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#metoo के दौर में क्या संदेश दे रहे हैं वेब सीरीज के हिंसात्मक सेक्स सीन

न्यूडिटी या शारीरिक टच करने वाले सीन में ऐसे डायरेक्टर्स की जरुरत पड़ती है. ये प्रोफेशनल होते हैं. ऐसे में उद्देश्य रहता है कि परफॉर्म कर रहे व्यक्ति का इस चीज की वजह से कोई भी मानसिक नुकसान न हो

Updated On: Dec 08, 2018 02:10 PM IST

Jyoti Yadav Jyoti Yadav
स्वतंत्र पत्रकार

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#metoo के दौर में क्या संदेश दे रहे हैं वेब सीरीज के हिंसात्मक सेक्स सीन

क्या वेब सीरीज और फिल्मों के हिंसात्मक सेक्स दृश्य अभिनेत्रियों के शोषण का कारक बन सकते हैं? यह प्रश्न हालिया वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ के हिंसात्मक सेक्स दृश्यों और गाली गलौज के संदर्भ में उठता है. यह प्रश्न उठता है मी टू मूवमेंट के परिप्रेक्ष्य में भी, क्योंकि भारत में ये आंदोलन तभी शुरू हुआ था जब दस साल बाद तनुश्री दत्ता ने सेट पर डांस स्टेप के दौरान गलत तरीके से छुए जाने की बात कहकर नाना पाटेकर पर आरोप लगाए थे.

क्या हुआ है वेब सीरीज में?

मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ को अपने गाली गलौज और हिंसात्मक सेक्स दृश्यों की वजह से सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ा है. लोग लिख रहे हैं कि वेब सीरीज़ को सेंसर करने की ज़रूरत है. हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं. उनका कहना है कि सिनेमा एक आर्ट है और सेंसरशिप लगाकर आर्ट को लिमिट कर देने की वकालत करना गलत है. यह बात खुद 'गैंग्स ऑफ वास्सेपुर' जैसी फ़िल्में बना चुके अनुराग कश्यप कहते हैं. अभी ब्रूट इंडिया की एक वीडियो में मीटू मूवमेंट पर बात करते हुए अनुराग ने सेंसरशिप के खिलाफ भी बोला है.

अनुराग कश्यप की बनाई वेब सीरीज़ 'सेक्रेड गेम्स' भी 'हिंसात्मक' कंटेंट से भरी हुई थी. गालियों और हिंसात्मक सेक्स सीन से भरी सेक्रेड गेम्स को देश की राजनीतिक स्थिति से जोड़कर देखा और सराहा गया. शायद राजनीतिक एंगल जुड़ जाने की वजह से गालियों का सामान्यीकरण करने या महिलाओं को सॉफ्ट पोर्न की तरह बेचने वाली वेब सीरीज पर कोई बहस नहीं हुई.

लेकिन सेक्रेड गेम्स के एक सेक्स सीन की क्लिप वायरल हुई और जनता ने उसे पोर्न की तरह कनज़्यूम किया. इस सीन में गायतोंडे का किरदार निभाने वाले नवाज़ुद्दीन और उनकी बीवी का रोल करने वाली राजश्री देशपांडे को बिस्तर में लगभग 'हिंसक' रूप लेते हुए दिखाया गया है. इस सीन के वायरल होने पर राजश्री देशपांडे ने कहा कि वो पहले से ही इस बात के लिए तैयार थी. उन्हें अपने किरदार के इस सीन की ज़रूरत पर पूरा यक़ीन था.

उनके मुताबिक इस सीन को बॉलीवुड की बाकी फिल्मों की तरह ज़ूम करके सॉफ्ट पोर्न की तरह नहीं बेचा गया. न ही इसमें कोई अश्लील लिरिक्स वाले गाने का इस्तेमाल किया गया. उनका मानना है कि आमतौर पर जैसे एक महिला का शरीर होता है, सेक्रेड गेम्स में वैसे ही दिखाया गया है.

महिलाओं के शरीर को जैसा है, वैसे ही दिखाया जाना और फिल्म/वेब सीरीज में ऐसे सीन की ज़रूरत की बहस के बीच ये सवाल उठाना ज़रूरी है कि क्या सच में एक सीन कहानी में स्थापित करने के लिए महिलाओं के अंगों को दिखाने की ज़रूरत है? क्या ऐसे सीन महिलाओं के शरीर से जुड़े टैबू तोड़ रहे हैं? अगर राजश्री के बयान की ही बात करें तो वो खुद स्वीकार कर रही हैं कि वे पहले से तैयार थीं.

उन्हें पता था कि इस सीन को पोर्न की तरह कन्ज़्यूम किया जाएगा. अगर फिल्म बनाने और उसमें काम करने वालों को पता ही है कि ऐसे सीन को पोर्न की तरह ही कन्ज़्यूम किया जाएगा, तो महिलाओं और उनके शरीर से जुड़े टैबू तोड़ने वाली बात सिर्फ लीपापोती के लिए है? या महज नारीवाद की बहस से जुड़कर अपना काम बेचने के लिए?

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ये मार्केट की चालाकी भी हो सकती है जो ऐसे सीन की ज़रूरत की परिभाषा को ही बदल देती है. 'सेक्रेड गेम्स' में बेशक डबल मीनिंग और अश्लील लिरिक्स ना हों लेकिन फिल्म में इस्तेमाल की गई गालियां इसे उस कैटेगरी में ला खड़ा करती हैं, जिस कैटेगरी में ग्रैंड मस्ती जैसी फ़िल्में हैं. दोनों ही महिला विरोधी. पुरुषों की बनाई गईं फ़िल्में सिर्फ पुरुषों के लिए.

ऐसे सीन की ज़रूरत को हम हाल ही में आई फिल्म 'बधाई हो' से जोड़कर देख सकते हैं. फिल्म ने बेशक ही माता-पिता की उम्र के लोगों के सेक्स करने के से जुड़े टैबू को तोड़ने की. आम लोगों के बीच इस बात को नॉर्मलाइज़ करने की कोशिश की गई. बिना किसी हिंसात्मक सेक्स के.

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गालियों और हिंसात्मक सेक्स सीन हमें 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' तक लेकर जाती हैं. इस फिल्म को हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्मों में से एक माना जाता है. इसमें गालियां, खून खराबा और सेक्स सीन को इस तरीके से परोसा गया है कि आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछाड़ा होने के बावजूद बिहार की एक अलग ही कूल इमेज गढ़ दी गई है.

इस फिल्म के बाद भोजपुरी भाषा को कूल माना जाने लगा और गालियां भी कूल होने का पैमाना बन गईं. तकरीबन हर प्रोफेशन इंजीनियरिंग, पत्रकारिता, डॉक्टरी, प्रोफेसरी इत्यादि के लोग सोशल मीडिया पर खुलेआम गंदी गालियों का इस्तेमाल हास्य के रूप में करते पाए जाते हैं. हर किसी के पास फ्रीडम ऑफ़ स्पीच से अपनी हर बात को जस्टिफाई करने का मौका भी है.

दो एक्ट्रेस की जिंदगी हिंसात्मक सेक्स दृश्यों की वजह से नरक बन गई

1972 में आई फिल्म 'लास्ट टैंगो इन पेरिस' अपने समय की बेहद विवादित फिल्म थी. वजह थी फिल्म के सेक्स और रेप सीन. फिल्म के निर्देशक बरनार्डो बेर्टोलुस्सी और एक्टर मार्लोन ब्रांडो ने इससे ज़बरदस्त कमाई की. लेकिन फिल्म की हेरोइन मारिया शेंडर को ड्रग्स ने घेर लिया. ऐसा भी हुआ कि तीन-चार बार ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. इस फिल्म के रेप सीन की वजह से मारिया डिप्रेशन में चली गईं और उन्होंने कई बार खुद को मारने की भी कोशिश की.

जब इस फिल्म की शूटिंग हुई तब मारिया सिर्फ 19 साल की थी और फिल्म के एक्टर मार्लोन 48 साल के. पिछले साल हॉलीवुड में चले metoo अभियान के दौरान बरनार्डो बेर्टोलुस्सीइस की एक क्लिप वायरल हुई जिसमें वो फिल्म के रेप सीन के बारे में बता रहे हैं. दरअसल वो और मार्लोन ही रेप सीन में बटर वाला आईडिया लेकर आए थे. उन्होंने मारिया को इसकी जानकारी नहीं दी. क्योंकि बरनार्डो रेप सीन को इतना असली दिखाना चाहते थे कि उन्होंने मारिया को पहले से इसके बारे में नहीं बताया. रेप सीन फिल्माते वक्त मारिया सच में रो रही थी और बरनार्डो ने उस सीन को वैसे ही शूट किया.

इस बारे में मारिया ने 2007 में डेली मेल को दिए एक इंटरव्यू में भी बताया कि कैसे उनका रेप सीन फिल्माते हुए असल में रेप हो गया. वो कहती हैं कि दर्शकों को लगा होगा कि ये आंसू नकली हैं, लेकिन मैं सच में रो रही थी. उस बटर सीन की वजह से मैं अब तक बटर नहीं खरीदती हूं. रेप सीन में जितनी हिंसा दिखाई गई वो पहले स्क्रिप्ट में नहीं थी. उसे बाद में जोड़ा गया.

बरनार्डो से कुछ साल पहले जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हालांकि मारिया 2011 में कैंसर से लड़ते-लड़ते मर गई लेकिन वो मुझसे मरते दम तक नफरत करती रहीं. क्या उन्हें इस बात का पछतावा होता है. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक फिल्म को उसके मुकाम तक पहुंचाने के लिए हमें बहुत फ्री रहना पड़ेगा. मुझे उस सीन का कोई पछतावा नहीं है, लेकिन गिल्ट ज़रूर है.

वो रेप होने के बाद वाला इमोशन एक एक्ट्रेस के तौर पर नहीं बल्कि एक लड़की के तौर चाहते थे. वो चाहते थे कि मारिया सच में वैसे ही रिएक्ट करे जैसे उसका रेप हो रहा हो. इस रेप सीन को असली दिखाने के चक्कर में मारिया का सच में रेप किया गया. इसी साल डायरेक्टर बरनार्डो की भी मृत्यु हो गई.

फिल्म को अवॉर्ड्स के कई नॉमिनेशन मिले. लेकिन इसे वर्ल्ड वाइड बैन कर दिया गया था. ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में भी इस फिल्म के खिलाफ प्रोटेस्ट हुए थे.

मारिया ने यहां तक भी कहा कि इस फिल्म के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि बरनार्डो और मार्लोन, दोनों ने उनका बलात्कार किया. फिल्म रिलीज होने के बाद उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया. लोगों को लगा कि जैसा उन्हें फिल्म में दिखाया गया है वो असल में भी वैसी ही हैं. हालांकि बाद में मारिया ने बहुत सी फ़िल्में की लेकिन उन्होंने कभी कोई न्यूड सीन नहीं दिया.

2005 में एक ऐसी ही घटना साउथ कोरियाई फिल्म इंडस्ट्री में हुई. जहां फेमस एक्ट्रेस ली यून जू ने सेक्सुअल सीन्स से भरी फिल्म करने के बाद आत्महत्या कर ली.

ये फिल्म थी 'द स्कारलेट लेटर'. ली के घरवालों ने प्रेस को बताया कि फिल्म रिलीज होने बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें नींद आनी बंद हो गई. दरअसल इस फिल्म में उन्होंने को एक्टर के साथ सेक्सुअल सीन शूट और कुछ न्यूड सीन किए थे. इस चीज़ ने उन्हें मानसिक रूप से डैमेज किया.

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हॉलीवुड एक्टर्स ने बताया ऐसे दृश्यों के बारे में, जो कि डरावना था

2014 में कॉस्मोपॉलिटन ने एक आर्टिकल लगाया था. इस आर्टिकल में 51 हॉलीवुड सेलिब्रिटीज का एक इंटरव्यू था जिसमें अंतरंग और सेक्स सीन पर बात की गई थी. इस आर्टिकल में हॉलीवुड एक्टर्स ने खुलकर बताया कि जब सीन शूट कर रहे होते हैं तो कैसा महसूस करते हैं.

'ब्लू वैलेंटाइन' फिल्म की शूटिंग के दौरान मिशेल विलियम्स ने रयान गोसलिंग एक्टर के साथ सेक्स सीन के बारे में बताया कि वो सेक्स सीन टॉक्सिक थे. ऐसे सीन शूट करने में काफी वक्त लग जाता था. इस वजह से फिल्म सेट से घर लौटने पर उन्हें देर हो जाती थी. रास्ते में वो अपनी कार की खिड़की खोल लेती थीं. म्यूजिक को जितना ज़ोर से चला सकती थीं, चलती. वो खिड़की से अपना मुंह बाहर निकालकर एक कुत्ते की तरह चिल्लाती. ऐसा करके वो उस सेक्स सीन के जहरीलेपन से बाहर निकलने की कोशिश करती थीं.

ऐसा ही कुछ जेन आयर में काम कर रहे आयरिश एक्टर माइकल फॉस्बेंडर ने भी माना. उन्होंने बताया कि पुरुष होने के नाते आप कोशिश करते हैं कि ऐसे इंटीमेट सीन के दौरान आप अपनी को-एक्टर को महसूस करने की कोशिश ना करें. आप उस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश ना करें. ऐसे में माइकल फॉस्बेंडर माहौल को थोड़ा लाइट बनाने की कोशिश करते हैं. वो चाहते हैं कि सीन एक बार में ही शूट कर लिया जाए, उसके लिए बार-बार टेक ना लेना पड़े.

लेकिन इसके उलट ब्राइड्समेड फिल्म में काम कर रहे अमेरिकन एक्टर जोनाथन डेनियल हेम कहते हैं कि ये शुरुआत में बहुत ही असहज करने वाला होता है. लेकिन थोड़ी देर में आप सोचने लगते हैं कि जब आप ऐसे सीन कर ही रहे हैं तो इस चीज़ को पूरे फन के साथ किया जाए. और ऐसा होता है कि थोड़ी देर बाद आप इस सीन को इंजॉय भी करने लगें.

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सारा सिल्वरमैन, स्टैंड अप कॉमेडियन व एक्ट्रेस कहती हैं कि ये रेप नहीं होता है, लेकिन ये रेप जैसी एक चेतावनी होता है. आपको महसूस होता है कि आप एक ताकतवर महिला हैं और फिर भी आपके साथ ऐसा हो गया. आप सोचिए कि आपके सामने कोई नग्न खड़ा है, जिसके शरीर पर एक जुराब का टुकड़ा तक नहीं है. यहां तक कि आप उसके अंग को भी महसूस कर सकती हैं. आपके साथ ऐसा हिंसात्मक सेक्स सीन फिल्माया जा रहा है. आपको बलात्कार जैसे महसूस होता है.

भारत में भी इसके बहुत उदाहरण हैं

हॉलीवुड से चला मीटू अभियान बॉलीवुड तक पहुंचने में काफी वक्त लगा. लेकिन जब पहुंचा तो इसने बॉलीवुड के कई चेहरों के घिनौनेपन को सामने ला दिया. संस्कारी कहे जाने वाले अलोक नाथ से लेकर साजिद खान पर कई महिलाओं ने बलात्कार और यौन शोषण गंभीर आरोप लगाए. अभी कुछ दिनों पहले ही पूर्व मिस इंडिया रह चुकी निहारिका सिंह ने अपने मीटू कहानी बताई थी. यहां नवाज़ुद्दीन के बारे में जो लाइन सबसे डरावनी और कुरूप थी, वो ये कि नवाज़ुद्दीन की किसी फिल्म में एक इंटिमेट सीन को तीन अलग अलग एक्ट्रेसेज के साथ फिल्माया गया था. इस बारे में नवाज़ुद्दीन ने कहा कि कम से कम उन्होंने तीन हीरोइनों के मज़े तो ले लिए.

ठीक इसी तरह नेहा धूपिया के शो नो फिल्टर नेहा में विकी कौशल ने इंटिमेट सीन के बारे में बताते हुए कहा कि डायरेक्टर बोलते हैं- विकी, चढ़ जा. हालांकि विकी कौशल इस बात को बोलते हुए हंसते हैं, पर चित्रांगदा सिंह ऐसी बात होने पर डिस्टर्ब हो गई थीं और उन्हें फिल्म छोड़नी पड़ी थी. नवाजुद्दीन के साथ बाबू मोशाय बंदूकबाज फिल्म की शूटिंग के दौरान का वाकया चित्रांगदा कुछ ऐसे बताती हैं- सेट पर वो साड़ी के नीचे सिर्फ पेटीकोट पहने खड़ी थीं. डायरेक्टर कुषाण नंदी ने कहा कि साड़ी उतारो और हीरो के ऊपर आकर खुद को रगड़ो. चित्रांगदा असहज हो गईं और ऐसा करने से मना कर दिया. डायरेक्टर नाराज हो गये और चित्रांगदा को फिल्म छोड़नी पड़ी.

ये लाइन ही बॉलीवुड में न्यूड और सेक्स सीन के जाल के बारे में सच बता देती है. स्क्रिप्ट की मांग पर फिल्माए सीन अभिनेत्रियों के शोषण का माहौल तैयार करते हैं.

ऐसी ही बातें पहले से आती रही हैं. हालांकि इन अभिनेत्रियों ने कभी खुलकर इस बात पर चर्चा नहीं की. कहा जाता है कि जया प्रदा को एक बार दलीप ताहिल को थप्पड़ मारना पड़ा क्योंकि एक सीन के दौरान अपनी हदें पार करने लगे थे. इस थप्पड़ को मारने का उद्देश्य दलीप को रील और रियल लाइफ का फर्क बताना था.

क्या कहते हैं भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले?

इस मुद्दे पर बॉलीवुड अभिनेत्री एकावली खन्ना का कहना है कि ऐसे सीन शूट करते समय डायरेक्टर का अहम रोल होता है. सबसे पहले तो उसे फिल्म में ऐसा किरदार निभा रही अभिनेत्री को ऐसे सीन के बारे में साफ़-साफ बता देना चाहिए. उनका मानना है कि कई बार कहानी में ऐसे सीन आवश्यक होते हैं, लेकिन कई बार ऐसे सीन इसलिए आवश्यक बना दिए जाते हैं ताकि हिट हो सकें. अपनी फिल्म ज़ेड प्लस की शूटिंग के दौरान का एक किस्सा याद करते हुए एकावली ने बताया कि किस तरह एक किसिंग सीन को फिल्माए जाने के दौरान उनके को-एक्टर और उनके डायरेक्टर ने उन्हें सहज महसूस कराया.

इस बात को एकावली ने भी स्वीकारा कि ऐसे सीन किसी भी एक्टर या एक्ट्रेस के लिए मेंटल और इमोशनल, दोनों ही तरह से असहज करने वाले होते हैं.

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अभी थोड़े दिन पहले ही आदिल हुसैन और एकावली अभिनीत फिल्म What will people say नेटफिल्क्स पर रिलीज़ हुई थी. सोलह साल की निशा की ज़िंदगी को केंद्र में रखकर बनी यह फिल्म लड़कियों की सेक्सुअलिटी और उनकी आज़ादी की पैरवी करती है.

क्या है आगे का रास्ता?

हो सकता है ये सीन आपको शारीरिक रूप से नुकसान ना पहुंचाए लेकिन ये आपके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होते हैं. वैसे तो सामान्य जनता पर इन दृश्यों के नकारात्मक प्रभाव की वजह से ऐसे दृश्य फिल्मों या वेब सीरीज में होने ही नहीं चाहिए. पर वर्तमान में फिल्मों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखते हुए ऐसा हो पाना मुश्किल ही है. हालांकि भारत के सेंसर बोर्ड ने अमेजॉन प्राइम और नेटफ्लिक्स पर ऐसे दृश्यों को लेकर कड़ाई बरतने की संभावना जताई है, पर इसकी आलोचना भी होगी.

ऐसे में हम विदेशों से सीख सकते हैं. विदेशों में इंटिमेसी डायरेक्टर्स के ग्रुप बन रहे हैं जो एक्टर्स को सिखाते हैं कि कैसे अपने दायरे में रहकर कहानी को आगे बढ़ाना है. कैसे दूसरे इंसान की बाउंड्री नहीं लांघनी है. न्यूडिटी या शारीरिक टच करने वाले सीन में ऐसे डायरेक्टर्स की ज़रूरत पड़ती है. ये प्रोफेशनल होते हैं. ऐसे में उद्देश्य रहता है कि परफॉर्म कर रहे व्यक्ति का इस चीज़ की वजह से कोई भी मानसिक नुकसान न हो.

न्यूयॉर्क के क्लेरा वार्डन का कहना है कि जब हीरो को गिराते हुए सीन की शूटिंग की जाती है तो नीचे मैट बिछा दिया जाता है ताकि चोट न लगे, तो सेक्स दृश्यों को भी बेहतर कोरियोग्राफ किया जा सकता है ताकि किसी का भावनात्मक या शारीरिक शोषण ना हो.

जरूरी नहीं है कि फिल्मों में काम करनेवाले लोग टच, सेक्सुअल एब्यूज इत्यादि चीजों की बाउंड्री से परिचित हों. हो सकता है कि वो सिर्फ अपने काम में लगे रहे हों और इस बारे में कुछ ना जानते हों. ऐसे में बॉलीवुड में भी इंटिमेसी डायरेक्टर्स की जरूरत है या फिर ऐसी ही कुछ चीजों की जो सेट पर अभिनेत्रियों के शोषण को रोक सके.

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