अक्सर लोगों के बीच एक खास मुद्दे पर बहस देखी जा सकती है. ये मुद्दा सेक्सिज्म का होता है. कई बार ये मुद्दा एक खास श्रेणी तक सिमटकर रह जाता है जिसे लोग फेमिनिज्म के नाम से भी जानते हैं. लेकिन क्या आपको सेक्सिज्म और फेमिनिज्म के बीच अंतर पता है? दरअसल हमारा समाज खुद इस मुद्दे को लेकर इतना कनफ्यूज है कि वो खुद अब इस अंतर को भूल गया है. सेक्सिज्म का मतलब होता है महिलाओं और पुरूषों के साथ जेंडर के आधार पर भेदभाव. लेकिन आज का समाज इससे कुछ उल्टा सोचता है.
मिसाल के तौर पर अगर एक लड़की कहे कि मुझे एक ऐसे लड़के से शादी करनी है जो शराब न पीता हो तो उसमें शायद किसी को कुछ खराबी नहीं लगेगी. लगेगी भी क्यों? कौन सी लड़की चाहेगी कि उसको शराबी पति मिले. लेकिन अगर वहीं एक लड़का बोले कि मुझे ऐसी पत्नी चाहिए जो शराब न पीती हो, तो उसे हजार तरह के भाषण देकर ये महसूस करा दिया जाएगा कि उसकी ये सोच कितनी गलत है. हर लड़की जो शराब पीती है वो खराब नहीं होती, लड़का कितनी छोटी सोच रखता है, लड़कियों की आजादी को कुचल देना और न जाने क्या-क्या कहकर लड़के के मत्थे दोष मढ़ दिया जाएगा.
लेकिन एक मिनट रूक कर सोचिए कि क्या ये सही है? अगर एक लड़की को हक है कि वो अपनी मर्जी से अपना पति चुन सके तो क्या लड़के को नहीं है कि वो भी अपनी पसंद की कोई लड़की चुने? क्या उस समय उस लड़के के साथ जो होता है वो सेक्सिज्म की श्रेणी में नहीं आता?
सेक्सिज्म की शुरुआत कहां से हुई?
यह समय वो था जब लड़कियों के पैदा होने पर लोग खुशियां नहीं मनाते थे. बल्कि अफसोस होता था और इसलिए लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता था. उनकों स्कूल न जाने देना, कम उम्र में अधेड़ उम्र के आदमी से शादी करा देना, घर की चारदीवारी में कैद करके रखना तो बाद की बात थी. लेकिन धीरे-धीरे माहौल बदला. लड़कियों को भी सम्मान मिलने लगा. उनके विचारों को भी सुना जाने लगा. और आज हालात कुछ यह है कि लड़कियां खुद लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है.
उस समय के माहौल के देखकर लड़कियों की सेक्सिज्म के खिलाफ लड़ाई समझ में आती थी मगर क्या आज वाकई लड़कियों को इसकी जरूरत है? क्या हमारा समाज खुद इतना शिक्षित नहीं हुआ है कि वो खुद सही और गलत के बीच फर्क कर सके? एक तरफ हम लड़कियों के मजबूत होने की बात करते हैं लड़कों के साथ बराबरी करने की बात करते हैं लेकिन वहीं अगर मेट्रो या बस में लड़का आपको देखकर अपनी सीट न छोड़े तो मन में हजार तरह की बातें आ जाती है कि कैसा लड़का है सामने लड़की खड़ी है फिर भी अपनी सीट नहीं छोड़ सकता. हम लड़कियों को हर चीज में प्रिविलेज चहिए मगर कोई यह न कह दे की हम किसी भी मामले में लड़कों से कम हैं.
सोच बदलनी होगी
आज अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मैं सभी लड़कियों से एक बात कहना चाहती हूं. जानती हूं एक वक्त था जब हमारे साथ बहुत अत्याचार हुआ. हमारे अधिकारों के साथ खिलवाड़ हुआ. हमारे अस्तित्व पर सवाल उठाए गए. ये सारी चीजें अभी भी समाज में जिंदा हैं. लेकिन हमें इस बात की खुशी होनी चाहिए कि हालात अब पहले जैसे उतने खराब नहीं है. अब हमको अपने अस्तित्व के लिए रोज लड़ाई भी नहीं करनी पड़ती. सरकार से लेकर हमारे परिवार का हर शख्स आज हमारे हक के लिए लड़ता हुआ दिखाई देता है.
अब तो सेक्सिज्म के खिलाफ फेमिनिज्म की लड़ाई लड़ना बंद कीजिए. अपने दिमाग से इस वहम को हटाइए कि सेक्सिज्म केवल लड़कियों के खिलाफ ही होता है. ऐसा नहीं है. आप भी शायद हर रोज जाने-अनजाने किसी लड़के को फेमिनिज्म के नाम पर सेक्सिज्म का शिकार बना रही हैं. अगर आप चाहती हैं कि हमें वाकई लड़कों से अलग न समझा जाए या उनसे कम न समझा जाए तो पहल खुद की सोच बदलनी होगी.
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