मुंबई को सपनों की नगरी या मायानगरी यूं ही नहीं कहते. इस शहर में आज शोहरत की बुलंदियों पर बैठी कई शख्सियतें ऐसी हैं जिनके लिए कभी दो वक्त की रोटी पाना मुश्किल था. जिनके जीवन में संघर्षों का पहाड़ था.
मुंबई में ही पैदा हुए मधुर भंडारकर का संघर्ष और कामयाबी भी किसी हिंदी फिल्म की पटकथा जैसा ही है. मधुर के पिता बिजली कॉन्ट्रैक्टर थे. मां घरेलू महिला. परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल अच्छी नहीं थी. पिता का काम कभी चलता था, कभी नहीं. लिहाजा पैसे कभी आते थे, कभी नहीं. मधुर बताते हैं कि उन्हें बचपन में अपने पिता की चाल से पता चल जाता था कि आज उन्हें खाना मिलेगा या नहीं. बुरे वक्त में रोटी में नमक और प्याज को ‘रोल’ करके खाना मधुर को याद है.
किस्मत में खाने तक का संघर्ष लिखा था तो पढ़ाई तो दूर की बात है. फीस ना भर पाने की वजह से मधुर को स्कूल छोड़ना पड़ा. पढ़ाई में यूं भी उनका मन ना के बराबर लगता था. लिहाजा फेल भी हो चुके थे. कई बार तो ऐसा होता था कि मधुर स्कूल की ड्रेस पहनकर और कंधे पर झोला टांगकर बाकी बच्चों की तरह ही अपने घर से बाहर निकलते थे. लोकल बस पकड़कर अंतिम स्टॉप तक जाते भी थे. वो 221 नंबर की बस थी. मधुर सुबह 8 बजे घर से निकलकर दोपहर 1 बजे तक दरिया के किनारे घूमते रहते थे. ऐसा इसलिए जिससे लोगों को ये ना पता चले कि वो स्कूल नहीं जाते हैं.
फिल्मों के लिए दीवानगी ने दिखाया रास्ता
ये संयोग ही है कि तमाम तंगहाली के बाद भी मधुर को बचपन से ही फिल्मों में काफी दिलचस्पी थी. उनके घर के आस-पास कई बार रोड पर ही ‘प्रोजेक्टर’ लगाकर पिक्चर दिखाई जाती थी. मधुर राजेश खन्ना के बहुत बड़े फैन थे. वो दिन भर राजेश खन्ना की तरह बेल्ट पहनकर, उनके जैसा कुर्ता पहनकर घूमते रहते थे. उनके अंदाज में बात करने की कोशिश भी करते थे. उन्हीं की तरह फिरकी लेना, काका के हर अंदाज के मधुर दीवाने थे.
बचपन का एक किस्सा मधुर मुस्कराते हुए बताते हैं, 'हम सभी किसी ना किसी स्टार को ‘फॉलो’ करते हैं, लेकिन मैं कुछ ज्यादा ही करता था. अमिताभ बच्चन साहब, देवानंद साहब का डायलॉग बोलता रहता था. यहां तक कि एक बार मैं नकली रिवॉल्वर भी ले आया था. बाएं हाथ में रिवॉल्वर पकड़कर अमित जी की तरह डॉयलॉग बोलना मेरी आदत बन गई थी. घर में पता चला था तो खूब डांट पड़ी थी.' वैसे ये पहली बार नहीं हुआ था. फिल्मों की वजह से मधुर भंडारकर को बचपन में कई बार डांट और मार पड़ी थी.
मार पिटाई से बचने और पिता जी मदद करने का एक ही तरीका था कि मधुर पैसे कमाएं. मधुर ने अपने लिए काम भी अपने मन का ही चुना. उन्होंने कम उम्र में ही वीडियो कैसेट ‘डिलीवरी’ का काम शुरू कर दिया. लोग चाहे फिल्म इंडस्ट्री के हों, बीयर बार डांसर हों, फिर चाहें वो कॉरपोरेट्स वाले हों. हर कोई उन दिनों वीडियो कैसेट्स मंगाता था. यही वजह थी कि मधुर का हर किसी के साथ संपर्क बनता चला गया. उनके पास पहले सिर्फ 3-4 कैसेट थे, लेकिन धीरे धीरे कैसेट की संख्या भी बढ़ती चली गई. साथ ही साथ बढ़ती गई सिनेमा के बारे में उनकी जानकारी.
फिल्मों के 'एनसाइक्लोपीडिया' थे मधुर
सिनेमा की उनकी जानकारी को आप इस तरह समझ सकते हैं कि छोटी उम्र में ही लोग उन्हें सिनेमा का ‘एनसाइक्लोपीडिया’ बुलाते थे. मधुर की एक और खास बात ये भी थी कि स्कूली पढ़ाई में भले ही उनका मन नहीं लगता था लेकिन उन्हें पढ़ने की आदत थी. चाहे वो न्यूज पेपर हो. चाहे कोई किताब हो. रीडर डाइजेस्ट हो, चंदामामा हो, अमर चित्र कथा हो. यही पढ़ाई है कि आप मधुर भंडारकर की फिल्मों को देखकर ये नहीं कह सकते हैं कि वो छठीं फेल हैं.
जब ये लगने लगा था कि मधुर का काम अच्छा चल निकला है तब तकदीर ने फिर करवट ली. हुआ यूं कि वीडियो कैसेट का व्यवसाय धीरे धीरे ठप्प होने लगा. वीडियो कैसेट ‘आउटडेटेड’ होने लगे. मधुर ने अपने दो-तीन दोस्तों के साथ मिलकर कपड़े का व्यवसाय शुरू किया. वो काम भी नहीं चला. हालात इतने खराब हो गए कि मधुर भंडारकर ने मुंबई की लालबत्तियों पर च्युइंग गम बेचने का काम भी किया.
यही वो समय था जब मधुर भंडारकर अपनी बहन के पास मस्कट चले गए. इस फैसले के पीछे घरवालों का दबाव था. मस्कट में मधुर ने एक सिगरेट फैक्टरी में काम किया. वहां उन्हें डिब्बों के आने-जाने का हिसाब रखने को कहा गया. उन्हें वो काम नहीं समझ आया. वहां से वो दुबई चले गए. दुबई में उन्होंने एक ‘बुटीक’ में काम किया. मगर किस्मत तो मधुर को कहीं और ले जाने वाली थी. लिहाजा मधुर वहां से वापस लौट आए. घर में बड़ा बवाल हुआ कि मस्कट और दुबई में जाने-आने का पैसा खर्च करके खाली हाथ लौट आए. मधुर ने तय कर लिया कि उन्हें फिल्मी दुनिया में ही जाना है. बावजूद इसके कि फिल्म इंडस्ट्री में दूर-दूर तक वो किसी को जानते नहीं थे.
असिस्टेंट बनकर शुरू किया काम, लेकिन....
90 के दशक की बात है. बहुत हाथ पैर मारने के बाद मधुर को ‘असिस्टेंटगिरी’ का काम मिला. उसमें कोई पैसा वैसा नहीं मिलता था, कोई पगार नहीं थी. लोकेशन पर आने जाने के खर्च के लिए सिर्फ 30 रुपए मिलते थे. मुंबई की फिल्म सिटी में शूटिंग होती थी, रात के तीन बजे शूट ‘पैकअप’ होता था. पैकअप के बाद मधुर और बाकी असिस्टेंट्स को गाड़ी तक नहीं मिलती थी. शूटिंग का सारा सामान लोड होने के बाद ट्रक पर लदकर मधुर मेन रोड तक आते थे. इन मुश्किल हालातों में बड़ा बदलाव लेकर आए रामगोपाल वर्मा. राम गोपाल वर्मा भी एक जमाने में मधुर की तरह ही वीडियो कैसेट का काम किया करते थे. उस वक्त रामगोपाल वर्मा ‘रात’ बना रहे थे. इसके बाद मधुर उनके साथ हैदराबाद चले गए. मधुर उन्हें असिस्ट करने लगे. शिवा और फिर रंगीला तक.
रंगीला वो फिल्म थी जिसके हिट होने के बाद मधुर को लगा कि अब वो भी फिल्म बना सकते हैं. पहला झटका तब लगा जब एक प्रोड्यूसर ने उनकी फिल्म के प्लॉट को सुनकर कहा कि अगर उसे फिल्म से मैसेज ही देना होगा तो वो एसएमएस करके देगा करोड़ों रुपए क्यों खर्च करेगा. मधुर ने हार नहीं मानी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से त्रिशक्ति नाम की एक फिल्म बनाई. फिल्म ने बड़ी मुश्किल से चंद घंटों के लिए स्क्रीन देखी. रामगोपाल वर्मा के असिस्टेंट के तौर पर मधुर ने जो इज्जत बटोरी थी वो इज्जत भी चली गई. लोगों ने उनके फोन उठाने बंद कर दिए. उन्हें अपशकुन मानकर उनसे कन्नी काटने लगे. वो वक्त भी आया जब मधुर लोकल ट्रेन में अखबार से अपना चेहरा ढककर सफर किया करते थे. मधुर के पास खाने तक के पैसे नहीं होते थे. जिंदगी एक बार फिर वहीं लेकर आई जहां से वो शुरू हुए थे.
शराबखाने से बदली जिंदगी
पिछली फिल्म की नाकामी से टूट चुके मधुर के एक दोस्त स्टॉक मार्केट में काम करते थे. वो मधुर की कभी कभार मदद भी किया करते थे. एक रोज वो मधुर को लेकर डांस बार गए. मधुर उस रात को याद करके कहते हैं कि वो उस वक्त बहुत ‘इम्बैरेस फील’ कर रहे थे. वहां लड़कियां शिफॉन की साड़ी पहनकर, घाघरा चोली पहनकर नाच रही थीं. मधुर ने अपने दोस्त से वहां से निकलने की बात कही. मधुर को इस बात का डर था कि कहीं किसी ने उन्हें पहचान लिया तो कहेगा कि फिल्म की नाकामी भुलाने के लिए वो शराबखाने आए हैं.
उस रात तो मधुर जल्दी आ गए लेकिन वो ‘विजुअल्स’ उनकी आंख में डूबते रहे. अगले दिन उन्होंने अपने दोस्त से खुद ही कहा कि डांस बार चलना है. दोस्त को लगा कि मधुर को कोई लड़की पसंद आ गई है. ऐसा करते-करते मधुर कई बार डांस बार गए. कुल मिलाकर मधुर करीब 60 डांस बार में गए. लोगों से मिले. कई बार वो मेकअप रूम में चले जाते थे, जब कोई उनसे पूछता था तो वो बताते थे कि वो एक लेखक हैं और किताब लिख रहे हैं. धीरे धीरे कई लड़कियों की कहानियों का भंडार आ गया और फिर वो फिल्म बनी जिसने मधुर भंडारकर की जिंदगी को बदल दिया. वो फिल्म थी चांदनी बार. इसके बाद मधुर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पेज थ्री, फैशन, कॉरपोरेट जैसी फिल्मों को लोगों ने बहुत सराहा. उन्हें नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया, पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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