हिंदी की एक कहावत हम सबने सुनी, पढ़ी है. सौ सुनार की एक लुहार की. ये कहावत हिंदी सिनेमा में अगर किसी शख्स पर सही बैठती है तो वो कुंदन शाह थे. शनिवार की सुबह उनके निधन की खबर आई. भावुकता में कह सकते हैं कि वो ऊपर स्वर्ग में ओमपुरी और रवि बासवानी के साथ कोई नया सीन, कोई ऐक्ट डिस्कस कर रहे होंगे. मगर कुंदन शाह के चले जाने के बाद कई सवाल मन में हैं.
आज राजकुमार राव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी की ऐक्टिंग वाली और अनुराग कश्यप के खेमें की कई फिल्मों के सफल होने के बाद दावा किया जा रहा है कि हिंदी सिनेमा में अब यथार्थपरक, अच्छी कहानी वाली फिल्मों का दौर आ चुका है. मगर ऐसे माहौल में भी ‘जाने भी दो यारों’ के लिए कोई जगह नहीं है.
And then there was Jaane Bhi Do Yaaron: a film for the ages! Kundan Shah RIP. pic.twitter.com/2AzpPosviK
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) October 7, 2017
इसे हिंदी सिनेमा का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि कुंदन शाह की फिल्मोग्राफी जाने भी दो यारों से शुरू होती है मगर बहुत लंबी नहीं हो पाती है. ब्लैक कॉमेडी के जॉनर में तो बिल्कुल नहीं. खुद कुंदन कहते रहे कि वो दुबारा ऐसी फिल्म बनाना भी चाहें तो नहीं बना सकते हैं. समाज में अब वो हिम्मत नहीं है. जिस देश में हर रोज लाशों और धार्मिक प्रतीकों पर राजनीति होती हो वहां इन मुद्दों को लेकर फिल्म नहीं बनाई जा सकती.
जिस फिल्म ने द्रौपदी के चीर हरण के बहाने सरकारी सिस्टम के कपड़े उतार दिए थे. हमने उसी सिस्टम की मदद से इस तरह के तंज करने वाली हर संभावना को नोचने की कोशिश की. पीके का उदाहरण देख लीजिए. इसे बनाने वाले राजू हीरानी इससे पहले गांधीवाद को गांधीगिरी और नकल के सिस्टम पर मुन्नाभाई बना चुके थे. मगर धर्म के क्षेत्र में उतरते ही उनका बुरी तरह विरोध हुआ. अगर हीरानी की पीके में आमिर खान थे तो जाने भी दो यारों में भी नसीरुद्दीन शाह थे मगर एक ही बात कही जा सकती है कि वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है.
1988 :: Comedy Serial Wagle Ki Duniya Begins , Shahrukh Khan Was Also Part of One Episode It Was Directed by Kundan Shah #RIPKundanShah pic.twitter.com/yoCu9V12G5
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) October 7, 2017
साल लाख से कुछ ज्यादा के बजट में बनी कुंदन शाह की इस फिल्म की तुलना अगर पिछले कुछ समय में आई फिल्मों से करें तो पाएंगे आज हम यथार्थपरक सिनेमा के नाम पर मूलतः तीन तरह की फिल्में बना रहे हैं. एक वो जिनमें किसी दूर दराज के इलाके में देसी तरीके से दिखाया गया माफिया वॉर होता है. दूसरी जिनमें प्रेम कहानी के ऊपर किसी सेंसटिव से मुद्दे की कलई चढ़ा दी जाती है. इनके अलावा बिना किसी भी विवाद को छूते हुए लगभग चरण वंदना करने वाली फिल्में बायोपिक के नाम पर परोस दी जाती हैं, जिनमें सारी सफलता इस बात पर होती है कि हीरो का ‘लुक’ फलां आदमी से कितना मिलता जुलता है.
कह सकते हैं कि कुंदन शाह की ये फिल्म उन आखिरी मास्टर पीस में से एक है जिनमें नायक सिस्टम का हिस्सा नहीं बल्कि उसके सामने खड़ा एक आम आदमी है. कुंदन शाह भले ही आज इस दुनिया से गए हों मगर उनके विनोद चोपड़ा और सुधीर मिश्रा के सेल्युलाइड पर होने की संभावना हम दर्शकों ने बहुत पहले ही खत्म कर दी थी. खुद सोचिए कि सिनेमा में आज दो लूज़र फोटोग्राफर नायक होने की संभावना ज्यादा है, या बिना दूसरा पक्ष सुने राज सभा में तलवार से गला काटकर फैसला करने वाला बाहुबली की.
We are deeply saddened by the demise of #KundanShah, director of the classic #JaaneBhiDoYaaro 1983 #KabhiHaanKabhiNaa 1993. pic.twitter.com/icnHzu6ryt
— NFAI (@NFAIOfficial) October 7, 2017
सबसे ताजा रिलीज फिल्म न्यूटन को ही देख लीजिए. ऑस्कर में भारत की इस आधिकारिक एंट्री में नायक सिस्टम का ही हिस्सा है और असामान्य परिस्थितियों में सनकी होने की हद तक जाकर ही नायक बन पाता है. मान लीजिए कि न्यूटन दिल्ली या लखनऊ में चुनाव करवा रहा होता तो क्या नायक बन पाता? और अगर ऐसा होता भी तो क्या उस फिल्म में इन जगहों की राजनीतिक पार्टियों के काम करने के 'ढंग' को सही से दिखाया जा सकता था.
निश्चिंत रहिए कि अगर आज की तारीख में ये फिल्म रिलीज होती तो धार्मिक संस्थाओं से पहले फोटोग्राफर, कॉन्ट्रैक्टर और डॉक्टर्स की तरफ से ही याचिका दायर हो चुकी होती कि इनमें उनकी छवि को गलत तरीके से दिखाया गया है. नशे की गिरफ्त में जकड़े पंजाब को अपना अपमान जब उड़ता पंजाब टाइटल में दिख सकता है तो कुछ भी हो सकता है.
कुंदन शाह की कभी हां कभी न और क्या कहना जैसी फिल्में समय से आगे की थीं और बहुत सुलझे ढंग से अनछुए मुद्दों को दिखा जाती हैं. लेकिन जाने भी दो यारों आज उस नुमाइशी इमारत की तरह से है जिसे देख कर और दिखाकर हम खुश हो सकते हैं कि हमसे पहले वाली पीढ़ी ने हमें ये दिया. वैसे ऐसी इमारतों की विरासत पर भी अब आपत्तियां दर्ज होने लगी हैं, ऐसे में कुंदन शाह की ये विरासत बची रहे इसी की दुआ करिए.
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