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जन्मदिन विशेष: 'देश में इंजीनियर तो एक करोड़ हो सकते हैं लेकिन शंकर महादेवन एक ही होगा'

आइटम सॉन्ग को लेकर शंकर महादेवन का काम बिल्कुल अलग है. उनके आइटम सॉन्ग में भी एक तरह का अलग ताप होता है

Updated On: Mar 05, 2019 11:45 AM IST

Shivendra Kumar Singh Shivendra Kumar Singh

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जन्मदिन विशेष: 'देश में इंजीनियर तो एक करोड़ हो सकते हैं लेकिन शंकर महादेवन एक ही होगा'

1970 के आस-पास की बात है. मुंबई में रहने वाले एक दक्षिण भारतीय परिवार का एक छोटा बच्चा अपने रिश्तेदार के यहां गया था. वो उसके मामा का घर था. बच्चे ने घर के एक कोने में हारमोनियम देखा. कोने में रखे हारमोनियम ने बच्चे को ऐसा आकर्षित किया कि वो उसे बजाने की कोशिश करने लगा. वो कोशिश ही अपने आप में इतनी खूबसूरत थी कि बच्चे के पिता ने जल्दी ही उसके लिए हारमोनियम खरीद दिया. एक बार अपना हारमोनियम हो गया तो हाथ और जल्दी खुल गए. ऊंगलियां और तेज चलने लगीं.

छह साल की उम्र के आस-पास पहुंचे तो अच्छा खासा हारमोनियम बजाने लगे. घरवालों को समझ आ गया कि अब इस बच्चे की मंजिल संगीत ही है. उन्होंने भी इस मंजिल तक पहुंचने के लिए उड़ान के रास्ते खोल दिए. उसी छोटे से बच्चे को आज दुनिया शंकर महादेवन के नाम से जानती है. जिनका आज जन्मदिन है. हारमोनियम के बाद शंकर महादेवन को जिस इंस्ट्रूमेंट ने आकर्षित किया वो थी वीणा. वीणा की तरफ आकर्षित होने का मतलब ही था कि शंकर को परंपरागत तरीके से संगीत सीखना था. जो उन्होंने सीखा भी.

अपने बचपन की संगीत शिक्षा को लेकर शंकर महादेवन बताते हैं 'ये ऊपर वाले की दया थी कि मुझे ऐसे गुरू जी मिले, जिन्होंने मुझे संगीत के सारे पहलुओं को अच्छी तरह सिखाया. मैंने टीआर बालामनी जी से कर्नाटक संगीत सीखा और मराठी भावगीत मुझे श्रीनिवास खाले जी ने सिखाया. मुझे याद है कि मेरे गुरू जी कहते थे कि संगीत सीखते वक्त 3-4 बच्चों का एक साथ होना बहुत जरूरी है, क्योंकि जब आप अकेले संगीत सीखते हैं तो आपके पास कोई ‘रिफ्रेंस प्वाइंट’ नहीं होता है. आपको पता ही नहीं चलता कि आप कितने अच्छे या बुरे हैं. लेकिन जब आप अपने साथ सीखने वाले को भी देखते हैं तो कई बार इस बात का पता चलता है कि वो आपसे कितना बेहतर सीख रहा है. फिर आपके सामने एक लक्ष्य होता है कि मुझे इसके करीब पहुंचना है. वो बचपन की सही शिक्षा का ही असर है कि संगीत के संस्कार को लेकर मैं हमेशा सही रास्ते पर चला.'

कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग

संगीत की पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ शंकर ने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है. उनके करियर का ये किस्सा बहुत मशहूर है कि उन्हें अमेरिका में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई थी. जिसके बाद उनकी जिंदगी बिल्कुल ढर्रे पर आ जाती लेकिन उन्होंने बहुत सोचने समझने के बाद अमेरिका जाने की बजाए संगीत में करियर बनाने का कठिन फैसला किया. उस रोज भी उनके उस कठिन फैसले के साथ घरवाले साथ थे. शंकर बताते हैं 'मेरे घरवाले और करीबी कहते थे कि एक करोड़ इंजीनियर हो सकते हैं लेकिन शायद शंकर महादेवन कोई एक ही होगा.'

शंकर ने अपने दिल की सुनी तो रास्ते अपने आप खुलते चले गए. शंकर खुद भी मानते हैं कि उन्हें किसी तरह का संघर्ष नहीं करना पड़ा. 1998 में उनकी पहली एल्बम आई ‘ब्रेथलेस’, जो पूरी दुनिया में हिट हो गई. 1998 से पहले ही शंकर, एहसान और लॉय की जोड़ी भी बन चुकी थी. उस समय तीनों एक बैंड के तौर पर कार्यक्रम करते थे. इसके बाद डायरेक्टर मुकुल आनंद ने बहुत समझा बुझाकर इस तिकड़ी को फिल्मी संगीत की तरफ खींचा. वो फिल्म तो रिलीज नहीं हुई लेकिन इनका तैयार किया गया वो गाना आज भी लोगों की जुबान पर रहता है. वो गाना था- 'सुनो गौर से दुनिया वालों बुरी नजर ना हम पर डालो, चाहे जितना जोर लगा लो...सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी.'

तिकड़ी में काम करने का अनुभव

अपनी तिकड़ी में काम करने के अनुभव के बारे में शंकर बताते हैं 'संगीत बनाने की प्रक्रिया के दौरान एक कलाकार के तौर पर मेरे एहसान और लॉय में बहुत झगड़ा होता है. किसी गाने को लेकर हम तीनों को अलग-अलग आइडिया आता है, बहस चलती रहती है. कई बार गाना हिट होने के बाद भी ‘डिसएग्रीमेंट’ चलता रहता है. हम लोग डायरेक्टर से भी झगड़ा कर लेते हैं. मुझे याद है कि फिल्म 'तारे जमीं पर' के ‘क्लाइमैक्स’ गाने को लेकर भी ऐसा हुआ था. आमिर को वो गाना पसंद नहीं आ रहा था. हमने कई बार बात की, आखिर में जब आमिर ने उस गाने को क्लाइमैक्स पर रखा तब वो भी हमारी बात से सहमत हो गए.

ये एक ‘प्रोसेस’ है. हमारी कामयाबी का राज भी यही है. चूंकि हम संगीत बनाने के साथ-साथ पब्लिक के बीच लगातार परफॉर्म भी करते हैं. इसलिए हमारे लिए पब्लिक के टेस्ट को समझना थोड़ा आसान रहता है. तारे जमीं पर का ही ‘मैं कभी बतलाता नहीं मां’ वाला गाना सिर्फ ‘रिफ्रेंस’ के लिए हमने रिकॉर्ड किया था. लेकिन आमिर खान को वो गाना इतना पसंद आ गया कि वो उस ‘रफ’ गाने को भी हटाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे. वो चाहते थे कि ‘रफ’ गाना ही फिल्म में जाए. हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें तैयार किया कि अगर वो गाना चाहते ही हैं तो उसे कम से कम प्रोफेशनली रिकॉर्ड तो करने दें.'

आइटम सॉन्ग को लेकर शंकर महादेवन का काम बिल्कुल अलग है. उनके आइटम सॉन्ग में भी एक तरह का अलग ताप होता है. ‘कजरारे कजरारे तेरे कारे कारे नैना’ इसी बात का सबूत है. शंकर महादेवन इस गाने से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं 'एक दिन सुबह सुबह आठ बजे पंडित जसराज जी का फोन आया बोले ये क्या गा दिया, मुझे लगा कि कोई बड़ी गलती हो गई. मैं कुछ बोलूं, उससे पहले पंडित जी ने कहा कि सुबह से ‘कजरारे कजरारे’ ही गुनगुना रहा हूं. दिमाग से उतर ही नहीं रहा है. इससे बड़ा ‘कॉम्पलीमेंट’ मेरे लिए क्या हो सकता है.'

इस बात में कोई शक नहीं कि आज के बेहद शोर भरे संगीत में शंकर महादेवन वो संगीत तैयार करते हैं जिसकी तारीफ करने वालों में उस्ताद जाकिर हुसैन, उस्ताद अमजद अली खान, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, पंडित जसराज, पंडित शिव कुमार शर्मा भी शामिल हैं. स्वर्गीय किशोरी अमोनकर जैसी दिग्गज कलाकार ने शंकर महादेवन को अपने घर बुलाकर ‘मां’ गाने को कहा था.

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