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महाभारत - द एपिक टेल : स्टेज पर उतरती है 30 साल पहले महाभारत सीरियल की भव्यता

ऐसे सीरियल को स्टेज पर लगभग तीन घंटे में लाना बेहद मुश्किल काम है, जिसका एक-एक दृश्य लोगों को याद हो...

Updated On: Dec 31, 2018 03:44 PM IST

Shailesh Chaturvedi Shailesh Chaturvedi

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महाभारत - द एपिक टेल : स्टेज पर उतरती है 30 साल पहले महाभारत सीरियल की भव्यता

महाभारत का युद्ध खत्म हो गया है. हर तरफ लाशें बिछी हुई हैं. सब कुछ उजड़ा है. इसी बीच धरती माता उठती है. धरती बताती है कि कैसे मानव उसकी सबसे अहम रचना थी... और कैसे इसी रचना ने उसे क्या लौटाया है. धरती के रूप में मेघना मलिक की ये शुरुआत ही वो माहौल बनाती है, जो दर्शकों को कुर्सी पर बंधे रहने के लिए मजबूर कर दे. मेघना मलिक को टीवी दर्शक अम्माजी के तौर पर जानते हैं. लेकिन महाभारत – द एपिक टेल देखने थिएटर आए लोग धरती की वेदना मेघना के शब्दों और उनके अभिनय में महसूस करते हैं.

30 साल पहले एक महाभारत सीरियल आया था. आज भी उसके पात्रों से ही महाभारत के पात्रों की पहचान होती है. उस सीरियल में सूत्रधार का काम हरीश भिमानी ने समय के तौर पर किया था. 30 साल बाद फेलिसिटी थिएटर और पुनीत इस्सर ने समय को धरती में तब्दील किया है. समय अपने तटस्थ भाव के लिए जाना जाता था. धरती अपने भावों को प्रकट करने और अपनी वेदना को सामने लाने के तौर पर दिखाई देती है. यह बदलाव है, जो टीवी से थिएटर के बीच हुआ है.

_Puneet Issar Felicity Theatre will show Mahabharat in delhi

बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा के महाभारत सीरियल को छोटे पर्दे से थिएटर तक लाने का काम फेलिसिटी के राहुल भूचर और पुनीत इस्सर ने किया है. पुनीत इस्सर ही इसके डायरेक्टर हैं. सीरियल में वो दुर्योधन थे. यहां भी दुर्योधन हैं. उन्हें स्टेज पर देखकर ऐसा लगता नहीं कि 30 साल में दुर्योधन की आग कहीं भी बुझी है. बल्कि वो अपने तर्कों को और धारदार करके थिएटर तक आए हैं.

दुर्योधन और कर्ण की कहानी है महाभारत - द एपिक टेल

स्टेज के लिए तैयार की गई महाभारत – द एपिक टेल दरअसल, दुर्योधन और कर्ण की ही कहानी है. पुनीत इस्सर की मानें तो यह बीआर और रवि चोपड़ा को एक तरह की श्रद्धांजलि है. उस दौर की बात करते हुए पुनीत इस्सर की आवाज भर्राती है. उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, ‘मुझे उस महाभारत ने बहुत कुछ दिया. मैं कुछ लौटाना चाहता हूं.’ वो दौर था, जब कुली की दुर्घटना के बाद पुनीत इस्सर को काम नहीं मिल रहा था. महाभारत एक तरह से उनकी वापसी थी. इस्सर के अनुसार, ‘चोपड़ा साहब ने कहा कि ये लंबा चौड़ा आदमी है, भीम के लिए इसका ऑडिशन ले लो. मैंने जवाब दिया कि मैं तो दुर्योधन का रोल करना चाहता हूं.’ इस बार वो खुद तो दुर्योधन हैं ही. युवा दुर्योधन के लिए उनके पुत्र सिद्धांत इस्सर भी इस प्ले का हिस्सा हैं.

mahabharat 2

दरअसल, महाभारत के दो सबसे ‘चैलेंजिंग रोल’ दुर्योधन और कर्ण के ही हैं. दुर्योधन विलेन है. वो सुयोधन से दुर्योधन इसीलिए हो जाता है. उसमें पिता के साथ हुए व्यवहार को लेकर शिकायत है, जो कड़वाहट से होते हुए नासूर जैसी बन जाती है. लेकिन उसके भीतर एक दोस्त है, जो कर्ण को अपना बनाता है. वो भी बिना किसी शर्त के. उस दौर में जब जाति की वजह से जीवन का काफी कुछ तय होता है, उस दौर में दुर्योधन उनसे मित्रता करते हैं. बगैर उनके बारे मे ज्यादा कुछ जाने उन्हें अंग देश का राजा बना देते हैं.

कर्ण का किरदार तो खैर हर रंग से भरा है ही. वो अद्भुत दोस्त है, बेटा है, शिष्य है, दानी है. जीवन के उसूल हैं. लेकिन मित्रता पर वो किसी भी बात को हावी नहीं होने देता. महाभारत – द एपिक टेल देखने की इच्छा दरअसल, इसलिए भी थी कि इन दो पावरफुल कैरेक्टर्स को किस तरह स्टेज पर उतारा गया है, वो देखना था. हालांकि ज्यादातर दृश्य हूबहू वैसे ही हैं, जैसे बीआर चोपड़ा की महाभारत में थे. फिर भी, मृत्यु के बाद दुर्योधन की आत्मा का दुनिया और भगवान कृष्ण से सवाल करना रोचक है. कर्ण और दुर्योधन के इस तरह के दृश्य बांधते हैं. दो हिस्सों में बंटे इस शो का दूसरा हिस्सा यकीनन ज्यादा पावरफुल है.

गुरु द्रोण की भूमिका में सुरेंद्र पाल और मामा शकुनि बने गुफी पेंटल के तौर पर 30 साल पहले की महाभारत को दोहराने की कोशिश की गई है. ऐसा लगता है कि पांडवों के रोल पर उतना ध्यान नहीं दिया गया. इसकी वजह भी है. यह महाभारत दुर्योधन और कर्ण की है. इसीलिए दुर्योधन के रोल में पुनीत इस्सर और कर्ण के रोल में राहुल भूचर से सबसे पावरफुल परफॉर्मेंस की उम्मीद होनी जरूरी है. उनके साथ, धरती के रोल में मेघना मलिक और कृष्ण के रोल में यशोधन राणा की परफॉर्मेंस पावरफुल है भी. खासतौर पर कृष्ण के रोल में यशोधन राणा, जो छोटे पर्दे पर पहले आ चुके हैं. उन्हें देखकर नितीश भारद्वाज की याद आती है, जिन्होंने बीआर चोपड़ा की महाभारत में कृष्ण का रोल किया था. द्रोपदी के रोल में उर्वशी ढोलकिया चीर हरण वाले दृश्य में शानदार हैं.

mahabharat 1

प्ले का संगीत, गीत, ग्राफिक्स, ड्रेस और मेक-अप पर बहुत मेहनत की गई है. निर्देशन के अलावा लिखा भी पुनीत इस्सर ने भी है. शायद इसीलिए कुछ दृश्यों में उन्होंने थोड़ी स्वतंत्रता ले ली है, जहां वो गैलरी के लिए कुछ डायलॉग बोलते हैं. लेकिन कुल मिलाकर उन्होंने भाषा लगभग वही रखी है, जो बीआर चोपड़ा की महाभारत में है. बीच-बीच में जरूर कुछ उर्दू शब्द डाले गए हैं. कुल मिलाकर, ऐसे सीरियल को स्टेज पर लगभग तीन घंटे में लाना बेहद मुश्किल काम है, जिसका एक-एक दृश्य लोगों को याद हो. वहां आप बहुत ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करते. उम्मीद भी उसी भव्यता की होती है, जो जाहिर तौर पर स्टेज के लिए आसान नहीं है. लेकिन इस मुश्किल काम को भी पुनीत इस्सर और फेलिसिटी की टीम ने बहुत अच्छी तरह किया है.

राजधानी दिल्ली में नवंबर के बाद 29 और 30 दिसंबर को कमानी थिएटर में शो के तीन शो हुए. अगली बार जब ‘दुर्योधन और कर्ण की महाभारत’ दिल्ली या आपके शहर आए, तो उसे देखना चाहिए. उन्हें, जिनकी यादें सीरियल से जुड़ी हैं. जो उन यादों को दोबारा जीना चाहते हैं. उन्हें भी, जो थिएटर के शौकीन हैं. ...और उन्हें भी, जो ये देखना चाहते हैं कि सीरियल की भव्यता स्टेज पर उतरती है, तो कैसी लगती है. यह पूरी तरह कर्ण और दुर्योधन की कहानी जरूर है. लेकिन कुछ दृश्यों को छोड़कर उनका वही नजरिया सामने आता है, जैसा 30 साल पहले महाभारत सीरियल में नजर आया था.

(सभी तस्वीरें फेलिसिटी के फेसबुक पेज से साभार)

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