पचास के दशक की बात है. 25-26 साल की उम्र में ओपी नैयर बतौर फिल्म संगीतकार मुंबई में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. उस दौरान उनके पास फिल्म संगीत का ना तो ज्यादा अनुभव था और ना ही ज्यादा काम. असल कहानी तो ये है कि ओपी नैयर हीरो बनने के लिए मुंबई पहुंचे थे. उन्हें एक्टिंग का शौक था.
उन दिनों के मशहूर फिल्मकार शशधर मुखर्जी ने उनका स्क्रीन टेस्ट भी लिया था. जिसमें वो फेल हो गए. इसके बाद ही उनके संगीतकार बनने का सफर शुरू हुआ. ऐसे में उन्हें दलसुख एम पंचोली नाम के फिल्म निर्माता ने अपनी फिल्म के लिए संगीत बनाने की जिम्मेदारी दी.
दलसुख एम पंचोली कराची के रहने वाले थे. पहली पंजाबी फिल्म बनाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है. खैर, दलसुख एम पंचोली की उस फिल्म का नाम था- आसमान. ये उन दिनों की बात है जब फिल्म इंडस्ट्री में बतौर गायिका लता मंगेशकर का जलवा कायम हो रहा था. हर संगीतकार उनसे गाने गवाने के लिए तैयार था.
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लता मंगेशकर, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, हेमंत कुमार, कल्याण जी आनंद जी, वसंत देसाई, नौशाद, खय्याम जैसे बड़े संगीतकारों के लिए गा रही थीं. ऐसे में जब ओपी नैयर ने आसमान फिल्म का संगीत तैयार किया तो वो भी चाहते थे कि लता मंगेशकर उनकी फिल्म के लिए गाना गाएं.
इसके लिए लता मंगेशकर और ओपी नैयर के बीच बातचीत हो गई. सबकुछ तय हो गया. करार भी हो गया. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ओपी नैय्यर ने पूरी जिंदगी लता मंगेशकर से एक भी गाना नहीं गवाया. उसूलों और जिद के पक्के उसी संगीतकार ओपी नैय्यर का आज जन्मदिन है.
साथ काम न करने के बाद भी दोनों ही कलाकारों ने पाई कामयाबी
दरअसल हुआ यूं कि उन दिनों लता मंगेशकर की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्हें साइनस की तकलीफ थी. लता मंगेशकर ने ओपी नैयर के साथ रिकॉर्डिंग का जो समय तय किया था उसी समय उनकी तकलीफ और बढ़ गई. लता जी ने ओपी नैयर को इत्तला दी कि वो तय समय पर गाना रिकॉर्ड नहीं करा पाएंगी. उन्होंने ओपी नैयर से रिकॉर्डिंग की तारीख को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रखा.
इस पूरी कवायद में कहीं ना कहीं ओपी नैयर और लता जी के बीच कुछ भ्रम हुआ क्योंकि ओपी नैयर ने रिकॉर्डिंग की डेट आगे बढ़ाने की बजाए उस रिकॉर्डिंग को कैंसिल ही करा दिया. लता जी को ये बात अच्छी नहीं लगी. उन्हें लगा कि अगर एक संगीतकार अपने गायक की तकलीफ को नहीं समझ रहा है तो उसके साथ काम करने का क्या फायदा.
यह बात निश्चित तौर पर समझी जा सकती है कि ओपी नैयर ने भी लता जी के मना करने को किसी और अर्थ में लिया होगा. हालांकि उन्होंने कई बार अपने इंटरव्यू में ये बात कही कि वो जिस तरह का संगीत बनाते थे उसमें रोमांस वाली आवाजें ही उन्हें चाहिए थीं. जिसके लिए शमशाद बेगम, गीता दत्त और आशा भोसले उन्हें ज्यादा पसंद थीं.
खैर, इस एक छोटी सी बात ने ऐसे हालात कर दिए कि ओपी नैय्यर को लता मंगेशकर ने कभी भी एक दूसरे के साथ काम नहीं किया. बावजूद इसके इन दोनों फनकारों ने कामयाबी की बुलंदी तक का सफर तय किया. इस तुनकमिजाजी के पीछे ओपी नैयर के बचपन की झुंझलाहट थी थी. उनका बचपन बड़ी मुश्किलों में बीता था. जिसमें घरवालों की पिटाई से लेकर लगातार बीमारियों तक को उन्होंने झेला था.
आशा भोसले को पहचान दिलाने में नैयर ने निभाई थी खास भूमिका
लता मंगेशकर के साथ काम ना करने के फैसले के बाद ओपी नैयर ने अपनी फिल्मों में गीता दत्त, शमशाद बेगम और आशा भोसले से प्लेबैक सिंगिग कराई. शुरुआती नाकामी के बाद आशा भोसले को पहचान दिलाने वाले गानों का संगीत ओपी नैयर ने ही तैयार किया था. इसमें फिल्म नया दौर का जिक्र जरूरी है.
इस फिल्म में 'मांग के साथ तुम्हारा', 'रेशमी सलवार कुर्ता', 'उड़े जब-जब जुल्फें तेरी' जैसे हिट गानों ने आशा भोसले को एक नया रास्ता दिखाया. इसी फिल्म के संगीत के लिए ओपी नैयर को फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया. बाद में ओपी नैयर की मोहम्मद रफी से भी खटपट हो गई थी. तब उन्होंने महेंद्र कपूर से गाना गवाना शुरू कर दिया.
इन सारे मतभेदों के बाद भी बतौर संगीतकार ओपी नैयर के काम को हर किसी ने सलाम किया. उनके समकालीन संगीतकारों में नौशाद साहब उनकी तारीफ करते नहीं थकते थे. नौशाद साहब का मानना था कि ओपी नैयर ने बतौर संगीतकार जो भी काम किया वो लाजवाब था.
वे अपनी तरह के अकेले संगीतकार थे. उनके संगीत पर किसी और संगीतकार के काम की छाप नहीं थी. उन्होंने अपनी मर्जी का रास्ता चुना और उसी पर चलकर कामयाबी हासिल की. नौशाद साहब भी ये बात मानते थे कि जिस दौर में ओपी नैयर ने बगैर लता मंगेशकर के कामयाबी हासिल की वो बहुत मुश्किल काम था.
नैयर के इन गानों पर आज भी थिरक उठते हैं पांव
'बाबू जी धीरे चलना', 'ये लो मैं हारी पिया', 'कभी आर कभी पार', 'आइए मेहरबां', 'मेरा नाम है चिन-चिन चू', 'बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी', 'आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे', 'रेशमी सलवार कुर्ता', 'उड़े जब-जब जुल्फें तेरी', 'लाखों हैं निगाह में जिंदगी की राह में', 'फिर वही दिल लाया हूं', 'तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया', 'इशारों इशारों में दिल लेने वाले', 'दीवाना हुआ बादल', 'पुकारता चला हूं मैं', 'जाइए आप कहां जाएंगे', 'कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला', 'आओ हुजूर तुमको', 'लाखों हैं यहां दिलवाले' जैसे सैकड़ों गाने ओपी नैय्यर की याद दिलाते हैं.
आज भी इन गानों को सुनकर लोगों के पैर थिरकने लगते हैं. ओपी नैयर ने ये सारे हिट गाने 60 और 70 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री को दिए. उन्होंने तकरीबन 80 हिंदी फिल्मों का संगीत तैयार किया था. ये भी कहा जाता है कि जब हिंदी फिल्मों में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का दौर आया तो ओपी नैयर उनकी फिल्मों के लिए संगीत बनाने से परहेज करते थे.
उन्हें दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, गुरुदत्त जैसे मंझे हुए कलाकारों वाली फिल्मों के लिए संगीत बनाना पसंद था. 90 के दशक में एक बार फिर ओपी नैयर ने कुछ फिल्मों का संगीत तैयार किया लेकिन उन्हें औसत कामयाबी ही मिली. बाद के दिनों में उन्हें रिएलिटी शो 'सारेगामापा' में जज के तौर पर भी करोड़ों लोगों ने देखा. 2007 में ओपी नैय्यर ने दुनिया को अलविदा कहा.
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