गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय।।
गुरु की महत्ता के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है. पुराने जमाने के गुरुओं और उस्तादों की जगह आज शिक्षकों ने ले ली है. एक वक्त था कि जब तक किसी विषय के उस्ताद या गुरु की शागिर्दी या शिष्यता न मिले तब तक किसी को उस खास विषय में पारंगत नहीं माना जाता था. तब गुरु या उस्ताद सिर्फ विषय संबंधी ही ज्ञान नहीं दिया करते थे, बल्कि जीवन कैसे जीना है यह भी सिखाते थे.
5 सितंबर को भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है. हालांकि कई लोगों को इससे आपत्ति है और ऐसे लोगों की मांग है कि देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन यानी 3 जनवरी को शिक्षक दिवस मनाया जाए. बहरहाल इस लेख का उद्देश्य इस मुद्दे पर बहस करना नहीं है.
ज्ञान और जीवन दृष्टि देने का जो काम पहले के गुरु किया करते थे, वह आज के शिक्षकों में काफी कम ही मिलता है. फिर हमारे और आपके जीवन में आने वाले ऐसे कई शिक्षक होंगे जिन्होंने हमारे जीवन को एक नई दिशा दी है. माता-पिता और परिजनों के अलावे ऐसे शिक्षकों का हमारी उन्नति में अहम रोल होता है.
बचपन से ही मुझे ऐसे कई शिक्षकों का सान्निध्य मिलता रहा है. स्कूल के समय में मुझे पढ़ाने वाले कई शिक्षकों ने समय-समय पर मेरी हौसला आफजाई की थी. लेकिन मेरे जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरे पास काफी कम विकल्प थे. अपने बड़े भैया के साथ यूपीएससी की तैयारी के लिए मैं हिंदी पढ़ने वाराणसी गया था. हमें वहां डॉ. कमलेश वर्मा ने हिंदी पढ़ाई. डॉ. कमलेश वर्मा जेएनयू से पीएचडी हैं और सेवापुरी के पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय महिला महाविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं.
अगर सच कहूं तो इनसे मिलने और हिंदी पढ़ने से पहले मैं इस विषय को काफी आसान समझता था और यह मानता था कि इस विषय की पढ़ाई के लिए किसी शिक्षक की जरूरत नहीं. लेकिन कमलेश सर के पढ़ाने के तरीके से हिंदी विषय की गहराई के बारे में पता चला और विषय में रुचि भी पैदा हुई. इनकी सलाह पर ही मैंने जेएनयू का फॉर्म भरा और इनके द्वारा पढ़ाई गई बातों से प्रवेश परीक्षा के सवालों को हल करने में काफी मदद मिली और जेएनयू में एमए हिंदी में मेरा सेलेक्शन हुआ.
बचपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं किसी प्रतिष्ठित कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढूं लेकिन बीए पास करते-करते यह इच्छा मंद हो गई थी. यह इच्छा तब तक अधिकारी बनने की इच्छा में तब्दील होने लगी थी. कमलेश सर सिर्फ शिक्षक ही नहीं थे बल्कि हमारे लिए एक अभिभावक भी थे. इन्होंने ही मुझे यह सलाह दी कि एक अच्छे संस्थान में पढ़ना जीवनभर काम देता है. इनकी इस सलाह को मानकर ही मैंने जेएनयू की परीक्षा दी और उसमें मुझे सफलता मिली. इसके बाद ही जेएनयू के शिक्षकों और वातावरण से परिचय हुआ, जिनसे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. मैं एक ऐसी दुनिया के करीब आया जिससे अब तक मैं अपरिचित था.
जेएनयू में एमए के दौरान यूं तो सभी शिक्षकों ने कुछ न कुछ सिखाया पर वीर भारत तलवार की क्लासों से हिंदी भाषा से जुड़ी बहसों और उपन्यासों को मैंने आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ना सीखा. एमफिल और पीएचडी के दौरान प्रो. रामबक्ष से काफी कुछ सीखने को मिला. मेरे एमफिल और पीएचडी के विषयों का चयन उन्होंने ने ही किया था.
मुझसे राजनीतिक रूप से असहमत होते हुए भी प्रो. रामबक्ष ने मुझे कभी छात्र राजनीति करने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से नहीं रोका. बल्कि कई बार वे मुझसे सकारात्मक बहस भी किया करते थे. साहित्यिक विषय के अतिरिक्त राजनीति आज भी हमारी बातचीत का हिस्सा हुआ करती है. यह एक सुखद संयोग है कि उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस से एक दिन पहले हुआ करता है.
एमए के दौरान हजारीप्रसाद द्विवेदी के उपन्यास ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ में पढ़ा था- ‘किसी से मत डरो, गुरु से भी नहीं.’ मुझे मेरे गुरुओं ने अब तक यही सिखाया है.
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