इतिहास और वर्तमान गवाह हैं इसके कि वक्त और हालात से कोई नहीं जीता है. ये दोनों जब अपनी पर उतरते हैं तो, इंसान को ‘मात’ देकर ही दम लेते हैं. पेश ‘पड़ताल’ की यह सच्ची कहानी भी कुछ इसी तरह की सच्चाई की धुरी पर टिकी है. वो कहानी जिसमें, हालातों और वक्त ने इंसानी रिश्तों को ही तार-तार कर डाला. 8-9 महीने जिसके जिगर में पला-बढ़ा, बिगड़े बेटे ने उस मां को भी नहीं बख्शा!
मां-बेटे के पाक-दामन रिश्तों को कलंकित करने में भले ही पहला कदम बिगड़ैल बेटे ने उठाया हो, मगर उसके बाद दूसरा कदम जब मां ने उठाया तो, मां के उस कदम की बे-रहम धमक ने जमाने भर की ‘कोखों’ पर ही मानो कुठाराघात सा कर डाला होगा. बेटे ने कोख की इज्जत तार-तार करने में शर्म नहीं खाई. बदले की आग में झुलस रही मां ने ‘जिगर’ के कत्ल का ही सौदा कर डाला. इतना ही नहीं, बदले के लिए तिलमिलाई मां ने औलाद की लाश की कीमत तलक खुद ही अदा की. खुद के सुहाग की निशानी यानि अपना मंगलसूत्र बेचकर! आखिर क्या है पाक-रिश्तों के खूनी-कीचड़ में डूबने-उतराने की पूरी कहानी के पीछे का सच? जानने के लिए पढ़िए ‘पड़ताल’ की यह खास कड़ी.
पहाड़ी वाले जंगल में लावारिश लाश
मुंबई महानगर से सटे जनपद पालघर के उपनगर वसई इलाके में स्थित है जानकी पाड़ा की पहाड़ियां. 21 अगस्त 2017 को सुबह के वक्त पालघर पुलिस कंट्रोल रूम को इन्हीं पहाड़ियों में 20-22 साल के लड़के की लाश पड़ी होने की खबर मिली. जिस इलाके में लाश पड़ी थी वो थाना वालिव इलाके में आता है. पहाड़ियों में लड़के की खून सनी और गर्दन कटी लाश की खबर सुनते ही थाना प्रभारी संजय हजारे मय इंस्पेक्टर डी.वी. वांदेकर और सब-इंस्पेक्टर विनायक माने को लेकर मौका-ए-वारदात पर पहुंच गए. कई घंटे के प्रयास के बाद भी लाश की पहचान नहीं हो सकी. लिहाजा मौके पर मौजूद पालघर डिवीजन के पुलिस अधीक्षक मंजूनाथ सिंगे, एसडीपीओ दत्ता तोटेवाड़ ने लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवा दिया.
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पुलिस को लाश लगी ‘बबाल-ए-जान’!
कत्ल के मामले में लाश की पहचान होने पर पुलिस को ‘पड़ताल’ सिर-ए-अंजाम तक पहुंचाने में आसानी हो जाती है. जब तक लाश की पहचान न हो तब तक वो पुलिस को बबाल-ए-जान सी लगती है. कुछ यही आलम था उन दिनों पालघर पुलिस का. तमाम कोशिशों के बाद भी लाश की पहचान नहीं हो पा रही थी. इलाके के तमाम थानों का रिकॉर्ड चैक किया गया. किसी भी थाने में लाश से मिलते-जुलते हुलिए के किसी लड़के की कहीं कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं मिली. थाना और जिला पुलिस हर कीमत पर लाश की पहचान कराने में जुटी हुई थी. मगर उसके तमाम प्रयास खोखले साबित होते जा रहे थे.
आखिरकार काम आई पुलिसिया ‘मुखबिरी’
दुनिया भर में पुलिस कहीं की भी हो, उसकी सफलता उसके खुफिया नेटवर्क और फॉरेंसिंक साइंस से हासिल सबूतों पर ही निर्भर करती है. यही बात इस मामले में भी सही साबित हुई. 15 दिसंबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को बताया कि, मरने वाला लड़का रामचरण द्विवेदी (21-22) है. आनन-फानन में पुलिस को पता चल गया कि, जिस दिन रामचरण की लाश पहाड़ियों पर मिली. उसी दिन से वो लापता था.
पड़ताल में जुटी थाना वालिव पुलिस को पता चला कि, रामचरण आवारा किस्म का था. शराबखोरी, मादक पदार्थों के सेवन, खरीद-फरोख्त से लेकर अय्याशी तक, ऐसा कोई ऐब नहीं बचा था जिससे, रामचरण दूर रह सका हो. इलाके में उसके आतंक का आलम यह था कि, बलात्कार जैसी घटनाओं का शिकार तमाम महिलाओं और लड़कियों में भी थाने जाकर उसके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं थी.
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लाख टके का एक वो माकूल सवाल
पुलिस ने मृतक रामचरण के परिवार वालों से पूछताछ की. उन सबने बिगड़ैल रामचरण के बारे में तमाम सनसनीखेज जानकारियां पुलिस को दीं. सिवाय इस सवाल के जबाब के कि जब, रामचरण अचानक घर से गायब हुआ तो फिर, परिवार वालों ने उसके गायब होने की जानकारी पुलिस को क्यों नहीं दी? इसमें कोई शक नहीं कि, पुलिस का सवाल लाख टके का था. इस सवाल के जबाब की टाल-मटोल में परिवार वाले उलझते चले गए. लिहाजा पुलिस का शक परिवार वालों पर ही बढ़ता गया. पुलिस के सामने मुश्किल यह थी कि, जिसका 22 साल का लड़का कत्ल करके मार डाला गया हो! भला उस परिवार पर ‘शक’ या ‘शंका’ जाहिर कैसे कर दी जाए?
पुलिस के दिमाग में उपजे शक को पचा पाना आसान नहीं होता है. रामचरण हत्याकांड में घर वाले खुलकर कुछ नही बोलना चाह रहे थे. ऐसे में .पुलिस घरवालों को कुरेदना-टटोलना छोड़कर खुद का ‘मुखबिर-तंत्र’ अलर्ट कर दिया. पता चला कि, रामचरण को ठिकाने लगवाने में कोई घर-कुनवे का भी हो सकता है. इसके पीछे वजह यह थी कि, उसके आतंक से जितने बाहर के लोग पीड़ित थे, उससे ज्यादा पीड़ित घर वाले थे. लिहाजा पुलिस ने दबे पांव एक दिन रामचरण के पिता, मां, भाई की पत्नी को पूछताछ के बहाने थाने में बुला लिया. पहले सबसे अलग-अलग पूछताछ की गई. जब उन चारों से कुछ ‘छोर’ मिला तो पुलिस ने, लोहा गरम देखकर उन सबको एक साथ आमने-सामने बैठा दिया.
पुलिसिया अक्लमंदी का हैरतंगेज सच
रामचरण की मां, पिता, भाभी का जब पुलिस से आमना-सामना हुआ, तो वे सब टूट गए. उन सबने जो कुछ कबूला उस पर एक बार को तो पुलिस को ही विश्वास नहीं हुआ. सच को मगर नकारा भी आखिर कब तक जाता? यह अलग बात है कि, सच आसानी से गले न उतरने वाला, मगर हैरतंगेज था. मुंबई के उपनगर भायंदर (वेस्ट) में रहने वाले रामदास ने पुलिस को बताया कि, वो कई साल पहले गृह जनपद (जिला जौनपुर के मछली शहर, यूपी) से मुंबई आ गया था. भायंदर इलाके में पहुंचकर उसने चौकीदारी की नौकरी शुरु कर दी. कालांतर में उसके यहां दो बेटों का जन्म हुआ. बड़े बेटे की शादी कर दी. छोटा बेटा रामचरण आवारा हो गया.
घर को आग लगी घर के चिराग से
पालघर पुलिस के मुताबिक, ‘रामचरण पर जब सब ऐब हावी हो गए तो उसने सबसे पहले एक दिन घर के अंदर अपनी सगी भाभी को ही शिकार बनाया. घर के बिगड़ैल बेटे द्वारा घर की बहू के साथ बलात्कार की घटना को घरवालों ने इज्जत की बात सोचकर दबा दिया. इसके बाद तो मानो रामचरण औरतों की इज्जत का ही प्यासा हो गया. जब घरवालों ने कुछ नहीं किया तो रामचरण ने गली-मुहल्ले में लड़कियों-औरतों को शिकार बनाना शुरु कर दिया.
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उसके आतंक का आलम यह था कि, कोई मां-बहन-बेटी उसके खिलाफ कभी थाने-चौकी का रुख नहीं कर सकीं. इसे रामचरण भले ही अपने हित में मानता रहा हो. मगर उसका इसी तरह से बढ़ते रहना एक दिन उसके खुद के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो गया.
घर से शुरु तबाही, घर में ही ‘दफन’
सबसे पहले भाभी की इज्जत तार-तार की. फिर बाहर कदम बढ़ा दिया. अंतत: एक दिन वो भी आ पहुंचा जब, मौका पाकर वहशी रामचरण ने अपनी उस कोख को भी मैला करने में शर्म नहीं खाई, जिस कोख में पलकर वो ‘कुकर्म’ करने के लिए 22 साल का हुआ. लिहाजा एक दिन जब मां को ही रामचरण ने वासना का शिकार बना डाला. तो घर वालों के सब्र का बांध टूट गया. फिर जो हुआ वह सब रामचरण के ‘कुकर्मों’ से भी कहीं ज्यादा भारी साबित हुआ. मतलब एक दिन रामचरण की बेबस और लाचार मां-बाप ने उससे पीछा छुड़ाने का खतरनाक प्लान बना डाला.
मां ने चुकाई ‘लाल’ के कत्ल की कीमत!
जिस घर में रामचरण ने जब मां-भाभी की इज्जत ही तार-तार कर डाली तो फिर भला बाकी जमाने में और क्या बचा था? इस पर भी अगर जन्म देने वाली मां ही जब जिगर के टुकड़े को डसने पर उतर आये तो फिर उसे भला जमाने में बचाने वाला भी कौन होता? लिहाजा खतरनाक प्लान के मुताबिक, रामचरण को ठिकाने लगाने का ठेका मां ने दिया भाड़े के कातिल राकेश यादव और केशव मिस्त्री को. बेटे के कत्ल का सौदा तय हुआ एक लाख में. मां के सामने मुश्किल खड़ी हुई कि, उसके पास 50 हजार रुपए ही थे. जब कोई रास्ता नहीं निकलता दिखा तो, माँ ने तय किया कि वो, अपना मंगलसूत्र बेचकर भाड़े के हत्यारों को उनका पूरा मेहनताना (एक लाख रुपए) अदा करेगी. कत्ल के बाद वैसा ही उसने किया भी.
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जब आखिरी सफर पर निकला ‘आदमखोर’
सौदा तय होने के अगले ही दिन यानि 20 अगस्त 2017 को शराब पार्टी के बहाने से राकेश यादव और केशव मिस्त्री (भाड़े के कातिल) रामचरण को अपने साथ टैंपू से जानकीपाड़ा की पहाड़ियों पर ले गए. वहां उन दोनों ने रामचरण की गर्दन छुरे से चाक कर दी. भाड़े के हत्यारों ने रामचरण के बदन पर छुरों से कई और भी गहरे घाव किए. रामचरण मर चुका है, इसकी पुष्टि हो जाने पर दोनों मौके से भाग गए. बाद में उन दोनों को उनके घर (यूपी) से मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया. कहानी लिखे जाने तक पांचों हत्या आरोपी (मृतक रामचरण का पिता, मां, भाभी, भाड़े के हत्यारे केशव मिस्त्री और राकेश यादव) सजा के इंतजार में जेल में बंद हैं.
(लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं....कहानी में हत्यारोपी महिला मुलजिमान यानि मृतक की मां और भाभी का नाम गोपनीयता बनाये रखने के दृष्टिगत उजागर नहीं किया गया है. साथ ही केस अदालत में विचाराधीन है.
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