अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला, इस सवाल का जवाब याद किए हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता होगा कि कल्पना के मौत की खबर आ गई. 1 फरवरी, 2003 वही वो दिन था जब सुबह के सभी अखबारों, बीबीसी रेडियो, टीवी पर लगातार कल्पना की चर्चा हो रही थी. कोलंबिया यान दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उसमें सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई. यही खबर सुबह से शाम, शाम से रात और अगले कई पहर तक चलते रही. दुर्घटना में मारे गए सभी सात नाम बार-बार टीवी के टिकर से गुजर रहे थे. रिक हसबैंड, विलियम मैककूल, माइकल एंडरसन, डेविड ब्राउन, लॉरेल क्लार्क और भारतीय मूल की पहली अमरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला.
कोलंबिया यान 16 दिनों की अंतरिक्ष यात्रा पर था और दुर्घटना के समय वह पृथ्वी की ओर लौट रहा था. दुर्भाग्यवश सबकुछ प्लानिंग के तहत नहीं हो सका और यान क्रैश कर गई. तब यहां भारत के हरियाणा राज्य के करनाल शहर (जहां कल्पना ने जन्म लिया था) के एक स्कूल में विशेष आयोजन रखा गया था. लेकिन जैसे ही कोलंबिया के क्षतिग्रस्त होने की ख़बर पहुंची जश्न का माहौल मातम में बदल गया.
अपनी यात्रा के दौरान कल्पना ने चंडीगढ़ के छात्रों के लिए एक संदेश भी भेजा था. संदेश में उन्होंने कहा था,'सपनों को सफलता में बदला जा सकता है.इसके लिए आवश्यक है कि आपके पास दूरदृष्टि, साहस और लगातार प्रयास करने की लगन हो. आप सभी को जीवन में ऊंची उड़ान के लिए शुभकामनाएं'.
छात्रों को ऊंची उड़ान भरने की शुभकामना देने वाली कल्पना फिर धरती पर वापस नहीं आ सकी. कल्पना की मौत के बाद उनके प्रशंसकों ने 'जब तक सूरज चाँद रहेगा कल्पना तेरा नाम रहेगा' के नारे लगाए. आगे चलकर अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक छोटे सौर पिंड का नाम कल्पना चावला रख दिया. ऐसे में कल्पना अंतरिक्ष से लेकर धरती तक अब भी हमारे बीच जीवित सी लगती हैं.
भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक- कल्पना चावला
कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था. उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योती था. 8वीं क्लास में ही कल्पना ने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की, लेकिन उनके पिता की मर्जी कुछ और ही थी. वह उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे. खैर, कल्पना मानी नहीं. अंतरिक्ष में जाने के अपने सपनों को साकार करने के लिए कल्पना साल 1982 में अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका रवाना हुई. कल्पना ने फ्रांस के जान पियर से शादी की जो एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे. फिर साल 1988 में वो नासा अनुसंधान के साथ जुड़ीं. जिसके बाद 1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए कल्पना चावला का चयन किया.
कल्पना की पहली सफल अंतरिक्ष यात्रा से दूसरी और आखिरी यात्रा तक
19 नवंबर साल 1997 को वह एस टी एस 87 कोलंबिया शटल से अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गईं. अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान उन्होंने यहं करीब 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की. इस सफल मिशन के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान साल 2003 में कोलंबिया शटल से भरी. यह उनकी दूसरी और आखिरी उड़ान थी. 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई. यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था. 1 फरवरी को धरती की तरफ लौटने के क्रम में ही यान क्षतिग्रस्त हो गया और कल्पना सहित 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई.
तय थी मौत
इस पूरे मिशन के प्रोग्राम मैनेजर ने आगे चलकर यह खुलासा किया कि यान सुरक्षित जमीन पर नहीं लौटेगी, यह पहले से ही तय था. फिर भी किसी ने इस बात की भनक बाहर, यहां तक की सातों अंतरिक्ष यात्रियों को नहीं लगने दी. नासा ने ऐस क्यों किया, यह गुत्थी आजतक नहीं सुलझी.
कल्पना हमेशा कहती थीं कि वो अंतरिक्ष के लिए ही बनी हैं. भारत जैसे देश में एक बेटी का यह कहना कि वो अंतरिक्ष के लिए बनी है, वो भी उस दौर में,बहुत बड़ी बात है. यहां भारत में रहने वाले मां-बाप को बेटियों को पढ़ाने का हौंसला देने के लिए अक्सर जिन नामों का सहारा लिया जाता है उसमें सबसे शीर्ष के स्थानों पर रही हैं, कल्पना चावला. चावला, जिसने ना जाने कितनी ही कल्पनाओं को उड़ने के लिए प्रेरित किया. जिसने ना जाने कितने ही मां-बाप को अपनी बेटी में एक कल्पना ढ़ूंढ़ने को मजबूर कर दिया. वो कल्पना आज भी टिमटिमाती है आसमान में कहीं. तुम मुद्दतो याद रहोगी कल्पना चावला! ना केवल हमारी किताबों या मैग्जीन में बल्कि हमारे सपनों में.
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