हर्षद मेहता, गुजरात का एक ऐसा नाम जिसने अपने जमाने में शेयर बाजार को हिला कर रख दिया था. करीब दो दशक पहले 1992 में हर्षद मेहता की कारगुजारियों की वजह से ही गुजरात चर्चा में आया था. हर्षद मेहता ने अपने तेज दिमाग का इस्तेमाल करके चढ़ते शेयर बाजार से खूब पैसा बनाया. शेयर बाजार का यह पहला घोटाला था, जिसने लोगों को दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर दिया. इस घपले का खुलासा टाइम्स ऑफ इंडिया की वरिष्ठ पत्रकार सुचेता दलाल ने किया था.
कैसे होता था गोलमाल ?
बैंकिंग सिस्टम की कमियों का फायदा उठाकर हर्षद मेहता ने बैंकिंग लेनदेन में गोलमाल किया था. सुचेता दलाल ने उस वक्त के अपने लेख में बताया था कि हर्षद मेहता का यह फर्जीवाड़ा कैसे काम करता है.
हर्षद मेहता रेडी फॉरवर्ड (आरएफ) डील के जरिए बैंकों से फंड उठाते थे. आरएफ डील के मायने शॉर्ट टर्म लोन से है. बैंकों को जब शॉर्ट टर्म फंड की जरूरत पड़ती है तो वे इस तरह का लोन लेते हैं. इस तरह का लोन कम से कम 15 दिनों के लिए होता है.
इसमें एक बैंक सरकारी बॉन्ड गिरवी रखकर दूसरे बैंकों को उधार देते हैं. रकम वापस करने के बाद बैंक अपना बॉन्ड दोबारा खरीद सकते हैं. इस तरह के लेनदेन में बैंक असल में सरकारी बॉन्ड का लेनदेन नहीं करते हैं. बल्कि बैंक रसीद जारी करते थे. इसमें होता ये है कि जिस बैंक को कैश की जरूरत होती है वह बैंक रसीद जारी करता था. यह हुंडी की तरह होता था. इसके बदले में बैंक लोन देते हैं. दो बैंकों के बीच यह लेनदेन बिचौलियों के जरिए किया जाता है. मेहता को इस तरह के लेनदेन की बारीकियों की जानकारी थी. बस फिर क्या! हर्षद मेहता ने अपनी पहचान का फायदा उठाते हुए हेरफेर करके पैसे लिए. फिर इसी पैसे को बाजार में लगाकर जबरदस्त मुनाफा कमाया.
उस दौरान शेयर बाजार में हर दिन चढ़ रहा था. कुछ जानकारोंं का यह भी कहना है कि तब आंख बंद करके किसी भी शेयर में पैसा लगाने का मतलब प्रॉफिट ही होता था. बाजार की इस तेजी का फायदा उठाने के लिए ही हर्षद मेहता ने हेरफेर किया.
स्टॉक्स में लगाने के लिए कहां से आता था पैसा?
हर्षद मेहता बाजार में ज्यादा से ज्यादा पैसा लगाकर मुनाफा कमाना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने जाली बैंकिंग रसीद जारी करवाई. इसके लिए उन्होंने दो छोटे-छोटे बैंकों को हथियार बनाया. बैंक ऑफ कराड और मेट्रोपॉलिटन को-ऑपरेटिव बैंक में अपनी अच्छी जानपहचान का फायदा उठाकर हर्षद मेहता बैंक रसीद जारी करवाते थे. इन्ही रसीद के बदले पैसा उठाकर वह शेयर बाजार में लगाते थे. इससे वह इंट्रा डे में प्रॉफिट कमाकर बैंकों को उनका पैसा लौटा देते थे. जब तक शेयर बाजार चढ़ता रहा, किसी को इसकी भनक नहीं पड़ी. लेकिन बाजार में गिरावट के बाद जब वह बैंकों का पैसा 15 दिन के भीतर नहीं लौटा पाए, उनकी पोल खुल गई. हर्षद मेहता के करतूतों का खुलासा होने के बाद ही शेयर बाजार के लिए रेगुलेटर की कमी महसूस हुई. इसी के बाद मार्केट रेगुलेटर सेबी का गठन हुआ.
अर्श से फर्श तक का सफर
हर्षद मेहता अपने जमाने के मशहूर स्टॉक ब्रॉकर थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह सिर्फ 40 रुपए लेकर मुंबई आए थे और कुछ साल के भीतर ही बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सबसे कामयाब ब्रोकर बन गए. अपने जमाने में उनके पास एक से बढ़कर एक कारें थी. एक चपरासी के बेटे की यह कामयाबी लोगों के लिए किसी कहानी से कम नहीं थी. लेकिन अप्रैल 1992 में हर्षद मेहता का खेल खत्म हो गया. उन पर 72 आपराधिक मामले और 600 से ज्यादा दीवानी मामले थे. उनका जुर्म साबित होने पर उन्हें जेल भेज दिया गया और 31 दिसंबर 2001 को जेल में ही उनकी मौत हो गई.
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