साहित्यकार मनु शर्मा की कर्मस्थली काशी रही, उम्र के तीसरे पहर में उन्होंने कृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन को देखा... पर परमावतार श्रीकृष्ण के अंर्तद्वंद को सहज महसूस किया.. उसी अनुभूति का ही प्रभाव था कि मनु शर्मा ने अपनी कलम से अवतारी कृष्ण को पौराणिक आभा मंडल से बाहर निकाल कर खुद उनका व्यक्तित्व बनाया और अपनी कथा के साथ पाठकों के बगल में ला बिठाया.
उन्होंने सिर्फ कृष्ण के अंतर्द्वंद्व को ही नहीं महसूस किया, उन्होने महाभारत के पात्र कर्ण की वेदना भी महसूस की और द्रौपदी की तार-तार होती पीड़ा भी. उन्होंने गांधारी के अंतर्मन से भी खुद को एकाकार किया. तो द्रोणाचार्य के व्यक्तित्व में भी परकाया प्रवेश किया. महाकाव्य महाभारत का ऐसा कोई जीवंत पात्र नहीं जिसे मनु जी ने अपनी लेखनी से उसके हिस्से का भरपूर आकाश न दिया हो.
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महाभारत मनु शर्मा के चिंतन, मनन और सृजनात्मकता का अक्षय स्रोत था. खुद मनु शर्मा भी अपने जीवन काल में स्वीकारते रहे कि 'भक्ति भावना से कृष्ण कथा का पाठ नहीं किया, ना ही उपन्यास लेखन के लिए मैंने कृष्ण का चुनाव किया, बल्कि महाभारत पढ़ते समय कृष्ण ने ही बरबस मुझे खींच लिया. वास्तव में कृष्ण का चरित्र इतना व्यापक, इतना विस्तृत, विविध और बहुआयामी है कि जिंदगी का कोई भी रंग किसी ना किसी रूप में अपनी छाया देख सकती है. कृष्ण के चरित्र ने मुझे जिस तरह खींचा उसी रूप में चरित्र को आगे बढ़ने दिया.'
उनके कथा लेखन का उद्देश्य भी पाठक का मनोरंजन करने से अधिक उनका आत्मिक संवर्धन करना था. भाषा और शैली ऐसा अनूठी कि अभिव्यक्ति का धरातल और पाठक के अनुभूति का धरातल सहज गलबहियां करने लगते हैं. शब्दों का कोई मायाजाल नहीं, नायक खुद अपनी कहानी पाठक को सुनाता है और ऐसा कथा सौंदर्य जो सीधे दिल तक उतर जाता है. मनु शर्मा सिर्फ महाभारत के पात्रों तक ही सीमित नहीं रहे. राणा सांगा, शिवाजी और बप्पा रावल जैसे महानायकों को भी एक नई पहचान दी. अपनी कथा-कहानियों में गांधी को भी साथ लेकर लौटे. रचनाकर्म के 18 उपन्यासों 150 से अधिक कहानियों व 7000 कविताओं के जरिए उन्होंने अपने रचना संसार को विशाल फलक दिया.
मनु जी की जीवन और साहित्यिक यात्रा बहुत सरल नहीं रही. उनके सामने सफलता के निश्चित सूत्रों का कोई सपाट रास्ता न था फिर भी सिर्फ स्वाध्याय के दम पर उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. प्रख्यात कवि और गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ ऊर्फ बेढब बनारसी के आशीर्वाद से वह दिनोंदिन साहित्यिक फलक पर छाते गए. मनु जी को पाठकों की ऐसी स्नेह और श्रद्धा मिली जिसके लिए बड़े बड़े रचनाकार तरसकर रह जाते हैं.
भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ी कृति कृष्ण की आत्मकथा लिखने की उपलब्धि मनु शर्मा के नाम ही है. आठ खंडों और तीन हजार पृष्ठों वाली इस आत्मकथा ने हनुमान प्रसाद को साहित्य जगत में नाम, मान और स्थान दिया. उनकी कविताएं भी अपने समय का दस्तावेज हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने सच ही कहा था मनु शर्मा कथा लेखन परंपरा के श्रीकृष्ण हैं.
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