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नेहरू: मिथक और सत्य- नेहरू के बारे में वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी पर फैलाए जा रहे रह भ्रम को तोड़ती एक किताब

'यह किताब पिछले साठ साल से नेहरू के खिलाफ चलाए जा रहे अघोषित मुकदमे में नेहरू का मुकम्मल बयान है.'

Updated On: Jan 05, 2019 03:44 PM IST

FP Staff

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नेहरू: मिथक और सत्य- नेहरू के बारे में वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी पर फैलाए जा रहे रह भ्रम को तोड़ती एक किताब

'नेहरू तो मेरे दिमाग में तब और जोरदार ढंग से आए जब भारतीय जनता पार्टी ने 2013 में नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया. इस घोषणा के साथ ही मुझे यह बात स्पष्ट होने लगी कि आने वाले समय में सरदार वल्लभ भाई पटेल सामाजिक विमर्श के केंद्र में आएंगे और पंडित नेहरू की निंदा के नए बहाने जरूर खोजे जाएंगे.'

ये लाइनें लेखक पीयूष बबेले ने किताब की शुरुआती प्रस्तावना में लिखी हैं. दरअसल नेहरू मिथक और सत्य की प्रस्तावना में ही लेखक ने यह बताया है कि आखिर इस किताब की जरूरत आज के समय में क्यों हैं. आप यूट्यूब से लेकर व्हाट्सऐप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे ढेरों की अधकचरी जानकारियां पा सकते हैं, जो पिछले कुछ सालों में तेजी के साथ प्रचारित की जा रही हैं. सोशल मीडिया पर फैले भ्रमित कर देने वाले झूठ के इस भंडार में अगर कोई भी ऐसी बात है जिस पर आपको भरोसा हो तो आपको यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए. जवाहर लाल नेहरू के विचार राष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, सांप्रदायिकता और राष्ट्रनिर्माण पर क्या थे, ये जानने के लिए नेहरू मिथक और सत्य एक दस्तावेजी ग्रंथ है. खुद लेखक भी बताते हैं कि उन्होंने इस किताब को लिखने में करीब छह साल का समय और साढ़े तीन सौ किताबों से संदर्भ लिया है.

यह किताब तकरीबन हर उस मुद्दे को समेटेने में सफल रही है जिसे लेकर व्हाट्सऐप युनिवर्सिटी में भ्रम फैलाया जाता है. किताब की प्रस्तावना में लेखक ने लिखा है- 'यह किताब पिछले साठ साल से नेहरू के खिलाफ चलाए जा रहे अघोषित मुकदमे में नेहरू का मुकम्मल बयान है.'

पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में विभक्त इस किताब में नेहरू के विचार उस हर महत्वपूर्ण विषय के बारे में हैं जो सिर्फ आजादी के समय के लिए ही नहीं बल्कि आज भी समीचीन हैं.

आज के दौर में जब तकरीबन हर विरोध रखने वाले व्यक्ति को पाकिस्तान जाने की नसीहत दे दी जाती है यह किताब जवाहर लाल नेहरू के एक भाषण के साथ ही शुरू होती है जिसमें आजादी के मायने बताए गए हैं.

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आजादी आई, इंडिपेंडेंस आई, किसके लिए आजादी आई, किसके लिए इंडिपेंडेंस आई? क्या वह चंद लोगों के लिए आई? जवाहरलाल के लिए आई कि उसको आपने चंद रोज़ के लिए प्रधानमंत्री बना दिया? जवाहरलाल आएंगे और जाएंगे और लोग भी आते हैं, जाते हैं लेकिन हिंदुस्तान के चालीस करोड़ आदमी हैं और आरते हैं और बच्चे हैं, जो आजादी के हिस्सेदार हैं वारिस हैं, उनको इससे पूरा फायदा मिलना है, तब आजादी पूरी होगी. ( जवाहरलाल नेहरू, 15 अगस्त, 1960 )

राष्ट्र नाम के इस पूरे खंड में लेखक ने नेहरू के भाषणों के माध्यम से उनकी राष्ट्र के बारे में अवधारणा को पूरी तरह सामने रखने में कामयाबी पाई है. दिलचस्प है कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर लेखक ने लोगों के सामने यह सच्चाई रखने में कामयाबी पाई है कि आर्टिकल 370 के असली सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल थे ना कि जवाहरलाल नेहरू. आम लोगों के बीच यह मिथक आपको खूब आसानी से तैरता मिल जाएगा कि कश्मीर की समस्या तो नेहरू की खड़ी की हुई है. लेकिन ये किताब आपको वास्तविकता से रूबरू करवाती है.

जब हम नेहरू की विरासत की बात करते हैं तो उनके धर्मनिरपेक्ष विचारों का जिक्र जरूर आता है. लेखक ने किताब में सांप्रदायिकता नाम का भी एक खंड रखा है. जब भारत पाकिस्तान बंटवारे की वजह से देश का बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक दंगों की चपेट में था तब नेहरू की शरणार्थियों के बीच कही गईं ये बातें पढ़िए...

'मेरा कहना यही है कि इन मुसलमानों ने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा है तो तुम भी इन्हें नुकसान मत पहुंचाओ. हमें तो न्याय के रास्ते पर चलना चाहिए, अगर इंसाफ का तकाजा कहे और जरूरी हो जाए तो हम पाकिस्तान से युद्ध छेड़ सकते हैं और आप लोग सेना में भर्ती हो सकते हैं. लेकिन इस तरह की नीति और कायरतापूर्ण बात गलत है.'

समझा जा सकता है कि नेहरू के विचार सांप्रदायिक भावनाओं के किस कदर खिलाफ थे. अभी हाल ही में उठा एक मुद्दा सभी की यादों में ताजा होगा कि जब भगत सिंह जेल में बंद थे तो कांग्रेस का कोई नेता उनसे मिलने नहीं गया था. इस सवाल का जवाब देने की भी लेखक ने अपने ढंग से बेहतरीन कोशिश की है. इसके लिए लेखक ने समकालीन व्यक्तित्व नाम से एक पूरा खंड ही रखा है. इस खंड में नेहरू के समकालीन विशेष तौर पर सुभाष चंद्र बोस, वल्लभ भाई पटेल और भगत सिंह के साथ में उनके संवादों का दस्तावेजीकरण किया गया है. दरअसल इन तीनों ही नेताओं को लेकर नेहरू पर आक्षेप लगाए जाते हैं. तो अगर आपको नेहरू के साथ इन तीनों क्रांतिकारियों के संबंध पर विस्तार से पढ़ना है तो ये किताब आपके लिए बिल्कुल मुफीद साबित हो सकती है.

प्रकाशक: संवाद प्रकाशन

मूल्य: 300 रुपये

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