30 सितंबर 2001 को एक ऐसी घटना घटी जो शायद कांग्रेस पार्टी को आज भी सालती होगी. पार्टी के वरिष्ठ और सबसे तेज तर्रार नेताओं में शुमार किए जाने वाले माधव राव सिंधिया का निधन हवाई दुर्घटना में हो गया था. वो एक रैली में भाषण देने के लिए कानपुर जा रहे थे.
तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. करगिल युद्ध को बीते करीब एक-दो साल का समय गुजरा था. माधव राव सिंधिया विपक्ष के एक मजबूत चेहरे थे जिन पर उनकी पार्टी को भी बेहद भरोसा था. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.
ऐसा नहीं था कि माधव राव सिंधिया हमेशा से कांग्रेस के ही चेहरे थे. ग्वालियर स्टेट के आखिरी राजा जीवाजी राव सिंधिया और राजमाता विजया राजे सिंधिया के पुत्र माधव राव ने ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद पहली बार चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा था. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से माधव राव के परिवार के ऐतिहासिक रिश्ते थे. कहा जाता है कि संघ को फलने-फूलने में सिंधिया परिवार ने बहुत मदद की थी.
माधव राव सिंधिया की मां विजया राजे सिंधिया भी पहले कांग्रेस में ही थी. लेकिन 1969 में जब इंदिरा सरकार ने प्रिंसली स्टेट्स की सारी सुविधाएं छीन लीं तो गुस्से में आकर विजया राजे सिंधिया जनसंघ में आ गईं. उनके साथ ही विदेश से पढ़ाई कर वापस लौटे उनके बेटे माधव राव सिंधिया ने भी जनसंघ ज्वाइन कर लिया. 1971 के चुनाव में जब देश में चारों तरफ इंदिरा गांधी की लहर थी तब 26 साल की उम्र में गुना संसदीय सीट से पहली बार चुनाव जीत कर माधव राव सिंधिया संसद पहुंचे. इसके बाद भले ही उन्होंने पार्टी बदली हो लेकिन उनकी जीत का सिलसिला कभी थमा नहीं.
फिर जब अगला चुनाव 1977 में इमरजेंसी के बाद हुआ तब माधव राव सिंधिया गुना संसदीय सीट से दोबारा चुनाव जीते और इस बार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में. 1980 के चुनाव तक उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ हो चुका था. 1980 का चुनाव वो कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के रूप में फिर गुना से जीते. और फिर उसके बाद आया साल 1984 का चुनाव जिसमें माधव राव सिंधिया ने उस नेता को हराया जिसे भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर ग्वालियर से चुनाव लड़ रहे थे. माधव राव सिंधिया को कांग्रेस ने अंतिम क्षणों में अपना टिकट थमाकर मैदान में उतार दिया. उन्होंने बहुत बड़े अंतर से अटल बिहारी वाजपेयी को मात दी.
इसके बाद ही उन्हें पहली बार मंत्रिपद भी मिला. वो देश के रेल मंत्री बने. इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में भी वो कई मंत्री पदों पर रहे. केंद्र की राजनीति से लेकर राज्य की राजनीति तक उनका रसूख कायम रहा.
मां के साथ तनावपूर्ण संबंधों को लेकर होती थी चर्चा
जनसंघ से अलग होकर जब माधव राव सिंधिया का कांग्रेस में शामिल हो गए तो इसे लेकर मां विजया राजे सिंधिया के साथ उनका वैचारिक तनाव हो गया. माधव राव सिंधिया की दोस्ती इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी से काफी घनिष्ट थी. उनके कांग्रेस में आने की प्रमुख वजह भी इसे ही बताया जाता है. कहा जाता है मां-बेटे के बीच ये तनाव जीवनभर चलता रहा. इसी वैचारिक तनाव और गुस्से का नतीजा था कि विजयाराजे सिंधिया ने अपनी वसीयत में बेटे को अपने ही घर में किरायेदार बनने पर मजबूर कर दिया.
एक प्लेन क्रैश से बचे तो दूसरे प्लेन क्रैश में गई जान
संजय गांधी और माधव राव सिंधिया मित्र थे. संजय को फ्लाइंग का शौक था. मई 1980 इंदिरा गांधी के करीबी रहे धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने संजय के लिए छोटा विमान विदेश से मंगाया. 20 जून 1980 को क्लब के इंस्ट्रक्टर ने विमान को उड़ाकर देखा. इसके बाद 21 जून को संजय ने पहली बार इस प्लेन का ट्रायल लिया.
माधवराव सिंधिया से संजय गांधी ने कहा कल उनको प्लेन से दिल्ली की सैर करना है. 23 जून की सुबह इस एयरक्राफ्ट से उड़ान भरना तय हुआ. लेकिन माधवराव नहीं पहुंच पाए. संजय ने इंतजार के बाद उड़ान भरी और थोड़ी ही देर बाद उनका प्लेन क्रैश हो गया. किस्मत ने उस घटना में माधव राव सिंधिया का साथ दिया था लेकिन तकरीबन इक्कीस साल बाद वो एक हवाई यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा बनी.
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