जैसे ही नवरात्रि शुरू होती है तो देशभर में गरबे की धूम सुनाई देती है. सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में तैरती हुई रंग बिरंगी तस्वीरें खूब दिखती हैं. लोगों को ये रंगीले गुजराती परिधान खूब लुभाते भी हैं.
बीते कुछ सालों के दौरान गरबा शब्द देश के लगभग हर कोने में पहुंच गया है. गुजरात से बाहर निकलकर तेजी के साथ इसकी लोकप्रियता बढ़ी है. लेकिन बेहद कम लोगों को जानकारी होगी कि गरबा शब्द मूल रूप से संस्कृत के एक गर्भद्वीप से निकला हुआ है. बाद में अपभ्रंश के रूप में यह शब्द बदलता चला गया और वर्तमान में इसे गरबा के नाम से जाना जाता है.
गरबा की शुरुआत में देवी के नजदीक एक सछिद्र घड़े को फूलों से सजाकर उसमें दीपक रखा जाता है. इसी दीप का दीपगर्भ कहा जाता है.
गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है. आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है. इस रूप में उसका कुछ बदलाव हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है.
गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है.
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