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18 साल पहले जब दाऊद जैसे एक दूसरे डॉन की आहट से चकराई थीं सुरक्षा एजेंसियां

आसिफ़ से ही सीबीआई और दिल्ली पुलिस को पता लगा कि आफ़ताब अंसारी ही भारत के अधिकांश राज्यों में मोटी आसामियों (उद्योगपतियों) के अपहरण का सिंडीकेट चला रहा है.

Updated On: Dec 01, 2018 09:14 AM IST

Sanjeev Kumar Singh Chauhan Sanjeev Kumar Singh Chauhan

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18 साल पहले जब दाऊद जैसे एक दूसरे डॉन की आहट से चकराई थीं सुरक्षा एजेंसियां

‘पड़ताल’ की इस खास किश्त ‘खाड़ी के खुराफाती’ के तहत पढ़िए कि आखिर कैसे करीब 18 साल पहले उभर कर निकला था अंडरवर्ल्ड की दुनिया में दूसरे डॉन यानी दाऊद इब्राहिम के संभावित दुश्मन का नाम?

इलाका जहां मौत से मोर्चेबंदी तय थी

सीबीआई की टीम दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में चूल्हे के नीचे दफन हथियारों का जखीरा बरामद कर चुकी थी. यह हथियार पाकिस्तान से भारत में आतंकवादियों के जरिए भेजे जा रहे थे. अब तक सीबीआई अशबुद्दीन, अब्दुल सुभान और यूनुस खान को गिरफ्तार कर चुकी थी. इन सबसे हुई पूछताछ में पता चला कि इनका मास्टरमाइंड अक़ीब अली है.

अक़ीब अली, गिरोह के बाकी सदस्यों की गिरफ्तारी के वक्त ही सड़क के रास्ते मध्य प्रदेश भाग चुका था. इस जानकारी पर सीबीआई के इंस्पेक्टर जगदीश प्रसाद को जिम्मेदारी दी गई कि वे भोपाल से अक़ीब अली को पकड़ कर लाएं.

5 नवंबर 2001 को इंस्पेक्टर जगदीश प्रसाद रात के वक्त भोपाल पहुंच गए. भोपाल में सीबीआई को पता चला कि अक़ीब अली जहां छिपा हुआ है वो, अल्पसंख्यक बाहुल्य घनी आबादी वाला खतरनाक इलाका है. रात हो या फिर दिन उस क्षेत्र में छापा मारने वाली टीम के ऊपर जानलेवा हमले का जोखिम हमेशा मंडराता रहता है.

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कड़ाके की ठंड में सीबीआई पसीने से भीगी

अक़ीब अली को चूंकि हर हाल में जिंदा दबोचना था सो 5 नवंबर 2001 दिन के वक्त ही छिपते-छिपाते सीबीआई इंस्पेक्टर जगदीश प्रसाद भोपाल के घोड़ा नक्कास इलाके में जा पहुंचे. उम्मीद थी कि अक़ीब अली शिकंजे में फंस जाएगा. जगदीश प्रसाद उस घनी आबादी में धक्के खाते हुए एक गली पर जाकर ठिठक गए. ठिठकने की वजह थी एक गली के बाहर खड़ी सेंट्रो कार.

पहले से जेब में मौजूद डिटेल से इंस्पेक्टर जगदीश प्रसाद को यह तय हो गया था कि कार वही है जिससे अक़ीब दिल्ली से भागकर भोपाल पहुंचा है. थोड़ी ही देर में 30-35 साल का नौजवान कार में बैठकर भीड़ के बीच से धीरे-धीरे बाहर की ओर जाने लगा.

अनजान शहर में अजनबी होने के चलते भीड़ में पैदल ही कार का पीछा कर पाने में इंस्पेक्टर जगदीश को खासी परेशानी हो रही थी. आलम यह था कि कई बार कार के भीड़ में आंखों से ओझल होते ही कड़ाके की ठंड होने के बावजूद भी इंस्पेक्टर जगदीश को पसीना आ जा रहा था. वजह थी कि अगर कार निकल गई तो सारी मेहनत पर पानी फिरना तय था.

डॉन के भाई के जन्म की रिपोर्ट पढ़ते ही साहब सन्न रह गये - बायें से दायें दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल तेजेंद्र खन्ना के साथ दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर और सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट-डायरेक्टर IPS नीरज कुमार

बायें से दायें: दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल तेजेंद्र खन्ना के साथ दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर और सीबीआई के पूर्व जॉइंट -डायरेक्टर IPS नीरज कुमार

मुलजिम अपने ही खिलाफ छोड़ आया सबूत

किस्मत ने सीबीआई की टीम का साथ दिया. इंस्पेक्टर जगदीश को भीड़ के चलते जहां संदिग्ध कार का पीछा करने में परेशानी हो रही थी, वहीं रिक्शा-ठेले की भीड़ में कार भी तेज गति से नहीं चल पा रही थी. भीड़ के बाद कुछ दूर पहुंचकर कार एक फोटो स्टूडियो के सामने खड़ी हो गई. ड्राइविंग सीट पर बैठा लड़का कार से उतरकर स्टूडियो के भीतर चला गया.

थोड़ी ही देर में वो अजनबी स्टूडियो से बाहर निकल आया और कार का ड्राइवर साइड वाला गेट खोलने लगा. पहले से इंतजार में खड़ी सीबीआई की टीम ने संदिग्ध को दबोच लिया. सीबीआई टीम ने फोटो स्टूडियो के अंदर जाकर रसीद-बुक (रजिस्टर) देखी तो, उसमें युवक का नाम अक़ीब अली दर्ज देखकर उसकी बांछें खिल गईं.

खाड़ी के खुराफातियों का सीसीटीवी

कड़ी निगरानी में अक़ीब अली उर्फ फ़िरासत को लेकर सीबीआई टीम दिल्ली पहुंची. दिल्ली में अक़ीब से जब कड़ी पूछताछ शुरू हुई तो उस वक्त वहां सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर नीरज कुमार भी थे.

बकौल नीरज कुमार, ‘अक़ीब को पहली बार जब मैंने आमने-सामने देखा. तो एक बार को अपनी टीम पर ही शक हुआ जो उसे बेहद खतरनाक इंसान बता रही थी. मेरे शक वजह थी अक़ीब की कद-काठी और उसकी बेहद कम उम्र. अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था कि अक़ीब का दिमाग इस कदर देशद्रोही और खूंखार सोच वाला होगा.'

नीरज कुमार बताते हैं, 'बहरहाल उस दिन सीबीआई के सामने सच उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक था जो अक़ीब के बारे में उसकी गिरफ्तारी से पहले पकड़े गए तस्कर साथी बता चुके थे. वास्तव में अक़ीब की मुंहजुबानी जो कुछ मैंने सुना उससे यह तय हो गया था कि अकीब़ खाड़ी के खुराफातियों का ‘सीसीटीवी’ था.’

इंसानी सीसीटीवीदेख चकराई एजेंसियां

बकौल नीरज कुमार, ‘दरअसल अक़ीब कोलकता के कुख्यात गैंगस्टर और हथियार तस्कर आसिफ़ रज़ा खान के लिए काम करता था. इंडो-पाक सीमा पर हथियारों की जितनी भी तस्करी होती, उस पर ‘सीसीटीवी’ से निगरानी रखने की जिम्मेदारी आसिफ़ ने अक़ीब के कंधों पर ही डाल रखी थी. अक़ीब के मुंह से आसिफ़ का नाम सुनते ही मुझे दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के एसीपी (रिटायर्ड ) रवि शंकर कौशिक का नाम याद आया. आसिफ़ को दिल्ली पुलिस के एसीपी रविशंकर 5-6 दिन पहले ही अक्टूबर 2001 में दिल्ली के लोधी गार्डन इलाके से गिरफ्तार कर चुके थे. चूंकि अक़ीब हमारे सामने आसिफ़ का नाम ले चुका था. इसलिए अब उससे भी संयुक्त पूछताछ जरूरी थी. मैंने सीबीआई डायरेक्टर पीसी शर्मा और दिल्ली पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा के जरिए पुलिस के कब्जे में मौजूद आसिफ़ से पूछताछ का इंतजाम कर लिया.’

नीरज कुमार

नीरज कुमार

दोस्त ही जब दुश्मन बन गया

दिल्ली पुलिस के चाणक्यपुरी स्थित क्राइम ब्रांच ऑफिस में सीबीआई ने आसिफ़ अली रज़ा खान से पूछताछ की. आसिफ़ ने सीबीआई टीम के सामने कबूला कि वो यूपी के वाराणसी निवासी हथियार तस्कर गैंगस्टर आफ़ताब अंसारी के लिए काम करता है. आसिफ़ से ही सीबीआई और दिल्ली पुलिस को पता लगा कि आफ़ताब अंसारी ही भारत के अधिकांश राज्यों में मोटी आसामियों (उद्योगपतियों) के अपहरण का सिंडीकेट चला रहा है. कोलकता का पार्था रॉय बर्मन या फिर राजकोट के हीरे-जवाहरात के व्यापारी भास्कर पारिख की हाई-प्रोफाइल किडनैपिंग.

हर सनसनीखेज और करोड़ों की किडनैपिंग का मास्टरमाइंड आफ़ताब अंसारी और उसमें उसका प्रमुख सहयोगी आसिफ़ अली रज़ा खान ही था. इस बात को भले ही भारत की दोनों प्रमुख खुफिया एजेंसियां खुलकर स्वीकार न करें. सत्य मगर यही है कि अगर सीबीआई के हाथ अक़ीब और दिल्ली पुलिस के हाथ आसिफ़ अली रज़ा खान न आता तो शायद आफताब़ की शक्ल देखना भी भारतीय जांच एजेंसियों को मयस्सर नहीं होता. हालांकि बाद में आफ़ताब को यह बेहद नागवार भी गुजरा कि आसिफ़ ने उसके तमाम नेटवर्क को नेस्तनाबूद करवा डाला.

एक आसिफ़ ने खोले सौ-सौ नाम

नीरज कुमार ने बताया, ‘दिल्ली पुलिस हो या फिर सीबीआई या हिंदुस्तान की दोनों खुफिया एजेंसियां (रॉ और आईबी). उसी दिन सबको यह पता चल सका कि अमान, अज़हर, अब्दल, फ़रहान मलिक कोई और नहीं बल्कि एक आफ़ताब अंसारी के ही अलग-अलग नाम हैं. जो उसने पहचान छिपाने के लिए रखे हैं. इन तमाम नाम में से फ़रहान मलिक नाम मेरे जेहन में बार-बार चुभ सा रहा था. मैं लाख चाहकर भी अपने दिमाग से फ़रहान मलिक को डिलीट नहीं कर पा रहा था. बार-बार लग रहा था कि फ़रहान मलिक हो न हो, कहीं न कहीं देखा सुना-सुना सा जरूर है.’

सीलबंद रिपोर्ट ने रोकी बॉसकी सांस!

आसिफ़ से पूछताछ में हाथ आई महत्वपूर्ण जानकारी सीलबंद लिफाफे में सीबीआई के तत्कालीन निदेशक पीसी शर्मा के हवाले कर दी गई. रिपोर्ट नीरज कुमार ने बनाई थी. वो गोपनीय रिपोर्ट कुछ इस तरह इशारा कर रही थी मानों अंडरवर्ल्ड और सिंडीकेट क्राइम (संगठित अपराध) की दुनिया में आफ़ताब अंसारी के रूप में हिंदुस्तानी सरजमीं पर दाऊद इब्राहिम के भाई का जन्म हो गया हो!

रिपोर्ट में साफ लिखा था, ‘आफ़ताब अंसारी कट्टरपंथी अपराधियों का एक संगठित गिरोह चला रहा है. जो भारत को तबाह करने के लिए आतंकवादी गतिविधियों को भी बखूबी अंजाम देने की औकात रखता है. जिसका अड्डा दुबई में है. इस घिनौने खेल में पाकिस्तान पूरे तौर से उसे अपनी बैसाखियां दे रहा है.’

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दाऊद के भाई के जन्म की खबर गले पड़ी!

बकौल नीरज कुमार, ‘मैंने जो आंखों से देखा और अपने कानों से सुना उसके हिसाब से हू-ब-हू रिपोर्ट सीबीआई डायरेक्टर को पेश कर दी थी. यह अलग बात है कि उस वक्त के ‘बॉस’ (DIRECTOR CBI) को शायद मेरे द्वारा पेश वो बेहद सनसनीखेज मगर महत्वपूर्ण रिपोर्ट ‘आग और घी का मिलन’ कराने जैसी महसूस हुई हो! अगर यह कहूं कि, ‘बॉस’ मेरी उस रिपोर्ट को किसी भी कीमत पर खुद के गले आसानी से न उतारकर दाएं-बाएं से खारिज सी करते महसूस हुए, तो गलत नहीं होगा. बहरहाल जो भी हो. मेरा काम ईमानदारी से फैक्ट्स को सरकार के सामने पेश करने का था. सो कर दिया. बाकी कुछ काम और जिम्मेदारी सिस्टम की भी होनी चाहिए.’

पूर्व आईपीएस और यूपी पुलिस में स्पेशल टास्क फोर्स के जन्मदाता अजय राज शर्मा (फोटो सौजन्य अशोक सक्सेना दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी)

दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर अजय राज शर्मा (फोटो सौजन्य अशोक सक्सेना दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी)

दिल्ली का शिकार, राजकोट में ढेर

बाद में दिल्ली पुलिस से आसिफ़ रज़ा खान को राजकोट (गुजरात) पुलिस ले गई. 7 दिसंबर 2001 खबर आई कि राजकोट पुलिस की हिरासत से फरार होने की नाकाम कोशिश में आसिफ़ वहां मारा गया. आसिफ के बारे में पता तो यह भी चला था कि वो, कट्टर जिहादी सोच वाला था. साथ ही उसने बाहवलपुर (पाकिस्तान) स्थित लश्कर-ए-तैय्यबा के हेड-क्वॉर्टर का भ्रमण भी आफ़ताब अंसारी के साथ ही किया था.

इतना ही नहीं आगे की ‘पड़ताल’ में यह भी साबित हो गया कि दोनों ने (आफ़ताब और आसिफ़) 2000 की शुरुआत में भारत में लश्कर के पांव टिकवाने वाले आज़म चीमा से भी कई मुलाकातें की थीं. फिलहाल आफ़ताब अंसारी को जुलाई 2018 में अहमदाबाद की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 10 साल कैद की सजा सुना रखी है. जबकि कोलकता स्थित अमेरिकन सेंटर हमले में वो पहले से ही उम्रकैद की सजा काट रहा है.

संडे क्राइम स्पेशलमें पढ़ना न भूलें

‘कल तक जिन ‘माई-लॉर्ड’ के नाम से मुजरिमो की ‘जिंदगी’ थर्राती थी. खूंखार मुजरिमो को जो इंसान, फाँसी के फंदे पर लटकवाने के लिए देश-दुनिया भर में चर्चित हुआ. आज वही इंसान भटक रहा है. कड़कड़ाती ठंड और मई-जून की तपती दुपहरियों में. धूल फांकता हुआ. गैरों की ‘मौत’ को मात देने की जद्दोजहद में उलझा हुआ. किसी चकाचौंध वाले मेट्रो शहर में नहीं. बल्कि देश की राजधानी दिल्ली से 350 किलोमीटर दूर. पंजाब राज्य के एक अदना से गांव में.’

(पड़ताल की यह किश्त दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार से हुई विशेष-बातचीत पर आधारित है. लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं)

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