live
S M L

जन्मदिन विशेष: जिम कॉर्बेट ने दिलाई थी 500 जानें लेने वाली नरभक्षी से मुक्ति

वो हमेशा कहते थे कि कोई भी बाघ या तेंदुआ खुद से आदमखोर नहीं बनता.

Updated On: Jul 25, 2018 08:27 AM IST

Subhesh Sharma

0
जन्मदिन विशेष: जिम कॉर्बेट ने दिलाई थी 500 जानें लेने वाली नरभक्षी से मुक्ति

19वीं सदी का माहौल नेपाल और भारत के उत्तराखंड के कुमाऊं के लोगों के लिए बड़ा खौफनाक था. लोग अपने घरों से निकलने में डरते थे. जंगलों में लकड़ियां काटने जाने में डरते थे. हर एक तरफ माहौल दहशत का था.

कुछ लोग तो ये तक मानने लगे थे कि चंपावत गांव पर किसी 'चुड़ैल' का साया पड़ गया है, जो लोगों के खून की प्यासी है. लेकिन लोगों की जान का दुश्मन कोई भूत नहीं बल्कि एक टाइगर था, जिसने 436 लोगों को मौत के घाट उतारा था. हालांकि कहा जाता है कि ये आंकड़ा करीब 500 था. लेकिन मशहूर शिकारी और बाद में बाघों के सबसे बड़े संरक्षक बने जिम कॉर्बेट ने इस बाघिन को मार कर हजारों लोगों को नई जिंदगी दी.

प्रतिकात्मक तस्वीर

प्रतिकात्मक तस्वीर

19वीं सदी के दौर में राज इंसानों का नहीं बल्कि जानवरों का होता था. जंगलों में जानवर ज्यादा और इंसान कम हुआ करते थे. उत्तराखंड के जंगलों में बड़ी बिल्लियों का पीछा करते जिम कॉर्बेट लोगों के मसीहा थे. कॉर्बेट ने अपनी किताब 'मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं' में कई खौफनाक मुठभेड़ों का जिक्र किया है.

उन्होंने किताब में बताया है कि कैसे वो जंगल में अपने कुत्ते रॉबिन के साथ आदमखोर बाघों और तेंदुओं का पीछा किया करते थे. कई बार एनकाउंटर इतने खतरनाक हो जाते थे कि बात कॉर्बेट और रॉबिन की जान पर आ पड़ती थी.

नेपाल से आई थी भारत में मुसीबत

लोगों को मारे जाने का ये किस्सा नेपाल के हिमालयी पहाड़ियों से शुरू हुआ था. बेहद शातिर और चालाक चंपावत की मैन ईटर को पकड़ पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी. जब बड़े से बड़े शिकारी फेल हो गए थे, तो नेपाल की आर्मी ने ये मिशन हाथ में लिया.

आर्मी भी इस बाघिन को मार गिराने में नाकाम रही, लेकिन इसने ये मुसीबत नेपाल से भारत को ओर खदेड़ दी. ये इतिहास में पहला मौका था जब किसी मैन ईटर को मारने के लिए आर्मी को बुलाया गया हो.

नेपाल में करीब 200 लोगों का शिकार किया और जंगलों की घनी झाड़ियों में ले जाकर मजे से इंसानी मांस का लुत्फ उठाया. आतंक का माहौल इस चरम पर था कि लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया.

दिन की रोशनी में होने लगा शिकार

जब ये मुसीबत भारत आई तब तक इंसानों का डर इसके दिल में पूरी तरह से खत्म हो चुका था. बाघिन इतनी खौफनाक हो चुकी थी कि वो शाम और रात के वक्त कम रोशनी होने का इंतजार किए बिना, दिन की रोशनी में ही लोगों को अपना निवाला बनाने लगी. लेकिन दिन की रोशनी में भी इस बाघिन को पकड़ पाना आसान नहीं था.

खुद जिम कॉर्बेट को इसका शिकार करने में काफी समय लग गया था. बाघिन लुक्का-छुप्पी का खेल खेलने में माहिर हो चुकी थी और बार-बार कॉर्बेट को ये समझाती थी कि 'तू डाल-डाल तो मैं पात-पात'. बाघिन एक इलाके में शिकार नहीं करती थी. कभी शिकार किसी गांव में तो कभी उस गांव से 10 गांव दूर किसी मासूम को अपना शिकार बनाती थी.

photo source: asif khan

photo source: asif khan

आंकड़ों के मुताबिक बाघिन ने नेपाल में 200 और भारत में करीब 236 लोगों का अपना शिकार बनाया था. लेकिन कहा जाता है इसने कम से कम 500 लोगों की जान ली थी. इस मैन ईटर को रोकने का जिम्मा भारत में भी कई बड़े शिकारियों ने उठाया, लेकिन इस शिकारी को पकड़ने के लिए जंगलों और मैन ईटर ऑफ चंपावत के शिकार करने के ढंग को समझना बेहद जरूरी थी.

कॉर्बेट के अलावा शायद ही किसी शिकारी में ये समझ थी. कहते हैं जिम कॉर्बेट अपनी राइफल के साथ पैदल ही कुमाऊं के जंगलों में घूमते थे और उन्होंने कई रातें इस जंगल में अकेले बिताई थी. ऐसे में टाइगर के बारे में उनसे ज्यादा शायद ही किसी को समझ होगी.

आखिर कैसे मारी गई चंपावत की मैन ईटर

चंपावत की आदमखोर को पकड़ने के लिए जिम कॉर्बेट ने कई प्लान बनाए. लेकिन हर बार वो उन्हें इस बात का एहसास कराती थी कि ये जंगल उसका है और यहां उसी का राज चलता है. चंपावत की इस 'चुड़ैल' का आखिरी शिकार 16 साल की एक लड़की बनीं थी, जोकि दिन के समय अपने गांव के पास जंगल में लकड़ियां इकट्ठा करने गई थी. जैसे ही बाघिन के हमले की खबर फैली कॉर्बेट मौके पर पहुंचे और उन्होंने खून के धब्बों का पीछा किया.

बाघिन अपने शिकार को जंगल में काफी अंदर ले गई थी और कॉर्बेट लाश के घसीटे जाने के निशानों का पीछा करते-करते बाघिन के करीब पहुंचे. लेकिन रात घिर जाने के कारण कॉर्बेट ने बाघिन की मांद के पास ही रुकने का फैसला किया और अगली सुबह बाघिन को गोली मार कर, सभी को राहत की सांस दी.

क्या कहता था बाघों का सबसे बड़ा शिकारी

जिम कॉर्बेट ने अपनी जीवन में कई किताबें लिखीं, जिनमें मैन ईटर टाइगर और लेपर्ड के साथ मुठभेड़ के उनके ढ़ेरों किस्से हैं. 1907 से 1938 के बीच उन्होंने करीब 33 मैनइटर्स को मौत के घाट उतारा था. लेकिन जब भी जिम किसी टाइगर या लेपर्ड को गोली मारते थे, अंदर से वो उतने ही दुखी होते थे.

वो ये बात भली भांति समझते थे कि जिस दिन भारत के जंगलों से बाघ खत्म हो जाएंगे. उस दिन भारत के जंगल भी खत्म हो जाएंगे. वो हमेशा कहते थे कि कोई भी बाघ या तेंदुआ खुद से आदमखोर नहीं बनता. ऐसा शायद ही होता हो, जब कोई जानवर खुद से नरभक्षी बनता हो.

Jim Corbett Forest

जिम कॉर्बेट पार्क का एक दृश्य (फोटो: फेसबुक से साभार)

उनकी बुक 'मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं' में उन्होंने अपने जितने किस्से बताएं हैं, उन सभी में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि टाइगर या लेपर्ड तभी इंसानों की जान लेने पर मजबूर होते हैं जब वो अपने कुदरती शिकार को मार पाने में सक्षम नहीं होते. चंपावत की बाघिन के साथ भी ऐसा ही था.

उसके दाईं तरफ के ऊपर और नीचे दोनों ही कैनाइन दांत टूट चुके थे. जिस कारण वो हिरण, वाइल्ड बोर (जंगली सुअर), सांभर आदि का शिकार नहीं कर पा रही थी. वो कहते थे कि 10 में से 9 मामलों में बाघ तभी आदमखोर बनता है जब वो जख्मी और एक आदे मामले में बाघ बूढ़ा हो जाने और अपने इलाके से खदेड़े जाने के बाद इंसानों का आसान शिकार करने पर मजबूर होता है.

(यह लेख पूर्व में छप चुका है)

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi