8 मार्च को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. आज की तारीख में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिला दिवस का आयोजन करता है और करीब 29 देशों में इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है. महिला दिवस के असली इतिहास से अनजान लोग इस दिन महिलाओं के त्याग, समर्पण या किसी महिला की उपलब्धि आदि की प्रशंसा करते हैं.
कई लोग उनके मातृत्व को सराहते हैं तो कई लोग यह मानते हैं कि इस अपने जीवन में शामिल किसी महिला को कोई उपहार देकर महिला दिवस मना लिया जाए. कई कंपनियां खासकर सौंदर्य प्रसाधन (ब्यूटी प्रोडक्ट्स) बनाने वाली, इस दिन महिलाओं के लिए विशेष छूट आदि देती हैं. इन सबके बीच कहीं न कहीं महिला दिवस की शुरुआत और महिला आंदोलन के असल मुद्दे पीछे रह जाते हैं.
महिला दिवस की शुरुआत इसलिए नहीं हुई थी कि पुरुष नारी की पूजा करनी चाहिए या उसे कोई उपहार देना चाहिए. महिला दिवस की शुरुआत के पीछे महिलाओं का वो आंदोलन है जिसके तहत वे अपने लिए आजादी, बराबरी और सम्मान का हक चाहती थीं. किसी देवी की तरह पूजे जाने की जगह एक आम इंसान की भांति सम्मान पाने की चाह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के मूल में छिपा है.
मजदूर दिवस की तरह महिला दिवस भी महिला मजदूरों के आंदोलनों की वजह से अस्तित्व में आया है.
8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
सबसे पहले 8 मार्च, 1857 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कपड़ा मिलों में काम करने वाली महिलाओं ने बहुत बड़ा प्रदर्शन किया और दो साल बाद उनके विरोध-प्रदर्शनों की वजह से उन्हें यूनियन बनाने का अधिकार मिला. यह महिला आंदोलन काम करने की खराब परिस्थितियों, कम वेतन और काम के घंटे को 12 घंटे करने की मांग को लेकर था.
इसके करीब 50 साल बाद 1908 में 8 मार्च को ही न्यूयॉर्क में करीब 15000 महिला मजदूरों ने सोशलिस्टों के बैनर तले वेतन बढ़ाने, काम के घंटे को कम करने, महिलाओं के लिए वोट का अधिकार और बाल मजदूरी को खत्म करने की मांग को विरोध-प्रदर्शन किया.
1909 में पहली बार 28 फरवरी को अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका (अमेरिका स्थित एक कम्युनिस्ट ग्रुप) राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया. इस दिन अमेरिका में श्रम कानूनों को लागू करने यानी काम के घंटों को 8 घंटे करने और महिलाओं के लिए वोट के अधिकार को लेकर पूरे अमेरिका में विरोध-प्रर्दशन हुआ.
1909 में ही अमेरिका के कपड़ा मिल कारखानों में काम करने वाली करीब 20 से 30 हजार महिलाओं ने आम हड़ताल किया था. कड़ाके की ठंड में करीब 13 हफ्तों तक यह हड़ताल बेहतर वेतन और काम के हालातों के लिए चली. वीमेंस ट्रेड यूनियन लीग ने गिरफ्तार आंदोलनकारी महिलाओं की जमानत के लिए फंड जमा किया.
1910 में कम्युनिस्ट महिला नेता क्लारा जेटकिन ने कोपेनहेगन में आयोजित किए गए दूसरे इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ वर्किंग वीमेन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का विचार दिया. क्लारा ने यह विचार न्यूयॉर्क में 1909 में मनाए महिला दिवस से प्रेरित होकर दिया था. क्लारा जेटकिन ने महिला दिवस मनाने के प्रस्ताव को रखते हुए यह कहा कि सभी देशों में कामकाजी महिलाओं के अधिकारों, महिलाओं के लिए श्रम कानूनों को लागू करने, महिलाओं को वोट देने के अधिकार और शांति की मांग पर बल देते हुए महिला दिवस मनाना चाहिए. इस कॉन्फ्रेंस में 17 देशों की 100 महिलाओं ने हिस्सा लिया था.
इस सम्मेलन में 19 मार्च को महिला दिवस मनाने का फैसला लिया गया क्योंकि इसी तारीख को 1848 में प्रशिया के राजा जनांदोलन के दबाव में महिलाओं को वोट का अधिकार देना स्वीकार किया था. लेकिन बाद में वो अपने वादे से मुकर गया.
1911 में सबसे पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. ऑस्ट्रिया, डेनमॉर्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में बहुत बड़े स्तर पर महिला दिवस मनाया गया. इसमें करीब 10 लाख महिलाओं ने हिस्सा लिया.
इसके एक सप्ताह के भीतर 25 मार्च को न्यूयॉर्क के एक गारमेंट फैक्ट्री में भंयकर आग लग गई जिसमें 146 मजदूरों की मौत हो गई. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं थीं. इसके बाद महिलाओं के आंदोलन ने नया उभार लिया. इन विरोध-प्रदर्शनों के नतीजों के रूप में इंटरनेशनल लेडीज गारमेंट वर्कस यूनियन का गठन हुआ. यह बाद में अमेरिका के सबसे बड़े मजदूर संगठनों में से एक बना.
प्रथम विश्व युद्ध की संभावना को देखते हुए 1913 में विचार-विमर्श के बाद शांति की अपील के साथ 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का फैसला किया गया. तब से यह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाने की परंपरा शुरू हुई. 8 मार्च, 1914 को महिलाओं ने पूरे यूरोप में युद्द के खिलाफ रैलियां निकालीं.
8 मार्च, 1917 को (तब के रूसी कैलेंडर के अनुसार 23 फरवरी) रूसी महिलाओं ने ‘रोटी और शांति’ की मांग के साथ जारशाही के खिलाफ प्रदर्शन किया. पीट्सबर्ग की कपड़ा महिला मिल मजदूरों ने हड़ताल की.
1979 को ईरान के लगभग 1 लाख महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर ने अयातुल्ला खुमैनी के शासन के आने से पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तेहरान यूनिवर्सिटी में रैली निकाली. महिलाओं शाह और इस्लामी रूढ़िवादियों के खिलाफ पश्चिमी कपड़े पहनकर अपना विरोध जताया. ईरान के अन्य शहरों में भी इस तरह के प्रदर्शन हुए. महिलाओं ने बराबरी के अधिकार के साथ अपनी मर्जी से कपड़े पहनने के अधिकारों की भी आवाज उठाई.
महिला दिवस मनाने की शुरुआत जिन मांगों से हुई थी, उनमें से कई मांगें आज भले ही कई देशों में मान ली गई हों लेकिन अलग-अलग देशों में आज भी महिलाओं के कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर महिलाएं आवाज उठा रही हैं.
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