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एक दिन में 3 कत्ल के 10 मुलजिम, फिर भी 21 साल बाद हुए फैसले में एक भी 'कातिल' नहीं पकड़ा गया

दिल्ली पुलिस की 21 साल तक फाइलों की बैसाखियों के सहारे आगे बढ़ी नाकाम पड़ताल के चलते, मामले के सभी 10 आरोपी तो बरी हो गए, आने वाली पीढ़ियां मगर एक सवाल दिल्ली पुलिस से हमेशा करती रहेंगी कि, आखिर हत्यारा था कौन?

Updated On: Jul 14, 2018 09:15 AM IST

Sanjeev Kumar Singh Chauhan Sanjeev Kumar Singh Chauhan

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एक दिन में 3 कत्ल के 10 मुलजिम, फिर भी 21 साल बाद हुए फैसले में एक भी 'कातिल' नहीं पकड़ा गया

इस कड़ी में पेश हम एक ऐसी ‘पड़ताल’ की कड़वी मगर, सच्ची कहानी से आपको रु-ब-रु करा रहे हैं जिसमें मुलजिम, हथियार, गवाह-सबूत सब-कुछ मौजूद था. इसके बाद भी तफ्तीश में छोड़ी गई तमाम ‘झोल’ ने पुलिस को बुरी तरह परास्त कर दिया. आलम यह था कि, पड़ताल में मौजूद छेदों ने पुलिस को कानून और देश के जनमानस के सामने भी चेहरा उठाकर चलने के काबिल नहीं छोड़ा. हम बात कर रहे हैं 21 साल पहले जून 1996 में देश की राजधानी दिल्ली में हुए सनसनीखेज अपहरण और तिहरे हत्याकांड की. जिसकी पड़ताल के तार जुड़े थे देश के दिल्ली, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, मध्य-प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे पांच प्रमुख राज्यों से.

21 साल पहले 6-7 जून की रात 1996 का दक्षिणी दिल्ली जिला

पर्सनल प्वाइंट हेल्थ क्लिनिक लिमिटेड के मालिक डॉ सुनील कौल (36) के अलकनंदा मंदाकिनी इन्कलेव, उनकी दो महिला सहयोगी सुजाता साहा (24), (डायटीशियन, निवास जे-ब्लाक चितरंजन पार्क) और दीपा गुप्ता (27), (फाइनेंस अधिकारी, निवासी नोएडा, यूपी) के घरों में रात करीब ग्यारह बजे कोहराम मचा था. वजह थी शाम छह बजे के बाद अचानक इन तीनों का गायब हो जाना.

सुनील कौल अपनी मारुति-1000 कार में दीपा गुप्ता और सुजाता साहा के साथ निकले थे. दिल्ली नगर निगम के मशहूर ठेकेदार सुभाष गुप्ता के साथ एक बिजनेस मीटिंग के सिलसिले में. पर्सनल प्वाइंट को डॉ कौल, पत्नी शोभा कौल के साथ मिलकर चला रहे थे. पर्सनल प्वाइंट एनसीआर में (दिल्ली और आसपास के इलाके में) धन्नासेठों को फिजीकली-फिट यानि ‘चुस्त-दुरुस्त’ रखने का नामी-गिरामी अड्डा बन चुका था. सुभाष गुप्ता भी पर्सनल-प्वाइंट हेल्थ क्लिनिक का ‘क्लाइंट’ था. डॉ सुनील कौल, सुजाता साहा और दीपा गुप्ता जब देर रात तक नहीं लौटे तो उनके परिवारों की नींद उड़ गई.

आधी रात को उस फोन-कॉल ने होश उड़ा दिए

अदालत में पेश दस्तावेजों के मुताबिक, 6-7 जून की रात डॉ सुनील कौल के घर ठेकेदार सुभाष गुप्ता की पत्नी ने टेलीफोन करके बताया कि, उसके पति अभी तक घर नहीं लौटे हैं. सुभाष गुप्ता के ओखला स्थित दफ्तर में डॉ सुनील कौल का ड्राइविंग लाइसेंस पड़ा मिला है. डॉ सुनील कौल की पत्नी शोभा कौल, दीपा गुप्ता और सुजाता साहा के परिजनों के साथ दक्षिणी दिल्ली जिले के चितरंजन पार्क थाने पहुंचीं.

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थाने के पुलिस ड्यूटी-अफसर ने अपने इलाके का मामला न होने की वजह से उन लोगों को, ओखला थाने की ओर टरका दिया. थाना ओखला एसएचओ इंस्पेक्टर से शोभा कौल को जो जबाब मिला, वो भी टरकाने वाला था. लिहाजा शोभा कौल तड़के तीन बजे के करीब ओखला फेज-दो पुलिस चौकी पहुंचीं. वहां सुभाष गुप्ता का भाई और बेटा पहले से मौजूद थे.

पीड़ितों का शक संदिग्धों के बजाए, पुलिस पर बढ़ने लगा

दिल्ली पुलिस द्वारा ओखला फेज -2 पुलिस चौकी और वहां से अस्पतालों की ओर टरकाए जाने से शोभा कौल खीझ उठी थीं. लिहाजा उन्हें पूरे मामले में संभावित संदिग्धों से ज्यादा शक, दिल्ली पुलिस (दक्षिणी जिला पुलिस) पर होने लगा. अंतत: 7 जून 1996 को रात भर धक्के खिलाने के बाद दिल्ली पुलिस की ओर से ओखला फेज-2 पुलिस चौकी में मौजूद इंचार्ज ने शोभा कौल से उनकी शिकायत तो ले ली, लेकिन रिपोर्ट दर्ज फिर भी नहीं की.

उधर पिता सुभाष गुप्ता की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में उनका बेटा पहले ही दर्ज करा चुका था. उस रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर सुनील कौल संदेह के दायरे में आ रहे थे. शिकायत के मुताबिक सुभाष ने फोन करके घर में बताया था कि, वे 15 मिनट में घर पहुंचने वाले हैं. इसके बाद रात भर (6-7 जून 1996) सुभाष गुप्ता, दीपा गुप्ता, सुजाता साहा और सुनील कौल में से कोई भी अपने घर नहीं पहुंचा.

पुलिस गुणा-गणित में मशरुफ, उधर लाशें मिलने लगीं

इस हाई-प्रोफाइल मामले में किसे गिराना है और किसे चढ़ाना है? किसे फंसाना है और किसे बचाना है? दक्षिणी दिल्ली के ओखला थाने की पुलिस 24 घंटे तक इसी गुणा-गणित के जोड़-घटाव में लगी रही. तब तक दिल्ली से सटे हरियाणा की सरहद में स्थित होडल (फरीदाबाद से आगे) में 7 जुलाई को दोपहर के वक्त डॉक्टर सुनील कौल की लाश और कार मिल गई. सुनील कौल की पीठ में गोली मारी गई थी. हाथ-पांव कमीज से बंधे मिले.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला कि, डॉक्टर की मौत 24 घंटे पहले सिर में चोट लगने से हो चुकी है. यानी मौत के बाद गोली मारी गई थी. डॉक्टर कौल की कार से कुछ संदिग्ध तस्वीरें और अन्य दस्तावेज भी मिले. अब तक सुजाता साहा, दीपा गुप्ता और सुभाष गुप्ता का कोई अता-पता दिल्ली पुलिस को नहीं था.

डॉक्टर की लाश मिलते ही बदली पुलिस की चाल

डॉक्टर सुनील कौल की लाश मिलते ही दक्षिणी दिल्ली जिला पुलिस की चाल बदल गई. पुलिस ने सुभाष गुप्ता के टेलीफोन सर्विलांस पर लगा रखे थे. 24 घंटे की कुंभकर्णी नींद से जागी पुलिस को जिस बात की आशंका थी वही, चीज निकल कर सामने आई. परिवार जिस ठेकेदार सुभाष गुप्ता को गायब बता रहा था, उसी ने 9 जून को मुंबई से दिल्ली अपने घर फोन किया. सुभाष गुप्ता ने घर वालों को बताया कि, कुछ लोगों ने उसका अपहरण कर लिया है. उसे मुंबई के फाइव स्टार होटल लीला कैमिस्की में बंधक बनाकर रखा गया है. बजरिए निगरानी पर लगे टेलीफोन से पुलिस ने गुप्ता की परिवार वालों से हुई बातचीत सुन ली. दिल्ली पुलिस सुभाष गुप्ता को उसकी बीएमडब्ल्यू कार सहित मुंबई से दिल्ली ले आई.

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सुजाता और दीपा की भी लाशें चबंल घाटी में मिल गईं

डॉ कौल की लाश के बाद सुभाष गुप्ता पुलिस को जिंदा मिल गया. इसके अगले दिन ही 9-10 जून 1996 को मध्य-प्रदेश के जिला मुरैना (चंबल के करीब) के थाना सराय चोला अंतर्गत देवपुरी बाबा के आश्रम के आसपास सुजाता साहा और दीपा गुप्ता की लाश भी मिल गई. दोनो के शव आगरा-मुंबई नेशनल हाइवे किनारे झाड़ियों में पड़े थे. लाशों का अधिकांश हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. सूचना मुरैना जिला के तत्कालीन एडिश्नल पुलिस अधीक्षक उपेंद्र जैन ने दिल्ली पुलिस को दी. दिल्ली पुलिस के एसीपी जेएस मान के साथ मुरैना पहुंचे सुजाता साहा और दीपा गुप्ता (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 4 महीने की गर्भवती) के परिजन लाशों को दिल्ली ले आए.

जिसकी ‘सेवा’ में थी पुलिस, वही संदिग्ध बना दिया!

जिस सुभाष गुप्ता को पुलिस अब तक बेदाग और पीड़ित मान रही थी. तीन-तीन लाश मिलते ही दिल्ली पुलिस ने उसी सुभाष गुप्ता को आनन-फानन में संदिग्ध मान लेने में ही खुद की खैर समझी. पलटी हुई बाजी के बाद अब पुलिस तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने के लिए सुभाष गुप्ता और उसके शार्प-शूटर कांट्रैक्ट-किलर्स को ही संदिग्ध मानने-समझने लगी. हालांकि 21 साल अदालतों में चली मामले की लंबी सुनवाई के दौरान सुभाष गुप्ता सहित सभी 10 आरोपी बेदाग साबित हो गए. परिणाम यह रहा कि स्कॉटलैंड पुलिस की स्टाइल पर काम करने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस को तीन-तीन कत्ल का एक भी कातिल 21 साल में- हाथ नहीं लगा.

गले न उतरने वाली पुलिसिया कहानी

पुलिसिया कहानी के मुताबिक, तिहरे हत्याकांड की जड़ में ब्लैकमेलिंग प्रमुख वजह निकली. डॉ सुनील कौल, सुभाष गुप्ता को ब्लैकमेल करके 22 लाख रुपए ऐंठ चुका था. 25 लाख और वसूलना चाहता था. हालांकि इन तमाम आरोपों को सुनील कौल की पत्नी शोभा कौल ने सिरे से नकार दिया था. 12 जून 1996 को अंतत: बेबस दक्षिणी दिल्ली जिला पुलिस को, इस तिहरे हत्याकांड के मुख्य षड्यंत्रकारी और मुलजिम के रूप में सुभाष गुप्ता को ही अरेस्ट करके पटियाला हाउस स्थित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट धर्मेश कुमार की कोर्ट में पेश करना पड़ा.

पुलिस की मोटी फाइलें जब सरेआम ‘रद्दी’ साबित हुईं

शुरू से ही मामले की लीपा-पोती में जुटी दिल्ली पुलिस ने ट्रायल कोर्ट के सामने, पड़ताल में उजागर तथ्यों/गवाह/ सूबतों की कई मोटी, भारी-भरकम वजनदार फाइलें पेश कीं. जोकि कालांतर में अदालत के सामने ‘रद्दी’ साबित हुईं. पुलिस ने मुख्य आरोपी सुभाष गुप्ता सहित कुल 10 को षड्यंत्र और तिहरे हत्याकांड में शामिल बताया. 4 मार्च सन् 1998 को ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय कर दिए. 6 सितंबर 1996 और 29 नवंबर 1996 को अदालत में पेश दो चार्जशीट (आरोप-पत्र) में दिल्ली पुलिस ने बताया था कि, 5 जून सन् 1996 को दिल्ली के अशोक विहार स्थित एक होटल में डॉ. सुनील कौल, दीपा गुप्ता, सुजाता साहा के कत्ल की योजना बनाई गई.

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षड्यंत्र के मुताबिक 6 जून 1996 को शाम बिजनेस मीटिंग के लिए डॉ सुनील कौल, सुजाता साहा और दीपा गुप्ता, दिल्ली नगर निगम ठेकेदार सुभाष गुप्ता के ही ओखला स्थित दफ्तर में इकट्ठे हुए. जैसे ही सुभाष गुप्ता और सुनील कौल एंड कंपनी के बीच कागजातों पर समझौते के हस्ताक्षर हुए, वहां कुछ गुंडों ने धावा बोल दिया.

दिल्ली पुलिस की ढीली पड़ताल को कोर्ट ने ताड़ लिया

कोर्ट में दाखिल मामले और दिल्ली पुलिस चार्ज-शीट के मुताबिक, मारपीट के दौरान सुनील कौल की ओखला स्थित सुभाष गुप्ता के दफ्तर में दीवार से सिर लगने के चलते ठौर मौत हो गई. सुभाष, सुजाता साहा और दीपा गुप्ता को बदमाशों ने नशे का इंजेक्शन लगाकर बेहोशी की हालत में अपहरण कर लिया. साथ में डॉ कौल की लाश भी कार में लादकर ले गए. बाद में सुजाता साहा और दीपा गुप्ता की बारी-बारी से आगरा (उत्तर प्रदेश) में हत्या कर दी गई.

तीन-तीन कत्ल के बाद भी सुभाष गुप्ता मुंबई के होटल में सलामत मिल गया. करीब 5 साल चली लंबी पड़ताल के बाद 30 मार्च 2000 को ट्रायल कोर्ट ने 10 में से 9 आरोपियों को बरी कर दिया. ट्रायल कोर्ट ने एक अदद बचे मुख्य षड्यंत्रकारी सुभाष गुप्ता को तिहरे हत्याकांड में उम्रकैद की सजा सुना दी.

पुलिस द्वारा सुनाई प्रेम-कहानी कोर्ट को पसंद नहीं आई!

ट्रायल के दौरान पुलिस ने कोर्ट में सुभाष गुप्ता और सुजाता साहा के बीच पनपी नाकाम प्रेम-कहानी को तिहरे अपहरण-हत्याकांड की प्रमुख वजह साबित करने की कोशिश की. पुलिस ने केस को मजबूत करने के लिए सुजाता साहा के घर-दफ्तर से बरामद डायरी-खत भी अदालत में रखे. कोर्ट ने मगर उन्हें भी मानने से दो टूक इनकार कर दिया.

डॉ सुनील कौल की पत्नी शोभा कौल ने, दिल्ली पुलिस द्वारा घुटनों के बल घिसट-घिसट की जा रही पड़ताल को सीबीआई के हवाले करने की गुजारिश की, लेकिन तफ्तीश सीबीआई के हाथों में नहीं दी गई. देश के इस हाईप्रोफाइल तिहरे हत्याकांड की पड़ताल की जब छीछालेदर हुई, उस वक्त दिल्ली के पुलिस कमिश्नर आईपीएस निखिल कुमार और दक्षिणी दिल्ली जिले के जिला पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) आईपीएस धर्मेंद्र कुमार थे.

ढीली पुलिसिया पड़ताल की बेदम-दलीलें

ट्रिपल मर्डर के पीछे सुजाता साहा-सुभाष गुप्ता के मधुर संबंधों को साबित करने के लिए दिल्ली पुलिस ने एक छोड़ सौ-सौ दलीलें पेश कीं. मसलन पर्सनल प्वाइंट हेल्थ क्लिनिक में सुजाता साहा ही सुभाष गुप्ता की काउंसलर थी. सुजाता के जन्म-दिन पर गिफ्ट करने को सुभाष गुप्ता ने हीरे की अंगूठी खरीदी थी. सुजाता और उसके परिवार को बंगलौर जाने-आने के लिए सुभाष गुप्ता ने हवाई जहाज की टिकिट खरीदीं थीं. सुजाता कहां-कहां जाती है? किसके साथ रहती है? आदि-आदि बातें पता कराने को सुभाष गुप्ता ने प्राइवेट जासूस लगाए. बहरहाल, पुलिस फाइलों में दर्ज यह तमाम दलीलें भी कोर्ट में बेदम साबित होकर औंधे मुंह गिर गईं.

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बंद कमरे में जब ‘खुलेआम’ हुई पुलिस की फजीहत

हीरे की अंगूठी सुभाष गुप्ता ने ही खरीदी, ट्रायल कोर्ट में साबित कर पाने में दिल्ली पुलिस नाकाम रही. सुजाता साहा और उसके परिवार के लिए सुभाष गुप्ता द्वारा खरीदे गए एअर-टिकट जब इस्तेमाल ही नहीं हुए तो फिर भला, वारदात से उनका क्या वास्ता? एक आरोपी शिरडी में सुजाता साहा का पीछा करने के लिए गया था, साबित नहीं हुआ. वारदात से पहले सुभाष गुप्ता ने 9 अन्य आरोपियों के साथ 5 जून 1996 (घटना से एक दिन पहले) दिल्ली के अशोक विहार स्थित एक होटल में मीटिंग की, यह भी साबित नहीं हो सका.

पूर्व आईपीएस निखिल कुमार, दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर

पूर्व आईपीएस निखिल कुमार, दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर

ओखला स्थित सुभाष गुप्ता के जिस ऑफिस में डॉ सुनील कौल की हत्या और सुभाष गुप्ता, सुजाता साहा, दीपा गुप्ता के अपहरण की कहानी की शुरुआत पुलिस ने बताई, वहां उस शाम किसी अन्य की उपस्थिति ही साबित नहीं हुई. हां यह जरूर साबित हो गया कि, दीपा गुप्ता की लाश सुभाष गुप्ता की ही कार की डिग्गी में रखी गई.

हाईकोर्ट में भी दिल्ली पुलिस के हाथ ‘हार’ ही लगी

खुद के सिर तीन-तीन कत्लों का बोझ आते ही ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुभाष गुप्ता दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया. दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच में दिल्ली पुलिस की तबियत से फजीहत की गई. डबल बेंच ने एतिहासिक फैसले में, ढीली नाकाम पड़ताल के लिए दिल्ली पुलिस को लताड़ा.

इसी साल जनवरी (2018) में आए फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस आईएस मेहता की दो सदस्यीय बेंच ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें तीन-तीन हत्याओं का मुजरिम अकेले सुभाष गुप्ता को करार दे दिया गया.

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ऐसे में डबल बेंच द्वारा इकलौते आरोपी करार दिए गये सुभाष गुप्ता को भी बा-इज्जत बरी कर दिया गया. हाईकोर्ट की डबल-बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में लिखा... ‘शक कितना भी गहरा हो लेकिन वह, सबूत का विकल्प नहीं हो सकता. यही वजह है कि, प्रस्तुत मामले की जांच में मौजूद खामियों के चलते सभी 10 आरोपी बरी हो गए.’

यूं ही हाई-प्रोफाइल नहीं था पर्सनल प्वाइंट ‘ट्रिपल मर्डर’

मामले के हाई-प्रोफाइल बनने की कई प्रमुख वजह भी थीं. पहली वजह, अपहरण राजधानी के धन्नासेठों में शुमार डॉ सुनील कौल और उनकी दो महिला-सहयोगियों का हुआ था. उस वक्त डॉ सुनील कौल आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस पास-आउट और देश के मशहूर अस्पताल सर गंगाराम के पूर्व इंटर्न थे. 1990 के दशक में शोभा कौल से उनका विवाह हुआ. सन् 1992 में डॉ कौल ने दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में मोटी रकम के बदले ‘धन्नासेठ’ और ‘साहबों’ की सेहत ‘फिट’ रखने के लिए ‘हाई-फाई’ पर्सनल प्वाइंट फिटनेस हेल्थ क्लिनिक खोल दिया.

सुजाता साहा के पिता सुकुमार साहा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फोटो अनुभाग में उप-निदेशक थे. सुकुमार साहा सन् 1992 में रिटायर हो चुके थे. आशेष और सुकुमार साहा की दो बेटियां थीं. बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बेटी अविवाहित सुजाता साहा, माता-पिता के साथ ही रहती थी. सुजाता ने सफदरजंग अस्पताल से डायटीशियन की डिग्री हासिल की थी. उसके बाद सुजाता ने सन् 1993 के आसपास पर्सनल प्वाइंट में नौकरी शुरू कर दी थी.

एक कत्ल होने से बची, दूसरी को कातिल नहीं मिले

इस बेदम ‘पड़ताल’ में दक्षिणी जिला पुलिस की टीम की ‘हार’ने जहां समाज में महकमे को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा. वहीं दूसरी ओर इसी मामले की तफ्तीश के दौरान दूसरी टीम (क्राइम ब्रांच की एंटी किडनैपिंग सेल) ने संभावित कातिलों को दबोचने को खुद की जिंदगियां दांव पर लगा दीं. दक्षिणी जिला पुलिस द्वारा मीडिया में रोज कराई जा रही छीछालेदर से बेहाल, पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने हत्यारों को दबोचने में मदद करने के लिए एसीपी (क्राइम ब्रांच) अजय कुमार (31 अगस्त 2016 को अतिरिक्त पुलिस आयुक्त पद से रिटायर) की टीम भी लगा दी.

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अजय कुमार ने टीम में शामिल इंस्पेक्टर प्रथ्वी सिंह, इंस्पेक्टर ईश्वर सिंह और सतवीर राठी (राठी सन् 1997 में हुए कनॉट प्लेस एनकांउटर में तिहाड़ जेल में बंद हैं) के साथ बड़ौदा (गुजरात) में छापा मार दिया. मुठभेड़ के दौरान दिल्ली पुलिस को गोली भी चलानी पड़ी. गोलीबारी की घटना में पांच में से दो मुलजिम मौका पाकर भाग गए. तीन आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मौके से पुलिस को 8-10 खतरनाक हथियार और करीब 85 राउंड जिंदा कारतूस भी मिले थे.

पीढ़ियां जरूर पुलिस से पूछेंगीं कातिल कौन थे?

दिल्ली नगर निगम ठेकेदार सुभाष गुप्ता सन् 1994 से पर्सनल प्वाइंट का क्लाइंट और बाद में कुछ हद तलक ‘साझीदार’ भी बताया जा रहा था. शादी-शुदा दीपा गुप्ता दिल्ली से सटे हाईटेक शहर नोएडा में रहती थीं. दीपा तीन भाई-बहन में सबसे छोटी थीं. सन् 1992 के आसपास ही दीपा ने बतौर फाइनेंस-सेक्रेटरी पर्सनल प्वाइंट में नौकरी शुरू की थी. दिल्ली पुलिस की 21 साल (जून 1996 से जनवरी 2018) तक फाइलों की बैसाखियों के सहारे आगे बढ़ी नाकाम पड़ताल के चलते, मामले के सभी 10 आरोपी तो बरी हो गए. आने वाली पीढ़ियां मगर एक सवाल दिल्ली पुलिस से हमेशा करती रहेंगी कि, आखिर डॉ सुनील कौल, सुजाता साहा और दीपा गुप्ता का हत्यारा था कौन?

(इस संडे क्राइम स्पेशल में पढ़ें ‘क्यों बदन में हथगोला लगने के बाद खून से लथपथ हालत में भी वो आईपीएस आखिर मोर्चे से नहीं हटा? और गले में गोली लगने के बाद भी रात के अंधेरे में घने जंगलों के बीच घंटों जूझता रहा खूंखार डाकूओं से’)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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