अब से फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या हो गया. नाम बदलने के दौर में यह सबसे नई कड़ी है. इससे पहले उत्तर प्रदेश में ऐसी ही एक बयार मायावती के समय में चली थी. तब भी कई नाम बदले गए थे. वैसे उस दौर के बदले नाम आज भी कासगंज, खलीलाबाद और ऐटा ही हैं, आम बोलचाल में शाहूजीनगर, संत कबीर नगर वगैरह न हुए. नाम बदलने के पीछे की राजनीति को अलग रखते हैं और नाम बदलने के बहाने मिटने और मिटाने के समाजशास्त्र और इतिहास पर हल्के-फुल्के ढंग से बात करते हैं.
दुनिया में हर चीज का एक नाम होता है. नाम मतलब संज्ञा होता है और हमारे यहां इंसान अगर होश-ओ-हवास में न हो तो उसे संज्ञा शून्य कहते हैं. यह संज्ञा भी बड़ी अजीब है. मेरी समझ में गौतम बुद्ध नाम बदलने वाले सबसे शुरुआती प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक हैं. अब उनकी संज्ञा बुद्धिमति हुई तो वो भी बुद्ध हो गए. किसी ने यूं ही मजाक में कहा कि बुद्ध जब हंसते हैं तो लाफिंग बुद्धा हो जाते हैं अगर सख्तजान हो जाएंगे तो क्या गौतम गंभीर कहलाएंगे. खैर मजाक से अलग हटिए तो किसी भी शब्द को बदलना किसी इंसान या सत्ता के हाथ में नहीं है. यह लोग ही तय करते हैं और कैसे तय करते हैं वो भाषा विज्ञान का क्रमिक विकास है. जैसे नम्र संस्कृतनिष्ठ है और नरम खालिस उर्दू-दां, हालांकि दोनों अलग-अलग संदर्भ में एक ही तरह के अर्थ में इस्तेमाल होते हैं. इसी तरह से दूर जैसे शब्द हैं जो दूरस्थ बनकर संस्कृत में पहुंच जाते हैं और दूर जाने में उर्दू हो जाते हैं. अंग्रेजी का नीयर तुलसी दास के समय में अवधी में 'ऋष्यमूक पवर्त नियर आई' में कैसे मौजूद था, बताना कम लोगों के बस का है.
प्राण विलेन के रूप में मशहूर हुए तो देश में बच्चों के नाम प्राण नहीं रखे गए
अब कर्म आसान होकर करम हो गया मगर चर्म आसानी से चरम बनने की जगह चमड़ा बन गया. प्राण विलेन के तौर पर मशहूर हुए तो हिंदुस्तान में अचानक से प्राण नाम के बच्चे पैदा होना बंद हो गए. यकीन मानिए कि अगली कुछ पीढ़ियों में न शीला मिलेंगी न मुन्नी. इसी तरह इंटरनेट पर तलाशने से डॉक्टर मोदी सरकार भी मिल जाते हैं. बिना शक यह कह सकते हैं कि उन्हें भी 2014 का साल ताउम्र याद रहेगा.
अब जब बात अयोध्या के नाम से चली है तो सबसे पहले अयोध्या के बारे में कुछ अंतर्राष्ट्रीय बातें करते हैं. यूनेस्को के मुताबिक ऐतिहासिक शहर अयुथ्या थाइलैंड में है. अगर आप The को 'द' या 'थे' दोनों तरह से पढ़े जाने की संभावनाओं को समझ लें तो 1350 के इस शहर के नाम से जुड़ी कई और बातों के तार जुड़ जाते हैं. मसलन थाइलैंड का महाकाव्य रामकियन है. रामकियन का अर्थ होता है राम की कीर्ति. उसके नायक राम हैं, नायिका सीदा (सीता) हैं मगर बाकी दो भाइयों का कोई वर्णन नहीं है. राम लोंग्का पर हमला करते हैं. सीता को धोबी के कहने पर नहीं किसी और कारण से वन में भेजा जाता है. सीदा (सीता) जमीन में जाती हैं लेकिन उन्हें वापस भी ले आया जाता है. क्या कभी ऐसा होगा कि कौन सी अयोध्या पुरानी अयोध्या है इसका दावा यूएन में किया जाएगा.
अब आप कहेंगे कि यह सारी बातें भारत से थाईलैंड में गईं. लेकिन इतिहास का एक तथ्य यह भी है कि 1350 के आस-पास स्थापित इस शहर के मुगलकाल में भारत से संबंध थे. उस काल में वहां से राजदूत भारत आए और रहे. तब न किसी को समस्या हुई न किसी तरह के बदलाव हुए. हां, वक्त के साथ साकेत अवध भी बना और अयोध्या भी. अब अवध तो वाजिद अलीशाह का अवध भी है और होली खेलने वाले रघुबीर का भी है. इन्हीं सबके बीच गणेशगंज, जहांगीरपुरी, रॉबर्ट्सगंज, मंगोलपुरी जैसे नाम भी पड़े जिनका होना सिर्फ भारत में ही संभव है.
भाषाएं अपना रास्ता खुद तय करती हैं, उन्हें जबरन बदला नहीं जा सकता
भाषाएं अपना रास्ता खुद तय करती हैं. शब्दों के अर्थ पहले क्या थे. इतिहास में उनकी संज्ञा क्या थी इसे जबरन नहीं बदला जा सकता. कई बार ऐसे में चाहे-अनचाहे अनर्थ भी हो जाता है. उदाहरण के लिए हिंदी में विजयदशमी है. बांग्ला में विजॉया है. दोनों को मिलाकर अंग्रेजी के ढंग में विजयादशमी हो गया. जबकि विजयादशमी का अर्थ भांग की दशमी हुआ. नाम बदलने की परंपरा अगर चरम पर पहुंच जाए तो कई अजीब स्थितियां बन सकती हैं. 'द डिक्टेटर' नाम की वयस्क कॉमेडी में इसे बहुत मजाकिया ढंग से दिखाया गया है. फिल्म का नायक अलादीन एक सनकी जनरल है जो आदेश देता है कि हर जरूरी चीज का नाम उसके नाम पर कर दिया जाए. अब इसके बाद डॉक्टर मरीज को बताता है कि तुम एचआईवी अलादीन हो. क्योंकि पॉजिटिव और निगेटिव दोनों ही जरूरी शब्द हैं और दोनों को बदलकर अलादीन कर दिया गया. परेशान मरीज को समझ नहीं आता है कि वो क्या करे, हंसे या रोए.
खैर, यह तो एक फिल्म की बात है जहां नायक सनकी जनरल है, लोकतंत्र में शायद इस तरह से चरम पर जाकर नहीं बदले जाते. जाते-जाते वो गाना थोड़ा बदलकर गुनगुना लीजिए... 'नाम गुम जाएगा, थोड़ा सा बदल जाएगा.'
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