कहते हैं भारतीय संस्कृति में इतनी बहुलता है मानों यह एक देश नहीं बल्कि कई देश का समूह हो. इसके अलग-अलग रंग का सबसे बेहतरीन उदाहरण है नवरात्रि. बंगाल..दिल्ली और गुजरात में नवरात्रि के उत्सव मनाने का तरीका एकदूसरे से बिल्कुल जुदा हैं. कहीं उपवास रखकर शक्ति की पूजा की जाती है तो कहीं मछली खाकर.
गुजरात में गरबा रास के साथ नवरात्रि में देवी की अराधना की जाती है. गरबा अब किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रह गया है. शहरों में यह डांडिया नाइट का अहम हिस्सा बन गया है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि गुजरात की संस्कृति में 'डांडिया' नहीं कहा जाता.
जी हां! गुजरात में गरबा और रास होता है. बदलते वक्त के साथ यह गरबा रास कहलाने लगा है. गरबा और रास के बीच कुछ खास फर्क हैं. गरबा सिर्फ महिलाएं करती हैं. इसमें खासतौर पर देवी के भजन गाए जाते हैं. महिलाएं दोनों हाथों से ताली बजाते हुए गरबा करती हैं. पहले गरबा में पुरुष शामिल नहीं होते थे लेकिन अब महिला पुरुष एकसाथ इसे करने लगे हैं.
दूसरा है रास, जो अब डांडिया बन गया है. गुजरात में रास मूल रूप से पुरुष करते हैं. इसमें वे तलवार भांजते हैं. महेर समाज के पुरुषों के बीच यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. गुजरात की लेडी डॉन संतोखबेन इसी समाज से आती थीं. राजपूत लड़ाके तलवार भांजते हुए नृत्य करते हैं जिसे रास कहते हैं. गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में यह सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं. राजपूताना शादियों में आज भी यह नृत्य करना परंपरा का हिस्सा है. रास को लेकर कई लोककथाएं हैं. कुछ लोगों का कहना है कि राजपूत तलवार के साथ रास करते थे. बाद में दूसरी जातियों के लोग ने डंडों के साथ रास शुरू किया जो शहर में आते-आते 'डांडिया' कहलाने लगा. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि कृष्ण गुजरात के राजा थे. वो अपनी गोपियों के साथ रास रचाते थे और वहीं से यह परंपरा आई.
पारंपरिक रास करने के लिए पुरुष ऊपर एक खास फ्रॉक की तरह ड्रेस पहनते हैं. जिसे केडियू कहते हैं. नीचे धोती की आकार में सिला हुआ पाजामा होता है जिसे चोयनी कहा जाता है. रास खासतौर पर सौराष्ट्र में खेला जाता है इसलिए इस पूरे ड्रेस को सोरठ भी कहते हैं.
गोफ का नाम सुना है!
गरबा और रास के अलावा गुजरात में गोफ भी खेला जाता है. वैसे लोगों को इसकी जानकारी बहुत कम है. गोफ भी गरबा और रास की तरह एक तरह का नृत्य है. गोफ की खासियत यह है कि यह करते हुए स्त्री-पुरुष के एक हाथ छोटा डंडा और दूसरे हाथ में रस्सी होती है. रस्सी का एक छोर इनके हाथ में होता है और दूसरा छोड़ एक लंबे डंडे से बंधा होता है. सब महिला-पुरुष डंडे के चारों तरफ घूमते हैं. इस नृत्य की खासियत है कि रस्सी के साथ घूमते हुए डंडे पर रस्सियों से एक डिजाइन बनाते हैं. घूमते-घूमते जब सबकी रस्सियां छोटी हो जाती हैं तो फिर वे नृत्य करते हुए उल्टी तरफ से घूमते हैं. इस तरह वो रस्सियां खुलती हुई फिर लंबी हो जाती है. इस नृत्य में सामंजस्य बहुत जरूरी है. लिहाजा यह खास मौकों पर प्रोफेशनल कलाकार ही करते हैं. इसे और बेहतर ढंग से समझने के लिए ये वीडियो देख सकते हैं.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.