कभी आतंकी रह चुका कश्मीर का एक नागरिक अल्ताफ मीर अपने गानों की वजह से इन दिनों यू-ट्यूब पर छाया हुआ है. दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के रहने वाले अल्ताफ मीर 90 के दशक में कुछ लोगों के बहकावे में आकर आतंक के रास्ते पर भटक गए थे. पाकिस्तान बॉर्डर पार कर मीर ने एक आतंकी संगठन ज्वॉइन कर लिया था. लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने नफरत का रास्ता छोड़ दिया. अब वो अमन, प्रेम और देशभक्ति के गीत गाते हैं. यू-ट्यूब पर 'कोक स्टूडियो सेंसेशन' नाम से एक चैनल है. इस चैनल पर अल्ताफ मीर की आवाज में कश्मीरी लोकगीत सुने जा सकते हैं.
अल्ताफ मीर की मां जना बेगम बताती हैं, 'मीर मेरा बड़ा बेटा है. 28 साल पहले वह पाकिस्तान चला गया था. फिर उसके आतंकी बनने की खबर आई. तब लगा था जैसे सब कुछ खत्म हो गया हो. लेकिन, कुछ साल पहले बेटा लौट आया है. वह आतंक का रास्ता भी छोड़ चुका है. अब बस देशभक्ति के गीत गाता है. ये कैसे हुआ, मैं नहीं जानती. लेकिन, जो हुआ उसके लिए अल्लाह का शुक्रिया. ये उनकी मेहरबानी है.'
जना बेगम यह बताते हुए मोबाइल फोन की आवाज तेज कर देती हैं. फोन पर कश्मीरी लोकगीत बजता है, 'हा गुल्हो तुही मा सह वुचवन यार मायो'. गीत में आवाज जना बेगम के बेटे अल्ताफ मीर की है. मशहूर कश्मीरी कवि महजूर ने इस गीत को लिखा है.
इस वजह से वापस लौटे मीर
अपने घर मुज्जफराबाद से एक वीडियो इंटरव्यू में मीर बताते हैं, 'मैं तब हस्तकला कारीगर था. दिन में मैं बस कंडक्टरी करता और शाम को कपड़ों पर चेन स्टिचिंग किया करता था.' आतंकी बनने के वाकये को याद करते हुए मीर कहते हैं, 'उस दिन मेरे ज्यादातर दोस्तों ने एलओसी पार की. मैं भी बिना कुछ सोचे-समझे उनके साथ चला गया.' हालांकि, मीर आर्म्स ट्रेनिंग लेने के कुछ वक्त बाद घर लौट आए, क्योंकि, उनके दिल में नफरत की कड़वाहट नहीं, बल्कि संगीत की मिठास थी.
मीर ने बताया, 'वापस आकर मैंने सूफियाना महफिलों में परफॉर्म करना शुरू किया. तब मैं महफिलों में डफली भी बजाया करता था. मैंने पीर राशिम साहेब से संगीत की तालीम ली, जो श्रीनगर के रतपोरा ईदगाह के पास रहते थे.'
अल्ताफ मीर के मुताबिक, 'एक बार मेरे एक अज़ीज दोस्त ने बताया कि वह शादी करने जा रहा है. मैंने तय किया कि दोस्त की शादी में गाना गाऊंगा. उस शादी समारोह में हजारों की तादात में कश्मीरी आए थे. जिनके सामने मुझे गाने का मौका मिला.'
फिर शुरू हुआ संगीत का सफर
इस शादी में शरीक हुआ एक मेहमान रेडियो मुजफ्फराबाद का कर्मचारी था. उसने अल्ताफ मीर की आवाज सुनी और स्टेशन के डायरेक्टर से मिलने का सुझाव दिया. मीर बताते हैं, 'जब मैं रेडियो में डायरेक्टर से मिलने गया, तो उन्होंने मेरा वॉयस टेस्ट लिया. कुछ मिनट सुनने के बाद उन्होंने मुझे पांच असाइनमेंट दे दिए.'
इस तरह मीर के संगीत के सफर की शुरुआत हुई, जो अब उनकी आजीविका का साधन बन चुका है. मीर बताते हैं, 'मुझे हर हफ्ते रेडियो पर पांच शो करने होते हैं. जिसमें मैं कश्मीरी गाने गाता हूं. अब महफिलों में गाने के ऑफर भी मिल रहे हैं. जब 2004 में मुजफ्फराबाद में पहला टीवी चैनल लॉन्च हुआ, तब मुझे इसकी ओपेनिंग सेरेमनी में परफॉर्म के लिए बुलाया गया था.'
ऐसे शुरू हुआ कोक स्टूडियो का सफर
अल्ताफ मीर बताते हैं, 'कोक स्टूडियो को नए टैलेंट की तलाश थी. तभी एक महिला ने उनका नाम सुझाया. इस साल अप्रैल में कोक स्टूडियो के प्रोड्यूसर्स ने अल्ताफ मीर से मुलाकात की और उनके टैलेंट से खासे प्रभावित हुए. फिर उन्हें साइन कर लिया गया. अब मीर कोक स्टू़डियो के साथ काम कर रहे हैं.
बता दें कि क्लास 6 के बाद स्कूल छोड़ चुके अल्ताफ मीर अच्छी तरह से कश्मीरी बोल और पढ़ सकते हैं. कश्मीरी भाषा के करीब 2 हजार से ज्यादा गज़लें और कविताएं उन्हें मुंह जुबानी याद है.
(न्यूज18 केलिए आकाश हसन की रिपोर्ट, लेखक कश्मीर में स्वतंत्र पत्रकार हैं )
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