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ओपी नैयर: एक जीनियस जिसने दुनिया छोड़ दी, लेकिन जिद नहीं...

16 जनवरी, 1926 को लाहौर में जन्मे ओमकार प्रसाद नैयर ने 28 जनवरी, 2007 को आखिरी सांस ली

Updated On: Jan 28, 2018 04:26 PM IST

Shailesh Chaturvedi Shailesh Chaturvedi

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ओपी नैयर: एक जीनियस जिसने दुनिया छोड़ दी, लेकिन जिद नहीं...

साल था 1962. वही साल, जब भारत और चीन का युद्ध हुआ था. जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. 56 साल बीत गए. इतने साल कि उस साल पैदा हुआ शख्स आज सरकारी नौकरी में रिटायरमेंट से महज चार साल दूर होगा. तब एक फिल्म आई थी एक मुसाफिर एक हसीना. जॉय मुखर्जी और साधना की फिल्म हो सकता है कि कुछ लोगों को याद न हो. लेकिन उसके गाने जरूर याद होंगे. बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मैं प्यार का राही हूं, आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे... फिल्म का हर गाना सुपरहिट था. इसी फिल्म में एक गाना था – मुझे देखकर आपका मुस्कुराना... गाना उस वक्त बाकी कुछ गानों के मुकाबले कम हिट हुआ.

अब साल आया 1999. एक मुसाफिर एक हसीना से 37 साल बाद. उस साल एक फिल्म रिलीज हुई संघर्ष. इसमें अक्षय कुमार और प्रीति जिंटा थे. इस फिल्म में एक गाना है, जो टेलीफोन बूथ से गाया जाता है – मुझे रात दिन बस मुझे चाहती हो. संगीतकार जतिन ललित थे. यह गाना सुनिए... 1962 की याद आएगी.

इस बारे में आगे चर्चा से पहले एक और फिल्म का जिक्र कर लेते हैं. सलमान खान और आमिर खान की एक फिल्म आई थी अंदाज अपना अपना. साल था 1994. इस फिल्म में कई गाने थे. फिल्म के संगीतकार तुषार भाटिया थे. इस फिल्म का संगीत एक तरह से किसी संगीतकार को समर्पित था. वही संगीतकार, जिसने 1962 में एक मुसाफिर एक हसीना का संगीत दिया. अगर 90 के दशक में भी उसी तर्ज को अपनाया जा रहा है, तो समझा जा सकता है कि उस संगीत में कितनी तरावट या ताजगी रही होगी.

ये सिर्फ दो गाने हैं. ओपी नैयर का संगीत किन्हीं दो गानों से नहीं आंका जा सकता. जब-जब जुल्फें उड़ेंगी और कंवारियों का दिल मचलेगा तो ओपी नैयर याद आएंगे. जब-जब घोड़े की टाप सुरीली होगी ओपी नैयर याद आएंगे. जब-जब भारतीय फिल्म संगीत में नटखटपन की बात होगी, तो ओपी नैयर याद आएंगे. जब-जब लीक से अलग हटकर काम करने की बात होगी, तो ओपी नैयर याद आएंगे.

ओपी यानी ओमकार प्रसाद नैयर, जिन्होंने अपनी जिंदगी और अपना संगीत लीक से हटकर किया. नैयर साहब की सनक के एक से बढ़कर एक किस्से मिलेंगे. उनकी जिद के एक से बढ़कर एक किस्से मिलेंगे. जिस वक्त पूरी दुनिया लता मंगेशकर को पूजती थी, ओपी नैयर ने लता जी के बगैर अपना संगीत दिया और एक से बढ़कर एक हिट दिए. यह लीक से हटकर काम करने वाले किसी जिद्दी जीनियस का ही जिगरा हो सकता था.

नैयर साहब तो लाहौर से आए थे. 16 जनवरी 1926 को जन्मे और 28 जनवरी 2007 को दुनिया से रुखसत हुए. लेकिन बीच के इन करीब 81 सालों में उन्होंने जो किया, उसे संगीत जगत हमेशा याद रखेगा. आशा भोसले का मांग के साथ तुम्हारा में घोड़े के टापों की आवाज हो.. या शमशाद बेगम की जानदार आवाज में रेशमी सलवार कुर्ता जाली का... या फिर गीता दत्त का गाया बाबूजी धीरे चलना... हरेक गाने पर ट्रेडमार्क ओपी नैयर का ठप्पा लगा दिखता है. इसीलिए संघर्ष हो या अंदाज अपना अपना.. वो गाने बजते ही ओपी नैयर की तस्वीर जेहन में आती है.

इस दौर के लोगों ने ओपी नैयर का वही रूप देखा है, जो एक टीवी प्रोग्राम में नजर आता था. सारेगामा कार्यक्रम के वो जज थे और हमेशा झक सफेद कपड़ों में नजर आते थे. सिर पर हैट होता था. सोनू निगम उस कार्यक्रम के होस्ट थे. दिलचस्प है कि संघर्ष का वो गाना सोनू निगम की ही आवाज में है, जिसे ओपी नैयर के संगीत से प्रेरित भी कह सकते हैं और उसकी नकल भी.

ओपी नैयर के करियर की शुरुआत 1952 में हुई थी. हालांकि उनकी फिल्म आसमान हिट नहीं हुई. हां, इस बीच गुरु दत्त से दोस्ती हुई. इसी के चलते फिल्म आर पार आई. इसमें गीता दत्त ने हूं अभी मैं जवां गाया. इसके बाद तो ओपी नैयर के लिए आसमां छूने का वक्त था. उन्होंने तय किया कि लता मंगेशकर के साथ नहीं गाएंगे. इसकी वजह विवाद कही जाती है. हालांकि बाद के इंटरव्यू में ओपी नैयर ने हमेशा का कहा कि लता जी की आवाज में पाकीजगी थी. उन्हें शोखी की जरूरत थी, जो आशा भोसले या शमशाद बेगम की आवाज में ज्यादा थी. इस वजह से उन्होंने लता जी के साथ काम नहीं किया.

ओपी नैयर ने उस दौर में बड़े दुश्मन बनाए. मोहम्मद रफी से भी अनबन हुई. हालांकि फिर रिश्ते सुधर गए. वो सबसे ज्यादा पैसे लेने वाले संगीतकार बन गए थे. उसी समय आशा भोसले के साथ उनके अफेयर के चर्चे होने लगे. कुछ इंटरव्यू में ओपी नैयर ने माना था कि आशा जी के साथ उनके रिश्ते थे. यह भी माना कि किसी वजह से दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ गए और अलगाव हो गया. आशा जी से अलगाव के बाद वो जादू कभी पैदा नहीं हो पाया, जिसके लिए नैयर साहब को जाना जाता था.

पत्नी के साथ नैयर साहब के रिश्ते भी खराब ही रहे. वो घर से अलग रहने लगे. अपने एक दोस्त के साथ. मुंबई के पॉश इलाके को छोड़ दिया. कहा जाता है कि आखिरी समय में वो बिल्कुल अकेले थे. बहुत कम लोगों से मिला करते थे. यह एक जिद ही थी. एक सनक थी. लेकिन कहते ही हैं कि ज्यादातर जीनियस सनकी होते हैं. ओपी नैयर संगीत के मामले में बिल्कुल अलग थे. कभी भीड़ का हिस्सा नहीं बने. लेकिन जीनियस के सनकी होने के मामले में वो अलग नहीं हो पाए. दुनिया छोड़ दी. लेकिन जिद नहीं छोड़ी.

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