भगवान शिव का त्योहार है शिवरात्रि. शिव को औघड़ कहा गया है, आशुतोष तुम अवढर दानी. शिव अपने हर रूप में अद्भुत हैं. सामंजस्य का दूसरा नाम शंकर को कहा जा सकता है. उनके गले में सांप है, उनके एक लड़के का वाहन चूहा है और दूसरे का मोर. इन तीनों जानवरों का आपस में शिकारी और शिकार वाला मामला बनता है. इसी तरह उनकी पत्नी शेर की सवारी करती हैं जबकि खुद भोले नाथ नंदी बैल पर सवार रहते हैं. इन दोनों सवारियों के बीच भी कैसे रिश्ते हो सकते हैं सोच लीजिए.
शिव कला के साधकों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. नटराज की मूर्ति आपको हर डांस अकादमी में मिल जाएगी. इसी तरह उनके क्रोध में भी तांडव की लचक और लय होती है. अपने क्रोध के लिए मशहूर भगवान भोलेनाथ पत्नी के क्रोध को शांत करने के लिए उनके पैरों के नीचे आने से भी नहीं हिचकिचाते. इसके साथ ही पत्नी के अपमान पर क्रोधित और वियोग में दुखी होकर सन्यासी हो जाते हैं.
हिंदी सिनेमा में भगवान शिव को कई फिल्मों में प्रकट किया गया है. 70 के दशक में भगवान राम या कृष्ण की मूर्ति से दुखी हीरोइन के सामने फूल गिरता था. वहीं शिवजी का मंदिर हीरो के साथ बात करने के लिए होता था. अमिताभ बच्चन दीवार में ‘आज खुश तो बहुत होगे तुम’ सिर्फ शंकर भगवान के मंदिर में ही बोल सकते थे. इसी तरह से शोले में भोलेनाथ की मूर्ति के पीछे खड़े धर्मेंद्र को कौन भूल सकता है. वैसे तो सत्यम् शिवम् सुंदरम् में शिव मंदिर में जल चढ़ाती जीनत अमान नहीं भूली जा सकती हैं. जिनके भजन में ज्यादातर लोगों को शिव जी से ज्यादा जीनत याद आती हैं. इसी तरह से पीके का सीन जिस पर विवाद हुआ भी एक मिसाल है. दूसरी तरफ शिवाय जैसी फिल्में भी हैं जो शिवाय को इकाई से जबरदस्ती मिलाकर भोलेनाथ से खुद को जोड़ती हैं.
शंकर जी और सिनेमा का कनेक्शन तो बहुत लंबा है. नागिन, नगीना जैसी तमाम फिल्मों में इच्छाधारी नाग नागिन के आसपास एक शिवमंदिर होना अनिवार्य बात है. इसी तरह से भांग का जिक्र भी शिव के साथ आता है. जैसे ‘जय-जय शिव शंकर कांटा लागे न कंकंड़’ वो सब छोड़ते हैं. शास्त्रीय संगीत में ऐसा बहुत कुछ है जिसके बारे में कहा जाता है कि वो महादेव का प्रिय है. तो बात करते हैं शिव के प्रिय संगीत की.
राग भैरव
गाने वालों के लिए शिव भैरव हैं और बजाने वालों के लिए रुद्र वीणा के रुद्र. ‘हम दिल दे चुके सनम’ में आपने अलबेला साजन आयो री बंदिश सुनी होगी. इसे राग अहीर भैरव में गाया गया है. भैरव सुबह का राग है. कहा जाता है कि कोमल सुरों वाले भैरव को गाने के बाद कोई दूसरा राग गाना बहुत कठिन होता है. क्योंकि भैरव दिमाग पर चढ़ जाने वाला राग है.
भैरव-प्रिय भैरवी
महादेव की बात हो और काशी का ज़िक्र न आए ऐसा नहीं हो सकता. काशी और शिव के साथ तीसरा नाम बिसमिल्ला खान का जुड़ता है. भैरवी एक चंचल राग है. शाम को सुने जाने वाले भैरवी में उस्ताद बिसमिल्ला खां की शहनाई फूंक भरती थी तो बाबा विश्वनाथ की नगरी में सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
भोले नाथ की होली
महाशिवरात्रि होली से ठीक पहले पड़ने वाला त्योहार है. इस समय फसल कटती है. ऋतु बसंती होती है. फागुन का नशा छाता है. ऐसे में चैती और होली गाई जाती है. होली में भी भोलेनाथ की होली बहुत खास है. शमशान की होली भस्म से खेली जाती है.
शिव तांडव
अपनी धुन के चलते शिव तांडव फ्यूजन म्यूज़िक की भी पसंद है और ध्रुपद गाने वालों की भी. कहते हैं इसे रावण ने गाया था. आजकल आपको ये शिव को शिवा कहने वालों के फोन में भी रिंगटोन के तौर पर सुन सकते हैं.
वैसे शिव के प्रिय इन रागों के अलावा भी बहुत से अच्छे भजन हैं. इसके बाद भी लोग शंकर जी के नाम पर तमाम फिल्मी गानों को तोड़-मरोड़कर भजन बनाने का फूहड़ प्रयास करते रहते हैं. और तो और ऐसे-ऐसे ‘भजन’ बना लेते हैं कि बस मन से एक ही आवाज निकलती है, हे! भोलेनाथ....
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