पंडित बिरजू महाराज और कथक दूसरे में ऐसे समाए हैं कि आप महाराज जी का नाम लीजिए तो कथक सुनाई देता है और कथक का नाम लीजिए तो महाराज जी की तस्वीर सामने आ जाती है. महाराज जी का आज 81वां जन्मदिन है. गुरू शिष्य परंपरा में सिखाए गए उनके तमाम शिष्य आज पूरी दुनिया में कथक का प्रचार प्रसार कर रहे हैं. आज उनके जन्मदिन पर शिवेंद्र कुमार सिंह बता रहे हैं महाराज जी के जीवन की दस अनसुनी कहानियां.
-पंडित बिरजू महाराज के पिता का स्वभाव बहुत विनम्र था. आस पड़ोस में हर कोई उनका बहुत सम्मान करता था. उनके स्वभाव की अच्छाई की वजह से ही उनका नाम अच्छन महाराज पड़ गया. उनके दो और भाई थे. शंभू महाराज और लच्छू महाराज.
-पंडित बिरजू महाराज जब पैदा हुए तो उनका नाम दुख हरण रखा गया था. बाद में उनका नाम बदला गया. उनके माता पिता ने भगवान कृष्ण से जोड़कर उनका नाम रखा-बृजमोहन नाथ मिश्रा. घर में सभी लोग उन्हें बिरजू बिरजू बुलाते थे. धीरे-धीरे बिरजू नाम ही लोकप्रिय हो गया और फिर बिरजू महाराज.
-बिरजू महाराज बचपन से ही घुंघरुओं की आवाज और तबले की थाप के बीच पले. वो अपने पिताजी और चाचा जी को शागिर्दों को सिखाते देखते रहते थे. वहां से लौटकर वो अपनी अम्मा से कहते थे कि मुझे भी नृत्य करना है. नृत्य करने की कोशिश में कई बार वो गिर भी जाते थे. तब पहली बार उनकी मां ने उन्हें सीख दी थी कि जब बड़े हो जाना तब नाचना अभी सिर्फ देखो और सुनो.
-बचपन में पंडित बिरजू महाराज को नृत्य के अलावा पतंग उड़ाने का बड़ा शौक था. वो या तो पिताजी और चाचाजी को नृत्य करते देखते थे या पतंग उड़ाते थे. कई बार तो वो पतंग उड़ाने के बाद सीधा तालीमखाने चले जाते थे.
-पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज रामपुर के नवाब के यहां नौकरी करते थे. रामपुर के नवाब उनका बहुत सम्मान करते थे. वो पंडित बिरजू महाराज को भी बहुत मानते थे. छह बरस की उम्र में वो पहली बार महल में नाचे थे. हालांकि तब बिरजू महाराज बहुत छोटे थे और उन्हें कार्यक्रमों के दौरान कई बार नींद भी आने लगती थी. एक बार तो उन्होंने अपनी मां से शिकायत भी की थी कि वो ऐसे कार्यक्रमों में नहीं जाएंगे.
-बिरजू महाराज जब सिर्फ 9 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था. इस मुश्किल वक्त में उनकी मां ने हिम्मत नहीं हारी. वो बिरजू महाराज को लेकर जयपुर, बांस बरेली और नेपाल ले जाया करती थीं. वहां महाराज जी नृत्य करते थे. उनका नृत्य देखकर लोग पैसे दिया करते थे, जिससे उन लोगों का जीवन यापन होता था. बाद में कानपुर में बिरजू महाराज ने कुछ ट्यूशन भी किए, जिससे नियमित आमदनी होती थी.
-अज्ञेय जी की पत्नी कपिला वात्स्यायन का पंडित बिरजू महाराज के जीवन में बड़ा योगदान है. कपिला जी बिरजू महाराज के पिता की शागिर्द थीं, वो बिरजू महाराज को अपने साथ ले आईं. उन्होंने बिरजू महाराज को हिंदुस्तानी म्यूजिक एंड डांस स्कूल में डाल दिया था. बिरजू महाराज ने वहीं पर काम शुरू किया और उनके काम से सबलोग खुश हो गए. फिर वो चार-पांच साल वहीं रहे. इसके बाद यहीं से बिरजू महाराज भारतीय कला केंद्र और कथक केंद्र पहुंचे. जिसके बाद धीरे-धीरे जीवन का संघर्ष खत्म हुआ. तब तक कथक में उनका नाम भी होना शुरू हो गया था.
-एक बार मुंबई में बिरजू महाराज का एक कार्यक्रम था. प्रगट भए नंदलाल, वो अपने बाबा की रचना प्रस्तुत कर रहे थे. मंच पर उनका भाव खत्म हो गया, वो भगवान को झुलाते हुए खड़े हो गए थे. उनका भाव ऐसा था कि भगवान प्रकट हो रहे हैं. उस कार्यक्रम में मंच पर संगत करने वाले बिरजू महाराज के सभी साथी कलाकार चुप थे. ऑडियंस चुप थी. किसी को पता ही नहीं चला कि कब भाव खत्म हो गया, बाद में अचानक कुछ सेकंड्स के बाद तालियां बजी तो महाराज जी भी चौंके कि भाव खत्म हो गया है. महाराज जी खुद बताते हैं कि उस दिन उन्हें होश नहीं था.
-कम ही लोग जानते हैं कि पंडित बिरजू महाराज बहुत अच्छा गाते भी हैं. सत्यजीत रे ने शतरंज के खिलाड़ी में संगीत के लिए पंडित बिरजू महाराज को लिया था. उन्होंने शतरंज के खिलाड़ी के लिए दो गाने तैयार किए थे. इस फिल्म के लिए पंडित बिरजू महाराज ने गाया भी था. इसके अलावा दिल तो पागल है और गदर जैसी फिल्मों में भी महाराज जी ने संगीत पक्ष में मदद की है.
-फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की शूटिंग के दौरान का एक दिलचस्प किस्सा है. पंडित बिरजू महाराज उस फिल्म में अपनी गायकी को लेकर खुश नहीं थे. उन्होंने सत्यजीत रे से कई बार कहा- एक ‘टेक’ और कर लेते हैं. पंडित जी के अलावा सेट पर हर कोई गाने से खुश था, लेकिन उन्हें आनंद नहीं आ रहा था. आखिर में जब दर्जनों ‘टेक’ हो गए तो सत्यजीत दा ने पंडित बिरजू महाराज की शिष्या शास्वती सेन से बंगाली में कहा कि ये कभी अपने काम से खुश नहीं होंगे, क्योंकि इनके जैसे जीनियस लोगों को लगता कि अभी और अच्छा किया जा सकता है. सत्यजीत दा ने उस रोज कहा था कि यही परफेक्शन की प्रॉब्लम उनके साथ भी है. हालांकि बाद में पंडित बिरजू महाराज के गाए गीत ‘कान्हा मैं तोसे हारी’ को बहुत सराहा गया.
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