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इब्ने सफी: खटक रहा था जिसके दिल में एक गुलाब का जख्म

इमेजिनेशन और क्रिएटिविटी की मिलीभगत से सैफी ने अल्बोंसे, डॉ. दोयेगो, डॉ. नारंग, हकीम आर्सेलानोस, गेराल्ड शास्त्री और थ्रेसिया जैसे कई खतरनाक किरदारों को जीवंत कर दिया था.

Updated On: Jul 26, 2018 01:03 PM IST

Rituraj Tripathi Rituraj Tripathi

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इब्ने सफी: खटक रहा था जिसके दिल में एक गुलाब का जख्म

'मैं संगसार जो होता तो फिर भी खुश रहता, खटक रहा है मगर दिल में इक गुलाब का जख्म.' प्रसिद्ध लेखक इब्ने सफी का ये शेर जब दिल में धड़कता है, तो लगता है कि मोहब्बत के ताजमहल पर किसी ने फुरसत से दर्द को उकेरा हो. सफी की गजलों में दर्द का सिलसिला ऐसे ही नहीं ठहरता बल्कि उन्होंने जख्मों की बड़ी गहराई से परख की है. एक गजल को सजाकर उन्होंने लिखा था, 'जमीं की कोख ही जख्मी नहीं अंधेरों से, है आसमां के भी सीने पर आफताब का जख्म.'

इब्ने सफी का असली नाम असरार अहमद था. 26 जुलाई, 1928 को इलाहाबाद के नारा कस्बे में उनका जन्म हुआ था. असरार अपना पूरा नाम 'इब्ने सफी बीए' लिखा करते थे. इसके पीछे का वाकया भी बड़ा दिलचस्प है. दरअसल उस वक्त बीए पास करना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी और असरार ने आगरा विश्वविद्यालय से बीए किया था. इसलिए वह अपने नाम के बाद 'बीए' जरूर लगाया करते थे.

बहुत कम ऐसे हिंदुस्तानी लेखक हुए हैं जिन्होंने जासूसी साहित्य की दुनिया में अपना परचम लहराया हो. इब्ने सफी उसी कड़ी के लेखक थे. उनकी कहानियां पढ़कर पाठकों के रोंगटे खड़े हो जाते थे. सफी हर महीने एक उपन्यास लिखा करते थे. 1952 में प्रकाशित हुआ 'दिलेर मुजरिम' उनका पहला उपन्यास था. 1952 से 1979 तक सफी ने 126 उपन्यास लिखे जो कि कहानियों के लिए उनकी मोहब्बत को जगजाहिर करता है. उस दौर में लिखे उनके जासूसी उपन्यासों ने तहलका मचा दिया था.

अपने शुरुआती दिनों में इलाहाबाद से निकलने वाली उर्दू पत्रिका 'निकहत' के लिए उन्होंने खूब लिखा. 'असरार नारवी', 'सनकी सोल्जर' और 'तुगरल फुरगान' नाम से सैफी ने अपनी भाषा शैली को एक नया अंजाम दिया. लेकिन बाद में वह पाकिस्तान चले गए और वहीं लिखने लगे. हालांकि उन्होंने 'निकहत पब्लिकेशन' से बेवफाई नहीं की और पाकिस्तान जाने के बाद भी उनका अनुबंध बना रहा. उनके इस कदम का हिंदुस्तान के पाठकों को खूब फायदा हुआ और वह सफी के साहित्य को पढ़कर लगातार उनके मुरीद होते रहे.

उपन्यास खरीदने के लिए दुकानों के बाहर लगती थी कतार

Ibne Safi

पाकिस्तान जाने के बाद सफी ने अपनी कहानियों के किरदारों के साथ कई प्रयोग किए. कर्नल फरीद हिंदी में कर्नल विनोद हो गए और इमरान की जगह राजेश ने ले ली हालांकि कैप्टन हमीद हिंदी में भी हमीद ही रहे. 'जासूसी दुनिया' और 'इमरान सीरीज' ने उन्हें दुनिया के सबसे बेहतरीन जासूसी उपन्यास लेखकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया. उनकी कहानियां जबरदस्त रोमांच और रहस्यों से भरी होती थीं जिसमें भरपूर मात्रा में रोमांस और कॉमेडी का तड़का भी लगा होता था.

अंग्रेजी के जासूसी उपन्यासों की मशहूर लेखिका अगाथा क्रिस्टी ने सफी का जिक्र करते हुए कहा था कि इस दुनिया में एक और लेखक है जो किताबों की बिक्री के मामले में उनसे कहीं भी उन्नीस नहीं है और ये उपन्यासकार इब्ने सफी ही थे. सफी की लोकप्रियता का आलम यह था कि दुकानों पर उनका उपन्यास खरीदने के लिए लोग सुबह से लाइन लगाकर खड़े हो जाया करते थे. उनके साहित्य की खासियत यह होती थी कि वह आखिर में अपने पाठक के लिए एक संदेश छोड़ जाते थे.

सफी की कहानियों के खलनायक बहुत खतरनाक होते थे. इमेजिनेशन और क्रिएटिविटी की मिलीभगत से उन्होंने अल्बोंसे, डॉ. दोयेगो, डॉ. नारंग, हकीम आर्सेलानोस, गेराल्ड शास्त्री और थ्रेसिया जैसे कई खतरनाक किरदारों को जीवंत कर दिया था. दिलचस्प यह है कि उनकी कहानियों के ये किरदार शुरुआत में पाठकों के दिल में जगह बनाते थे, ये सभी जितना जीनियस थे उतने ही धोखेबाज भी थे. जब तक पाठक को इन किरदारों के खौफनाक चेहरे के बारे में पता लगता था, तब तक वह अपना दिल दे चुका होता था.

सफी की कहानियों की एक और खासियत यह थी कि वह हर पाठक के दिल में अमिट छाप छोड़ जाते थे. सफी केवल जासूसी साहित्य के ही लेखक नहीं थे, वह हास्य व्यंग्य के माहिर खिलाड़ी थे और एक बेहतरीन शायर थे. अपनी फनकारी से दुनिया के दिल में जगह बनाने वाले इब्ने सफी 26 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे. उनके जीवन की खासियत यह है कि दुनिया उनका जन्मदिन और पुण्यतिथि एक ही दिन मनाती है. आखिर में उनकी गजल का एक शेर-

लिखने को लिख रहे हैं गजब की कहानियां, लिखी न जा सकी मगर अपनी ही दास्तां...

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