शेखर कपूर की बहुचर्चित फिल्मों में से एक है- मासूम. इस फिल्म ने इंडस्ट्री में उन्हें एक अलग और गंभीर पहचान दिलाई. इसी फिल्म से उन्होंने अपने डायरेक्शन करियर की शुरूआत की थी. इस फिल्म का एक गाना था- दो नैना और इक कहानी, थोड़ा सा बादल थोड़ा सा पानी. जो बहुत हिट हुआ. गाने के बोल गुलजार साहब के थे और संगीत था आरडी बर्मन का. इस गाने के लिए गायिका आरती मुखर्जी को सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर अवॉर्ड दोनों मिला था.
आरती मुखर्जी की फिल्मी गायकी का सफर एक म्यूजिकल कॉन्टेस्ट के जरिए शुरू हुआ था. उसी म्यूजिकल कॉन्टेस्ट में एक और गायक जीता था. हम आज कहानी आपको उसी गायक की सुनाने जा रहे हैं. ये फिल्म इंडस्ट्री और मायानगरी में किस्मत का ही खेल है कि बाद में आरती मुखर्जी की गायकी का सफर हिंदी फिल्मों में कम ही चला लेकिन उनके साथ जीतने वाले उस पुरूष गायक ने खूब नाम किया.
वो पुरूष गायक थे-महेंद्र कपूर. जिनका आज जन्मदिन है. महेंद्र कपूर ने अपने प्लेबैक सिंगिग करियर में तमाम हिट गाने गाए, बेशुमार प्यार हासिल किया लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बनी देशभक्ति के वो गीत जिन्हें हम आज भी सुनते और सराहते हैं. पचास के दशक की बात है. अमृतसर में पैदा हुआ एक लड़का मायानगरी मुंबई पहुंच चुका था. उसका ख्वाब था फिल्मों में गाने गाना. और उसके आदर्श थे, मोहम्मद रफी.
मुंबई पहुंचने के बाद अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए इस लड़के ने बड़ी मेहनत भी की. कई गुरुओं के यहां शार्गिद बने. दिन रात संगीत साधना की. इस मेहनत का फल मिला एक म्यूजिकल कॉन्टेस्ट से. हुआ यूं कि मर्फी रेडियो वालों ने नए कलाकारों की खोज में एक प्रतियोगिता आयोजित की थी. इसी कॉन्टेस्ट में महेंद्र कपूर ने जीत हासिल की थी.
नौशाद साहब ने अपनी फिल्मों में महेंद्र कपूर को दिया था मौका
जिसके बाद उन्हें सी. रामचंद्र के म्यूजिक डायरेक्शन में फिल्म नवरंग में गाने का मौका मिला. वो गाना भी जबरदस्त हिट हुआ. जिसके बोल थे- आधा है चंद्रमा रात आधी. इसके बाद महेंद्र कपूर को नौशाद साहब ने अपनी फिल्मों में मौका दिया. कहते हैं कि जब नौशाद साहब ने महेंद्र कपूर से पूछा कि आपकी प्रेरणा कौन हैं तो उन्होंने तुरंत कहा- मोहम्मद रफी.
मोहम्मद रफी और नौशाद साहब के रिश्ते बहुत करीबी थे. इसलिए उन्होंने महेंद्र कपूर को रफी साहब से मिलवा दिया. रफी साहब और महेंद्र कपूर की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था लेकिन रफी साहब ने महेंद्र कपूर को फिल्मी संगीत की बारीकियां भी बताईं.
इससे पहले महेंद्र कपूर ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित हुस्नलाल, पंडित जगन्नाथ, उस्ताद नियाज अहमद खां, उस्ताद अब्दुल रहमान खां और पंडित तुलसीदास शर्मा से ली ही थी. लिहाजा वो अपनी जगह मजबूत करते चले गए. मेरे देश की धरती सोना उगले, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं..., मनोज कुमार के साथ देश भक्ति के गीत जोड़ें, तो जो आवाज फिज़ां में गूंजती है, वो महेंद्र कपूर की है.
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों हो या नीले गगन के तले... महेंद्र कपूर की आवाज ने हर गाने को एक पहचान बख्शी. अपने करियर में बी.आर. चोपड़ा और मनोज कुमार के वो पसंदीदा गायक रहे. मनोज कुमार महेंद्र कपूर को अपने लिए लकी मानते थे. इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है.
बीआर चोपड़ा के सीरियल महाभारत में महेंद्र कपूर ने दी थी आवाज
हुआ यूं कि 1968 में एक फिल्म आई-आदमी. इस फिल्म में संगीत नौशाद का था. इस फिल्म का एक गाना नौशाद साहब ने मोहम्मद रफी और तलत महमूद से गवाया था. जिसके बोल थे- कैसी हसीन आज बहारों की रात है, इक चांद आसमा में है एक मेरे साथ है. इसके बाद गाने की लाइन थी- ओ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की, किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है.
ये लाइन मनोज कुमार पर फिल्माई जानी थी. मनोज कुमार को जब पता चला कि फिल्म में गाने का ये हिस्सा जो उन पर फिल्माया जाने वाला है वो तलत महमूद ने गाया है तो थोड़ा परेशान हुए. बाद में उन्होंने नौशाद साहब से इच्छा जताई कि ये गाना मोहम्मद रफी के साथ महेंद्र कपूर से गवाया जाए.
नौशाद ने मनोज कुमार की इस गुजारिश को स्वीकार कर लिया. रफी साहब की आवाज वाला हिस्सा दिलीप कुमार पर फिल्माया गया और महेंद्र कपूर की आवाज वाला हिस्सा मनोज कुमार पर. जिसे फिल्मी संगीत के कद्रदानों ने काफी पसंद भी किया. ये गाना महेंद्र कपूर के दिल के भी काफी करीब था क्योंकि इसमें वो अपने गुरू समान मोहम्मद रफी के साथ गायकी कर रहे थे.
ये महेंद्र कपूर की गायकी की विविधता ही थी कि बीआर चोपड़ा के सीरियल महाभारत में भी उनकी आवाज थी. महेंद्र कपूर ने गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी और मराठी में भी गाने गाए. उन्हें पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला– चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनो के लिए. उपकार फिल्म के मेरे देश की धरती के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला.
उन्होंने खान साहिब अब्दुल रहमान खां के लिए कुछ ठुमरी गाईं. गालिब की गजलों के लिए भी उन्हें याद किया जाता है. फिल्म इंडस्ट्री के उस दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के लिए महेंद्र कपूर ने प्लेबैक सिंगिग की. 1972 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया.
27 सितंबर 2008 को दिल का दौरा पड़ने से महेंद्र कपूर का निधन हो गया. महेंद्र कपूर को बेहद संवेदनशील और विनम्र इंसान के तौर पर याद किया जाता है. जो विनम्रता उनके चेहरे से ही झलकती थी. उन्हें याद किया जाता है आवाज की रेंज और तानों के लिए. वो रेंज शायद ही किसी प्लेबैक सिंगर में दिखाई दी है.
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