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पुण्यतिथि विशेष: दो अलग-अलग लोग थे मुंशी और प्रेमचंद

धनपत राय हिंदी में लिखने के लिए लेखकीय नाम प्रेमचंद का इस्तेमाल करते थे

Updated On: Oct 08, 2018 08:43 AM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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पुण्यतिथि विशेष: दो अलग-अलग लोग थे मुंशी और प्रेमचंद

‘मुंशी प्रेमचंद’, ये नाम हिंदी जानने, समझने, पढ़ने या लिखने वाले किसी भी शख्स के लिए अनजाना नहीं है. कक्षा दो में ‘दो बैलों की कथा’ के साथ जो जुड़ाव प्रेमचंद के साथ बनता है वो कभी नहीं बदलता. प्रेमचंद की कहानियों को हम सब पढ़ते आए हैं और उनके लिए मुंशी जी का संबोधन बड़ा आम है. मगर पिछले कुछ समय में एक सवाल उठा है, क्या मुंशी और प्रेमचंद दो अलग-अलग आदमी थे?

ये पहली बार सुनने में जितना अजीब लगता है थोड़ा ध्यान से जानने-समझने पर उतना विचित्र विचार भी नहीं लगता. हालांकि ये एक ऐसी बात है जिसके पक्ष और विपक्ष दोनों में ही अच्छे खासे तर्क दिए जा सकते है. मगर फिर भी सुई इस बात की ओर झुकती है कि मुंशी और प्रेमचंद दो अलग-अलग शख्सियतें थीं.

पिछले साल प्रेमचंद की जयंती पर राजेंद्र यादव के परिवार से जुड़ी अनुषा यादव ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा. इस पोस्ट में राजेंद्र जी की बेटी रचना को टैग करते हुए लिखा गया था कि दरअसल मुंशी और प्रेमचंद दो अलग-अलग व्यक्ति थे. आगे बढ़ने से पहले हम आपको याद दिला दें कि राजेंद्र यादव प्रेमचंद की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन करते रहे. उनके निधन के बाद रचना भी हंस से जुड़ी हुई हैं.

इन दावों के अनुसार कहानी ये है कि प्रेमचंद और मुंशी जी दो लोग मिलकर हंस का प्रकाशन किया करते थे. प्रेमचंद का ज्यादा दखल लिखने-पढ़ने और संपादकीय मामलों में रहता था. जबकि मुंशी जी दूसरी चीजों का खयाल रखते थे. दोनों संयुक्त रूप से हंस में एक संपादकीय लिखते थे जिसके नीचे मुंशी प्रेमचंद लिखा रहता था. चूंकि प्रेमचंद की ख्याति लेखन के क्षेत्र में ज्यादा थी और मुंशी जी का कहीं और कुछ लिखने का रिफरेंस उपलब्ध नहीं है तो लोग धीरे-धीरे मुंशी और प्रेमचंद को एक ही समझने लगे. इस तरह हिंदी साहित्य के सबसे बड़े नाम का उदय हुआ. अगर आपने गौर किया हो तो हंस अपने कार्यक्रमों के इनवाइट वगैरह में प्रेमचंद ही लिखता है मुंशी प्रेमचंद नहीं.

कुछ लोग ये भी बताते हैं कि मुंशी और प्रेमचंद में जिन मुंशी की बात होती है वो कनहैया लाल माणिक लाल मुंशी हैं. इन्हें हिंदी साहित्य में केएम मुंशी के नाम से जाना जाता है. केएम मुंशी आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी बने. जिस समय प्रेमचंद और केएम मुंशी मिलकर हंस का प्रकाशन कर रहे थे, मुंशी जी राजनीति का बड़ा नाम बन चुके थे. उनकी वरिष्ठता का सम्मान करते हुए ही संपादकीय में प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी लिखा जाता था. जिसे लोगों ने मुंशी प्रेमचंद समझ लिया.

यह दावा जिस जगह से आता है वहां इसे नकारने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है. मगर फिर भी एक दो सवाल हैं. प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. प्रेमचंद उनका लेखकीय नाम था. ऐसे में उनकी अपनी पत्नी शिवरानी देवी के साथ प्रसिद्ध तस्वीर में भी नीचे मुंशी प्रेमचंद लिखा हुआ है. इसी तस्वीर को आधार बनाकर हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ निबंध लिखा था. लोग इस निबंध के आधार पर प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति को खराब समझ लेते हैं, जबकि वास्तव में प्रेमचंद अच्छी खासी संपत्ति वाले व्यक्ति थे. इसके साथ ही पुराने जमाने में मुंशी शब्द सिर्फ क्लर्क के लिए इस्तेमाल नहीं होता था. लिखने-पढ़ने वालों के लिए भी ये सम्मान सूचक संबोधन था.

मुंशी प्रेमचंद या मुंशी और प्रेमचंद, इस बात पर हम शायद कभी भी खुद को 100 प्रतिशत पक्का नहीं कर पाएंगे. मगर ये वाकया बताता है कि जब हमें लगने लगता है कि हम किसी विषय के बारे में सब जानते हैं, प्रकृति कुछ नया सामने रख देती है.

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