटे तबला बजाया. फिर तबले को एक तरफ रखा. संतूर उठाया और करीब एक घंटे तक संतूर बजाते रहे. उस रोज कार्यक्रम में उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, उस्ताद अमीर खान साहब, उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, रसूलन बाई जी, केसरबाई जी, पंडित ओंकार नाथ ठाकुर, पंडित नारायण राव व्यास, पंडित विनायक राव पटवर्धन, सिद्धेश्वरी देवी जी, मोगूबाई कुर्देकर जी भी शामिल थे.
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इतने नामी गिरामी कलाकारों के सामने जब शिवकुमार जी ने तबला और संतूर एक के बाद एक बजाया तो सुनने वालों ने ‘वंस मोर’ ‘वंस मोर’ की रट लगा दी. आखिर में आयोजक बृजनारायण जी को स्टेज पर आकर कहना पड़ा कि आज इस कलाकार को छोड़ दीजिए. इनका कार्यक्रम फिर से रखा जाएगा. सच्चाई ये है कि अगले दिन वहां कोई कार्यक्रम था ही नहीं.
इस कमाल की प्रशंसा के बाद भी उस कार्यक्रम को याद करके पंडित शिवकुमार शर्मा कहते हैं, 'आज जब मैं उस बात को याद करता हूं तो मुझे हंसी आती है. वो मेरी अपरिपक्वता थी.'
पिता से ली थी गायन और तबले के साथ संतूर की शिक्षा
दरअसल इस घटना के पीछे की कहानी को जानना जरूरी है. पंडित शिवकुमार शर्मा की पैदाइश जम्मू की है. उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा ही उनके गुरू भी थे. पंडित उमादत्त शर्मा अलग-अलग कलाओं को जानने वाले बड़े काबिल कलाकार थे. उन्होंने बनारस के पंडित बड़े रामदास जी से गाना सीखा था. पंडित बड़े रामदास जी बनारस घराने के अद्वितीय कलाकार थे. इससे पहले उन्होंने जम्मू में सरदार हरनाम सिंह से तबला भी सीखा था. पंडित शिवकुमार शर्मा जब पांच साल के थे तब गायन और तबले की उनकी शिक्षा उनके पिताजी के पास ही शुरू हुई थी.
शुरूआत गायन से जरूर हुई थी लेकिन उनका मन धीरे-धीरे तबला बजाने में ज्यादा लगने लगा था. करीब 7-8 साल की उम्र रही होगी जब पंडित शिवकुमार शर्मा ने रेडियो में बच्चों के एक कार्यक्रम में तबला बजाया. इसके बाद जब वो 11-12 साल के थे तब उनके पिता जी ने उनसे कहा कि उन्हें संतूर सीखना चाहिए. दरअसल, संतूर की संगीत यात्रा में पंडित उमादत्त शर्मा का बड़ा योगदान है. कहते हैं कि उस वक्त तक संतूर बजाना तो दूर की बात है कश्मीर के बाहर किसी ने संतूर को देखा और सुना भी नहीं था. पंडित उमादत्त शर्मा ने संतूर पर शास्त्रीय संगीत बजाना शुरू किया और फिर अपने बेटे को भी सिखाया. लिहाजा जब उन्हें हरिदास सम्मेलन में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला तो उन्होंने दोनों वाद्ययंत्र बजाने की जिद ठान ली. जिसके बाद की कहानी अब इतिहास में दर्ज हो चुकी है.
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शिव-हरि की जोड़ी ने दिया हिट फिल्म संगीत
खैर, पंडित शिवकुमार शर्मा को शास्त्रीय संतूर वादक के अलावा एक कमाल के फिल्म संगीतकार के तौर पर भी जाना जाता है. बांसुरी के महान कलाकार पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उनकी जोड़ी शिव-हरि कहलाई और इस जोड़ी ने यश चोपड़ा के लिए एक से बढ़कर एक हिट फिल्मों का संगीत दिया. फिल्मी दुनिया में कदम रखने की शुरूआत भी उसी कार्यक्रम से हुई थी जिसका जिक्र हमने शुरूआत में किया.
हुआ यूं कि उस रोज उस कार्यक्रम में महान फिल्मकार वी. शांताराम की बेटी मदुरा जी भी थीं. उन्होंने भी पंडित जी को पहले तबला और फिर संतूर बजाते सुना. उन्हें संतूर बहुत पसंद आया. उन्होंने कहीं से फोन करके वी. शांताराम को बताया कि संतूर एक अनोखा साज है जो उन्होंने सुना है और फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ में वी. शांताराम को उस इंस्ट्रूमेंट को इस्तेमाल करना चाहिए.
उन्होंने फिर पंडित जी के सामने ये प्रस्ताव रखा. जिसे पंडित जी ने अपने इम्तिहान का हवाला देकर टाल दिया. पंडित शिवकुमार शर्मा उसे भी अपनी अपरिपक्वता ही मानते हैं. लेकिन किस्मत ने उन्हें फिर मौका दिया. इम्तिहान के बाद उनके पास राजकमल स्टूडियो से टेलीग्राम आया- कम टू बंबई. चूंकि संतूर साज नया था इसलिए फिल्म म्यूजिक में भी पहली बार इंट्रोड्यूस हुआ.
उस फिल्म में महान कथक डांसर गोपीकृष्ण हीरो थे. सामता प्रसाद ने उस फिल्म में तबला बजाया था. उस फिल्म का टाइटिल सॉन्ग 'झनक झनक पायल बाजे’ उस्ताद अमीर खां साहब का गाया हुआ था. ऐसी फिल्म में इतने बड़े कलाकारों के बीच में पंडित शिवकुमार शर्मा ने संतूर बजाया. फिल्म झनक झनक पायल बाजे कमाल की हिट हुई. उसे तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल है.
'बॉम्बे में सर्वाइव करने के लिए फिल्मों में बजाना शुरू किया था'
सिलसिला, चांदनी, लम्हें, डर जैसी लोकप्रिय फिल्मों में शिव-हरि ने संगीत दिया. इस जोड़ी की उपबल्धि पर पंडित जी कहते हैं- 'मेरा कभी भी ये इरादा नहीं था कि हम संगीत निर्देशन करेंगे. शौक जरूर था. दरअसल, ये इरादा तो हम दोनों का कभी भी नहीं था कि शास्त्रीय संगीत छोड़कर फिल्मों का संगीत तैयार करेंगे क्योंकि उसमें पैसा और शोहरत ज्यादा है. हमने तो बॉम्बे में ‘सर्वाइव’ करने के लिए फिल्मों में बजाना शुरू किया था. फिर हमने बहुत सारी फिल्मों में बजाया.'
फिल्मी दुनिया से अलग बतौर शास्त्रीय संगीतकार पंडित शिवकुमार शर्मा की संगीत साधना को पूरी दुनिया में बहुत प्यार मिला. सम्मान मिला. उन्हें 2001 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है. उनकी संगीत साधना यूं ही चलती रहे. ऐसी करोड़ों संगीत प्रेमियों की दुआ है.
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