वियना में बसे नेताजी की पत्नी और बेटी की मदद करने में आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल ने समान रूप से रूचि दिखाई और मदद की. उससे पहले सुभाष चंद्र बोस के भाई ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था. ऐसा राजनीतिक मतभेदों के बावजूद हुआ.
आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 11 अगस्त, 1950 को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लिखा कि ‘आपको याद होगा कि करीब 2 साल पहले मैंने आपको सुभाष बाबू की पत्नी और बेटी के संबंध में लिखा था जो वियना में हैं. मैंने तब सुझाव दिया था कि उन्हें कुछ धनराशि भेजी जानी चाहिए. मुझे याद आता है कि आपने कुछ धन ‘शायद 1 हजार रुपए नाथा लाल के माध्यम से भेजे थे. मेरा इस संबंध में स्विटजरलैंड में भारत के राजदूत धीरू देसाई के साथ हाल ही में पत्र व्यवहार हुआ है. उनके परामर्श से हमने तय किया है कि उस महिला को कुछ गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए. यह रुपया 285 प्रति माह बनता है. हम 6 महीने का भत्ता 1715 रुपए वियाना में हमारे वाणिज्य दूत के माध्यम से भेजने का प्रबंध कर रहे हैं. वो हर माह उन्हें पैसा भुगतान कर सकते हैं. मैं नहीं जानता कि आपकी आजाद हिंद फौज निधि की क्या स्थिति है और यदि आपके पास कुछ धन बचा है, तो आप इस धनराशि से 6 महीने या एक साल का भुगतान कर सकते हैं. यदि ऐसा है तो क्या आप मुझे चेक भेज सकते हैं?
-भवदीय,जवाहर लाल नेहरू’
सरदार पटेल ने पत्र लिखकर कहा- परिवार के पैसे से उनके लिए कुछ करना संभव होगा
इसके जवाब में सरदार पटेल ने 12 अगस्त, 1950 को प्रधानमंत्री को लिखा कि ‘सुभाष बाबू की पत्नी और बेटी के बारे में आपका 11 अगस्त, 1950 का पत्र मिला. मैंने स्वयं धीरू को लिखा है कि मैं यहां उनके संबंधियों से संपर्क बनाए रखूंगा और देखूंगा कि उनका क्या कहना है. मैंने धीरू के पत्र की एक प्रति भेजते हुए अमिय बोस को लिखा है और पूछा है कि जैसी रिपोर्ट मिली है और इस मामले में ‘शरत बाबू की रूचि जान कर क्या परिवार उनके लिए कुछ करना चाहेगा? अमिय ने मुझे लिखा है कि वह सितंबर में यूरोप जाएंगे और सुभाष बाबू की पत्नी से संपर्क करेंगे, जिससे कुछ इंतजाम किया जा सके. मुझे आशा है कि इस दौरे के फलस्वरूप, परिवार के पैसे से उनके लिए कुछ करना संभव होगा. यदि नहीं तो हमें आजाद हिंद फौज निधि की ओर से कुछ करना होगा. इसलिए कुछ प्रबंध 6 महीने के लिए कर दिया जाए. अमिय के वापस आने के बाद हम कुछ स्थायी प्रबंध करने के विषय में विचार करेंगे. मैं अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में 1715 रुपए का चेक संलग्न कर रहा हूं.
- भवदीय, वल्लभ भाई’
21 जुलाई, 1948 को वल्लभ भाई पटेल ने प्रधानमंत्री को लिखा कि ‘आजाद हिंद फौज के बारे में आपका 15 जुलाई, 1948 का पत्र प्राप्त हुआ. मैं आपकी इच्छा के अनुसार 50 हजार रुपए की धनराशि जुलाई-सितंबर महीनों के खर्च के लिए और भेज रहा हूं. मेरा सुझाव है कि एक अक्टूबर को जो भी पैसा ‘शेष रहता है, उसे सुभाष बाबू की बेटी की मदद के लिए ट्रस्ट में डाल दिया जाए, जिसके बारे में कुछ समय पहले हमारे बीच पत्र-व्यवहार हुआ था. ऐसा नहीं लगता है कि ‘शरत बाबू सुभाष बाबू के बड़े भाई उनकी कुछ मदद कर पाएंगे.
-भवदीय, वल्लभ भाई पटेल’
'नेता जी की बेटी के लिए बड़ी धनराशि अलग से रखे जाने की क्या आवश्यकता है'
इसके जवाब में 22 जुलाई, 1948 को जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल को लिखा कि ‘आजाद हिंद फौज के बजट के बारे में आपका 21 जुलाई का पत्र प्राप्त हुआ. सुभाष बाबू की बेटी की सहायता के लिए ट्रस्ट में कुछ रुपया अलग से रखने का आपका विचार मुझे अच्छा लगा. शरत बाबू ने कुछ भी करने से पल्ला झाड़ लिया है. परंतु क्या यह कदम आजाद हिंद फौज के राहत कोष के उद्देश्य के अनुरूप है?आजाद हिंद फौज से इस मामले पर विचार-विमर्श करना किसी भी रूप में वांछनीय होगा. मुझे पता नहीं कि कितना पैसा ‘शेष है. मैं नहीं समझता कि उनकी बेटी के लिए बड़ी धनराशि अलग से रखे जाने की आवश्यकता है. संभवतः 25 हजार से काम चल जाएगा. मेरी राय है कि इस बीच कुछ रुपया, जैसे एक हजार रुपए मां को बेटी के लिए भेज दिया जाए. इसका प्रबंध ए.सी.एन नांबियार के माध्यम से आसानी से हो सकता है, जो स्विटजरलैंड से अगले महीने के शुरू में वापस आ रहे हैं और जो मां से अच्छी तरह से परिचित हैं. वह हमें मां -बेटी के बारे में अन्य जानकारी भी दे सकते हैं.
- भवदीय, जवाहर लाल’
इस पर 26 जुलाई, 1948 को वल्लभ भाई पटेल ने जवाहर लाल को लिखा कि ‘आजाद हिंद फौज के बजट के बारे में आपका 21 जुलाई, 1948 का पत्र प्राप्त हुआ. आजाद हिंद फौज की निधि से सुभाष चंद्र बोस की बेटी के लिए मदद को न्यायोचित सिद्ध करना आसान होगा. सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेना प्रमुख थे. अतः आजाद हिंद फौज की निधि से उनके परिवार को मदद दी जा सकती है. जहां तक मैं समझता हूं, उनकी बेटी के लिए अलग से मदद के लिए हमारे पास बहुत पैसा है. इसी बीच मैंने धीरु भाई देसाई से नाथा लाल के संपर्क में रहने को कहा है जो पहले से यूरोप में हैं. और अधिकतम एक हजार रुपए की सहायता, वस्तुएं बेटी को भेजने का प्रबंध करने को कहा है. मैंने उनसे सुभाष बाबू के परिवार के विषय में कुछ अधिक जानकारी एकत्र करने को भी कहा है.
- भवदीय, वल्लभ भाई पटेल’
सरदार पटेल और रूइकर के पत्रों से एक-दूसरे के प्रति राय की एक झलक मिलती है
सुभाष चंद्र बोस के नहीं रहने के बाद फॉरवर्ड ब्लॉक और कांग्रेस के मिलन के बारे में दोनों संगठनों के नेताओं के बीच पत्र व्यवहार हुआ था जो पढ़ने लायक है. यह पत्र व्यवहार 1946 में फॉरवर्ड ब्लॉक के अध्यक्ष आर.एस रूइकर और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच हुआ था. दरअसल रूइकर ने कांग्रेस के साथ काम करने की इच्छा प्रकट करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के नाम खुला पत्र लिखा था जिसका जवाब पटेल ने दिया था. इस पत्र व्यवहार का क्या नतीजा निकला, यह तो मालूम नहीं हो सका, पर इन पत्रों से एक दूसरे के प्रति राय की एक झलक मिलती है.
रूइकर ने 8 मार्च, 1946 को अपने खुले पत्र में लिखा कि ‘नेता जी हमारी प्रेरणा और मार्ग दर्शन के स्रोत हैं. जब तक नेता जी की स्मृति भारत में जीवित है, अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक कांग्रेस के अंतर्गत एक क्रांतिकारी वामपंथी समाजवादी दल के रूप में कार्य करेगा. हम नेताजी के अंतिम ‘शब्दों से पूरी तरह सहमत हैं कि ‘कांग्रेस और हम एक शरीर हैं.’ हम कांग्रेस के अंतर्गत एक दल के रूप में कार्य करने को इच्छुक हैं, जैसा कि सन 1939 में अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना के समय नेताजी ने अंतिम संदेश में हमसे कहा था. मुझे आशा है कि आप, महात्मा गांधी और कार्य समिति इस पत्र पर कुछ कार्रवाई करेंगे.’
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