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जनता स्टोर: दोस्ती, राजनीति, प्यार और दरार की कहानी कहती एक किताब

कहा जाता है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स मुख्य राजनीति की नर्सरी होती है. अगर आपको कारण तलाशना है कि ऐसा क्यों कहा जाता है तो नवीन चौधरी की किताब जनता स्टोर, इसका सटीक जवाब हो सकती है.

Updated On: Jan 15, 2019 08:13 AM IST

Arun Tiwari Arun Tiwari
सीनियर वेब प्रॉड्यूसर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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जनता स्टोर: दोस्ती, राजनीति, प्यार और दरार की कहानी कहती एक किताब

कहा जाता है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स मुख्य राजनीति की नर्सरी होती है. अगर आपको कारण तलाशना है कि ऐसा क्यों कहा जाता है तो नवीन चौधरी की किताब जनता स्टोर इसका जवाब हो सकती है. राजनीति कि मुख्यधारा कैसे अपने मुद्दे और फायदे के लिए स्टूडेंट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल करती है, उसका जवाब जनता स्टोर में बेहद तफ्सील से दिया गया है. लेकिन रुकिए! अगर आपको लगता है कि किताब सिर्फ स्टूडेंट पॉलिटिक्स या मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स पर ही केंद्रित है तो ऐसा नहीं है. दरअसल लेखक ने इस किताब में मुख्य राजनीति के मंझे हुए नेताओं से लेकर युनिवर्सिटी में पढ़ रहे युवाओं की जिंदगी के हर उस पहलू को छुआ है, जो कहानी के लिए जरूरी हैं. मसलन कुछ युवा दोस्त, जो परिस्थितिश स्टूडेंट पॉलिटिक्स में इनवॉल्व हो जाते हैं, किस तरह से आपस में जुड़े हुए हैं, जिनकी जिंदगी में मुख्य कहानी के साथ भी और कई कहानियां चल रही हैं. इन सबसे दिलचस्प यह कि कहानी के मुख्य पात्र ( नैरेटर ) को जिस तरह से गढ़ा गया है वो पूरी कहानी सुनाते हुए कभी उतना पावरफुल नहीं लगता है लेकिन ऐसा क्यों? इसके लिए आपको जनता स्टोर पढ़नी पड़ेगी.

इस किताब की पृष्ठभूमि राजस्थान की रखी गई है. पृष्ठभूमि राजस्थान चुनने के पीछे कारण यह हो सकता है कि लेखक नवीन चौधरी खुद राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और स्टूडेंट यूनियन का चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन विश्वास कीजिए आप उत्तर भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से पढ़े हों इस कहानी के पात्रों में आपको अपने इर्द-गिर्द का कोई न कोई किरदार मेल खाता जरूर मिल जाएगा.

किताब की कहानी चार दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है जो युनिवर्सिटी के छात्र हैं. मयूर भारद्वाज इन चारों लड़कों के नेतृत्वकर्ता के तौर पर पूरी किताब में दिखाई देता है. चार दोस्तों का ये ग्रुप कैसे एक अनचाही लड़ाई के बाद युनिवर्सिटी के सीनियर छात्र नेताओं के संपर्क में आता है और फिर किस तरह इन युवाओं की जिंदगी पलटती है, इसे लेखक ने बेहद खूबरसूरती के साथ उकेरा है. राजनीति में संबंध किस तरह परत-दर-परत बदलते हैं और कौन, कहां, किसके साथ खड़ा है ये पता कर पाना कितना मुश्किल होता है, ये जनता स्टोर अपने पाठकों को समझा पाने में पूरी तरह कामयाब दिखती है. इसके अलावा भारतीय राजनीति की सबसे वीभत्स सच्चाई जातीय राजनीति कैसे पूरे सिस्सटम को प्रभावित करती है उसे भी किताब में बेहद प्रभावी तरीके से दिखाया गया है.

पॉलिटिक्स के चक्कर में फंसे इन युवाओं को एक-दूसरे के साथ ठिठोली करते भी दिखाया गया है जैसे कॉलेज गोइंग दोस्त करते हैं. कई बार आपको महसूस होगा कि ये सारे दोस्त बेहद मुश्किल स्थितियों में फंसे हुए हैं लेकिन तभी कोई एक मजाक करता है और सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.

लेकिन पढ़ाई, प्यार, करियर के बीच इन दोस्तों, विशेष तौर पर मयूर, को अंत में क्या हासिल होता है ये जानने के लिए पढ़नी होगी जनता स्टोर. छात्र राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग इस किताब को एक बार में पढ़ जाएंगे. हर पन्ना आपको मजबूर कि आप अगले पेज पर पहुंचे. हां ये किताब अंत में पाठक के बीच एक कसक छोड़कर जाती है. एक ऐसा किरदार जो आपको सोचने पर मजबूर करेगा कि यार इसकी नियति ये नहीं होनी चाहिए. कौन है वो किरदार? इसका जवाब किताब पढ़ने पर मिलेगा. और हां इस बात का भी कि इस किताब का नाम जनता स्टोर क्यों रखा गया.

प्रकाशक : राधाकृष्ण

मूल्य: 199

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