1985 का साल था जब हर जगह लोगों की फुसफसाहट भरी एक बात चल रही थी. फैजाबाद में गुमनामी बाब उर्फ भगवनजी की मृत्यु हो गई थी. कई लोगों का कहना था कि ये गुमनामी बाबा और कोई नहीं बल्कि खुद सुभाषचंद्र बोस थे. इस बात पर लोगों का कौतूहल तब और ज्यादा बढ़ गया जब उनकी मृत्यु के बाद उनके सामान की जांच हुई. उनके सामान से कई सारी ऐसी चीजें बरामद हुई जिनका संबंध सीधे-सीधे गुमनामी बाबा का तार सुभाषचंद्र बोस से जोड़ सकता था. पहले नज़र डालते हैं ऐसी ही कुछ समानताओं पर.
चेहरों का मिलना
गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस है या नहीं इस बात की चर्चा में कई तथ्य खंगाले गए. इन तथ्यों में दोनों के चेहरों का काफी हद तक मिलना भी शामिल था. पता नहीं कि ये मात्र एक इत्तेफाक है या नहीं कि गुमनामी बाबा और सुभाषचंद्र बोस का चेहरा एक दूसरे से इस हद तक मिलता है. इसी तरह के कुछ तर्क देकर इस बात को सिद्ध करने की कोशिश की गई कि गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस हैं.
इस कड़ी में बात गुमनामी बाबा के पास से बरामद सिगार और घड़ियों की भी चली. गुमनामी बाबा के पास ठीक उसी ब्रांड की घड़ियां और सिगार थी जिसका इस्तेमाल बोस करते थे.
सुभाषचंद्र बोस के 67वें जन्मदिन पर जारी हुए ये स्टैंप भी गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी के पास से बरामद हुए थे.
इन सब चीजों के साथ-साथ गुमनामी बाबा के पास से कई और चीजें भी बरामद हुई जैसे फौजी दूरबीन, चाय का महंगा केतली-सेट और वॉलेट. लोगों ने इन सब चीजों के एक संत के पास से बरामद होने पर सवाल उठाए.
इसके अलावा उनके पास से टाइपराइटर और कई किताबें भी बरामद हुई. ये वैसी चीजें थी जिनका इस्तेमाल सुभाषचंद्र बोस किया करते थे.
गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस थे कि नहीं इस बात की पुष्टि तो नहीं हो पाई पर उस समय के कई अखबारों ने तो गुमनामी बाबा की मौत को सीधे-सीधे सुभाषचंद्र बोस की मौत ही बता दिया था.
जब जयगुरूदेव ने कहा मैं ही हूं सुभाष चंद्र बोस
ये किस्सा 1975 का है जब कानपूर के फूलबाग के नानाराव पार्क में रैली शुरू होने वाली थी. इस रैली की तैयारियां महीनों से चल रही थी. हजारों की तादाद में लोग जमा हुए थे. इस भीड़ की एक अहम वजह थी. वो वजह थी सुभाषचंद्र बोस. दरअसल लोगों से कहा गया था कि इस रैली में सुभाषचंद्र बोस आने वाले हैं. लोग मान बैठे थे कि नेता जी की मौत तो प्लेन क्रैश में हो चुकी है, ऐसे में इस तरह के ऐलान से लोगों का चौंकना लाजमी था.
रैली शुरू हुई, जयगुरुदेव मंच पर आए. सारे लोग टकटकी लगाए देख रहे थे कि अब सुभाष आएंगे. इतने में बाबा ने दोनों हाथ उठाकर कहा, ‘मैं ही हूं सुभाष चंद्र बोस’. ये सुनते ही मंच पर चप्पल, अंडों और टमाटरों की बरसात शुरू हो गई. गुस्साई भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया. बाबा जान बचाकर वहां से निकल लिए. कहा जाता हैं कि पूरा फूलबाग उस दिन चप्पलों से भर गया था.
सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन के अवसर पर एक नजर सुभाषचंद्र बोस की कुछ खास तस्वीरों पर.
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