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Makar Sankranti 2019: आखिर क्यों खाते हैं इस दिन 'खिचड़ी', जान लें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और काली दाल को शनि का, वहीं, हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं.

Updated On: Jan 12, 2019 06:29 PM IST

Purnima Acharya

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Makar Sankranti 2019: आखिर क्यों खाते हैं इस दिन 'खिचड़ी', जान लें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है. यही वजह है कि इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस मौके पर चावल, काली दाल, नमक, हल्दी, मटर और सब्जियां खासतौर पर फूलगोभी डालकर खिचड़ी बनाई जाती है. दरअसल चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और काली दाल को शनि का. वहीं, हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं.

कहा जाता है कि खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है. इस दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिती मजबूत होती है. मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे. मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे.

रोज योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का हल निकालते हुए दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी थी. यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा.

झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए. खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है. कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.

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