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देश में सुधार के लिए लचर कमेटी नहीं कैलिफोर्निया जैसा मॉडल चाहिए: मेनका गांधी का कॉलम

इस समय कैलिफोर्निया के वोटर्स सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं उस विषय के लिए जिसके लिए यहां हम भी मंत्रालयों और अदालतों से कुछ वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं

Updated On: Apr 17, 2018 09:10 AM IST

Maneka Gandhi Maneka Gandhi

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देश में सुधार के लिए लचर कमेटी नहीं कैलिफोर्निया जैसा मॉडल चाहिए: मेनका गांधी का कॉलम

कैलिफोर्निया में एक मजेदार राजनीतिक व्यवस्था कायम है. यहां पर कोई संस्था या फिर कोई भी व्यक्ति राजनेताओं को बाईपास करके खुद ही वहां के लोगों के हितों से जुड़ा कोई कानून बना सकता है. हां, इसके लिए उसे वहां के लोगों से उस कानून के समर्थन में हस्ताक्षर लेना पड़ता है. वहां के लोगों के सामान्य हितों के लिए, किसी को भी सरकार की ओर ताकने की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि उस मुद्दे से जुड़ा कानून वहां के लोगों के द्वारा खुद ही तैयार कर लिया जाता है.

ये मुझे सही भी लगता है, क्योंकि हमारे देश भारत में किसी भी काम के लिए लोग नेताओं के रहमो-करम पर ही आश्रित रहते हैं जबकि यहां के नेता शायद ही कोई काम जनता की भलाई के लिए करते हैं. यहां के नेता तो उन छोटे-छोटे विषयों पर बदलाव के बारे में भी नहीं सोचते हैं जो कि यहां के लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं. हां उसकी जगह कोई भारी भरकम योजना जरूर शुरू कर देते हैं जिसे पूरा करना ही मुश्किल हो जाता है. और अगर मान लीजिए की ये पूरा हो भी गया तो उसका क्रियान्वयन इतना घटिया होता है कि वो बनाने के बजाए और बिगाड़ ही देते हैं.

लचर योजनाएं बनाते हैं हम

बांध बनाने और नदियों को जोड़ने की योजना हो या फिर मनरेगा योजना सबके क्रियान्यवयन पर उंगलियां उठती रही हैं. उसी तरह से बच्चों को खिलाने की योजना तो इतनी लचर रही कि उससे कई जगहों पर कुपोषण तक फैल गया. जंगलों को बिना किसी जांच-पड़ताल के बिना कथित आदिवासियों को सौंप दिया गया, उसी तरह से म्यूजियम और विरासत से जुड़ी चीजों के रख-रखाव से जुड़ी अनभिज्ञता और किसानों को कृषि से संबंधित सलाह देने की योजना जिसकी जगह कृषि विज्ञान केंद्र जैसी बेकार की योजनाएं तैयार की गयी जिससे शायद ही किसी को भी सही तरीके से फायदा पहुंच सका हो. ऐसी हजारों योजनाएं हैं, जिसके बारे में मैं जानती हूं.

Women collect tomato near Bhopal.

उसी तरह से पेस्टीसाइड्स और यूरिया का आयात और बहुतायत उपयोग और मीट का निर्यात जैसी कुछ चीजें मेरी लिस्ट में सबसे ऊपर हैं. मीट के निर्यात से तो देश के वन्य और जल व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है. बूचड़खाने और मांस के निर्यात संबंधी व्यवसाय तो प्रवासी भारतीयों और विदेशी नागरिकों द्वारा चलाए जा रहे हैं जो कि देश को लूटने का काम कर रहे हैं. मेरी सूची में कृषि मंत्रालय के द्वारा उन जानवरों, मछलियों और पक्षियों पर ध्यान न देना भी शामिल है जिन्हें केवल मांस खाने के लिए बड़ा किया जाता है. ऐसे जानवरों को बहुत बुरी अवस्था में रखा जाता है और उन्हें हार्मोन्स, पेस्टीसाइड, एंटीबॉयोटिक्स के इंजेक्शन दिए जाते हैं. ऐसे जानवरों को जब मनुष्य जब खाते हैं तो वो बीमार पड़ते हैं इसकी तस्दीक उन आंकड़ों से की जा सकती है जिसमें प्रतिदिन बढ़ती संख्या में लोग अस्पताल जाकर इलाज करवा रहे हैं.

क्या फायदा नोटा का

बहुत से लोगों ने बैलेट पेपर पर नोटा (नन ऑफ दी एबव) यानी उपर्युक्त में से कोई नहीं के लिए अभियान चलाया. लेकिन इससे नतीजा क्या निकला, कुछ नहीं. किसी भी शख्स ने बूथ तक जाकर वोट न करने का काम नहीं किया. अगर लोगों को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आया तो उन लोगों ने वोट के दौरान घर से बाहर निकलने की जहमत ही नहीं उठाई. ये एक आंदोलन की तरह से था जिसका मकसद था चुने गए व्यक्ति को राइट टू रिकॉल के तहत वापस बुलाने का.

election evm

लेकिन अगर कभी ऐसा होता तो बवाल मच जाता क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति चुनाव हारता वो लोगों के हस्ताक्षर इकट्ठा करने में जुट जाता भले ही इसमें उसे कितना भी रुपया खर्च करना क्यों नहीं पड़ता. उसी तरह से एक और आंदोलन चला था कि महिलाओं को कानूनी हक के तहत एक तिहाई सीटें चुनाव लड़ने को मिलेंगी लेकिन इनमें से कोई भी आंदोलन ये बदलाव लाने में नाकाम रहा जिसमें की शासन की सहभागिता हो.

ऐसे में जरुरी है कि वो किया जाए जो कि कैलिफोर्निया में किया जा रहा है. अगर ऐसा करने में हम पचास फीसदी भी सफल रहे तो लोगों के मन में इस विचार से जुड़ी दिलचस्पी पैदा करने में सफल हो सकते हैं. जिससे बाद उस नियम या कानून को बनाने के लिए न्यूनतम निर्धारित हस्ताक्षर करवा कर उसे संसद या राज्य विधानसभा में पेश करके उस पर वोटिंग कराई जा सकती हो. देखते हैं कि हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का इस योजना पर क्या विचार रहता है.

क्या है कैलिफोर्निया में हालात

इस समय कैलिफोर्निया के वोटर्स सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं उस विषय के लिए जिसके लिए यहां हम भी मंत्रालयों और अदालतों से कुछ वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं. ये मामला है फैक्ट्री फार्म सिस्टम में बदलाव का जिसके अंतर्गत मांग की जा रही है कि मीट के लिए पोषण किए जा रहे जानवरों को उनकी पूरी जिंदगी बांध कर या बंद करके नहीं रखा जा सके.

लेकिन क्या ये विषय केवल ‘पशु प्रेमियों’ से जुड़ा हुआ है, जैसा कि अक्सर कहा जाता है. नहीं, ये हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मसला है जिसे आपके स्थानीय विधायक और सांसद के साथ म्युनिस्पल चेयरमैन को भी समझाना पड़ेगा. पक्षी, सुअर और मवेशी खास करके पोल्ट्री को छोटे छोटे पिजरों में कैद करके रखा जाता है जहां पर वो अपने पंख तक नहीं फैला सकते. वो जगह छोटी होती है और उसमें उन्हें ठूंस कर रखा जाता है. जगह के लिए वो आपस में नहीं लड़े सके लिए पोल्ट्री फार्म के मालिकों के द्वारा उनकी चोंच और उनके पंजों को तोड़ दिया जाता है वो भी बिना एनीस्थिसिया दिए हुए. वो बिना दर्द के खड़े नहीं रह सकते लेकिन उनके पास बैठने के लिए जगह ही नहीं होती है.वो खुद के मल पर बैठते हैं और कीड़ों से घिरे रहते हैं जो कि उनका खून चूसते रहते हैं. वो जल्दी ही बहुत बहुत बीमार हो जाते हैं लेकिन उन्हें एंटीबॉयोटिक्स, हारमोन्स और पेस्टीसाइड्स की मदद से जिंदा रखा जाता है.

जब उनको मारा जाता है तो वो सब उनके मांस में मौजूद रहता है और उसी मांस को खाने से इंसानों में वो बीमारियां चली जाती हैं. जिससे लोगों को कैंसर, मिर्गी, किडनी की समस्या और बड़ी-बड़ी बीमारियां पैदा हो जाती हैं. लेकिन इन सबसे बचाव हो सकता है अगर उनको प्राकृतिक वातावरण में खुला छोड़ दिया जाए और उन्हें सड़े हुए अनाज के दाने, कार्डबोर्ड आदि खाने की जगह प्राकृतिक भोजन और पानी लेने दिया जाए तो. अगर उनको मारने से पहले इस तरह से खुले में आजाद तरीके से रखा जाए तो उनके साथ साथ मनुष्यों को भी गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकेगा.

ठीक यही समस्या सुअरपालन से भी जुड़ी है. सुअर एक समझदार और भावुक जानवर है ऐसे में उसे एक छोटे क्रेट में बांध कर रखना और उसे जबरन घटिया खाना खिलाना, उससे बलपूर्वक प्रजनन कराना और उसके बच्चे को उससे अलग कर देने से वो गंभीर रूप से बीमार पड़ जाती है. उसके बाद वही गंभीर बीमारी पोर्क खाने वाले लोगों के शरीर में चली जाती है. उसी तरह से बछड़ों को एक टाइट क्रेट से बांध कर रख दिया जाता है और उन्हें भूखों मरने छोड़ दिया जाता है. जब छः सप्ताह के बाद वो मरते हैं तो खून की कमी से उनका मांस सफेद हो चुका होता है. उसके बाद लोग इस बछ़डे के मांस को खाते हैं.

कैलिफोर्निया में सैकड़ों की संख्या में वोलंटियर्स सड़कों पर उतर गए हैं और लोगों के घर-घर जाकर उनके हस्ताक्षर एकत्रित कर रहे हैं. उनका मकसद निर्धारित 3,65,000 हस्ताक्षर इकट्ठा करने का है. उनको इन हस्ताक्षरों को इकट्ठा करने के लिए नियम के मुताबिक एक निश्चित समय आवंटित किया गया है. कुछ लोग ऐसे हैं जो मीट खाते तो हैं लेकिन वो बीमार नहीं पड़ना चाहते. ऐसे में अगर नया कानून बन गया तो वहां पर जबरन बांध कर या बंद करके रखे गए जानवरों मवेशियों और पोल्ट्री से जुड़े सभी उत्पाद जैसे अंडा, मीट, पोर्क और वील प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे. लेकिन ऐसा तभी हो सकेगा जब अभियान चलाने वाले लोग निर्धारित हस्ताक्षर जुटा लें. अगर ये कानून पास हो गया तो ये कानून फार्म एनिमल वेलफेयर का सबसे प्रगतिशील कानून होगा इतना ही नहीं जानवरों के साथ ही ये मनुष्यों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ विश्व का सबसे बड़ा सुधारवादी कानून होगा.

क्या होगा नए कानून में

इस नए कानून के मुताबिक मुर्गियों के लिए सभी पिंजड़े प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे, उसी तरह से मादा सुअरों के लिए जेस्टेशन क्रेटस और बछड़ों के लिए वील क्रेट्स प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे. 2019 के अंत तक सभी मुर्गियों को पिंजड़ों से मुक्त कर दिया जाएगा और उन्हें रहने के लिए खुला न्यूनतम एक मंजिला खुला खलिहान या घर के अंदर की कोई खुली जगह देनी होगी सभी पक्षी ऊपर नीचे आसानी से जा सकें.

इस कानून का असर केवल वहां नहीं बल्कि पूरे राष्ट्रीय स्तर पर पड़ेगा. न केवल वहां के पोल्ट्री बिजनेस में लगे किसानों को बल्कि वहां से व्यापार करने की चाहत रखने वाले किसानों को भी इसका पालन करना पड़ेगा. हस्ताक्षर इकट्ठा करने की आखिरी तारीख एक मई निर्धारित की गयी है और अब तक दो लाख हस्ताक्षर एकत्रित भी किए जा चुके हैं. ये एक इतिहास बनने की दहलीज पर है और इस कानून के बनने के साथ ही कैलिफोर्निया उस यूरोपीय यूनियन से आगे निकल जाएगा जिसने 2012 में पूरे यूरोप में बैटरी पिंजड़ों को प्रतिबंधित कर दिया था.

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रायटर इमेज

कैलिफोर्निया ने 2008 में प्रपोजीशन 2 पास किया था जिसके अनुसार बैटरी पिंजड़ों को प्रतिबंधित कर दिया था और कहा था कि जानवरों को घूमने के लिए, बैठने के लिए और अपने पंजे फैलाने के लिए जगह मिलनी चाहिए. 2016 में मैसाचुसेट्स ने इतिहास बनाते हुए 78 फीसदी लोगों के द्वारा अनुमोदित एक कानून पास किया जिसके अनुसार वहां पर बंद करके रखे गए जानवरों के उत्पादों की बिक्री नहीं होगी. कैलिफोर्निया अब उनसे ऊपर जाने की कोशिश में जुटा हुआ है.

और भारत में? केवल कमेटी कमेटी का खेल. यहां पर बीआईएस से एफएसएसएआई तक और हेल्थ मिनिस्ट्री से लेकर ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया तक कई कमिटियों को गठन हुआ और सभी इस बात पर सहमत थे कि कुछ न कुछ किया जाना चाहिए. लेकिन सभी ने अपना पल्ला झाड़ते हुए दूसरी कमिटी को इसपर काम करने की सलाह दे दी. इस विषय पर राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी है और किसी तरह के स्पष्ट निर्देश के अभाव में अधिकारी भी इस मामले में किसी तरह का फैसला लेने से कन्नी काट जाते हैं. इन सबके ऊपर बूचड़खानों की भी एक बड़ी लॉबी है जो कि अधिकारियों और नेताओं को पैसे खिलाकर गंदे और अस्वस्थ व्यवस्था को कायम रहने देना चाहती है. मैं चाहती हूं कि नेतागण, लोगों के स्वास्थ्य को अपने ऐजेंडे में सबसे ऊपर रखें,अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं तो बाकी चीजें अपने आप लाइन पर आ जाएंगी.

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