भारत की चटनियों में धनिए-पुदीने-मिर्च की हरी चटनी सबसे खास है. इसमें मौसम के अनुसार कच्चा आम भी शामिल कर लिया जाता है. वहीं इस इससे टक्कर लेती है गुड़, इमली-अमचूर, अदरक और मसालों से भरपूर थोड़ी मिठास वाली चटपटी सोंठ. दक्षिण भारतीय टिफिन में नारियल की चटनी का साथ देती है, टमाटर, प्याज की लाल चटनी और कभी-कभी हरी पुदीने-धनिए की चटनी. इन चटनियों की खास पहचान होती है सरसों, उड़द की दाल और करी पत्ते के तड़के से. वहीं कश्मीर की घाटी में अखरोट तथा मूली की ‘चेटिन’ दही के साथ पीसी जाती है, तो उत्तराखंड एवं पूर्वोत्तर में तिल और भांग के बीजों की चटनी पारंपरिक है.
साबूदाने की खिचड़ी का मजा दोगुना करती है मूंगफली की चटनी
महाराष्ट्र में लालमिर्च तथा लहसुन का ‘ठेचा’ सबसे लोकप्रिय तीखी चटनी है. वहीं, साबूदाने की खिचड़ी का मजा दोगुना करती है मूंगफली की चटनी. भारतीय खानपान में जो भूमिका चटनी की है वही विदेशी परंपरा में सॉस की है. हमारी समझ में बुनियादी अंतर यह है कि भारतीय चटनियां पीसी जाती हैं और कच्ची ही रहती हैं जबकि विदेशी सॉस पकाए जाते हैं.
टोमैटो सॉस को कुछ लोग ‘कैचप’ भी कहते हैं
हिंदुस्तान में ‘टमाटर का सॉस’ सबसे आम है, बड़े रेस्तरां से लेकर ढाबे, रेहड़ी, खोमचे पर इसकी बोतल नजर आती है. पकोड़े-समोसे से लेकर हैमबर्गर-पिज्जा का साथ यह निभाता है. टोमैटो सॉस को कुछ लोग ‘कैचप’ भी कहते हैं. खानपान के इतिहासकारों का मानना है कि यह उन चीनियों की ईजाद है, जो 19वीं सदी में अमेरिका पहुंचे और वहीं बस गए. इसका जायका चीनी व्यंजन ‘स्वीट एंड सॉअर', खट्टा-मीठा जैसा ही होता है. सिरका, चीनी, लहसुन और अदरक, टमाटर के सॉस को स्वादिष्ट बनाते हैं.
पूर्वी एशिया में सोया सॉस मसाला मिश्रण की तरह इस्तेमाल किया जाता है
‘मोमो’ के प्रेमियों को ‘चिली सॉस’ भी पराया नहीं लगता. देखने में सुर्ख इस सॉस में टमाटर नहीं रहते न चीनी की मिठास, यह भी चीनियों की ही देन है. लाल मिर्च और तेल के मेलजोल से यह तीखा सॉस बनता है. पूर्वी एशिया में सोया सॉस का इस्तेमाल नमक मिले मसाला मिश्रण की तरह किया जाता है. यह काला तथा सुनहरा दो तरह का होता है. फिश तथा ऑयस्टर सॉस की प्रतिष्ठा थाई भोजन में अधिक है. इसे चटनी कम मसाले की तरह ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.
‘वोस्टरशायर सॉस’ भारत में ब्रिटिश राज की याद ताजा कराता है
‘टबैस्को सॉस’ मेक्सिको की तीखी लाल जलापिनो मिर्चों से बनाया जाता है.‘पेरी-पेरी’ सॉस अफ्रीकी मूल की लाल मिर्च से बनता है, जो पुर्तगालियों के साथ गोवा पहुंची. ‘वोस्टरशायर सॉस’ भारत में ब्रिटिश राज की याद ताजा कराता है. इसके बारे में यह कहते हैं कि एक जहाज जब समुद्री तूफान में फंसा तो मसालों के काठ के बक्सों में और सिरके के पीपे में रखा सामान आपस में घुल मिल गया. बाद में जिसने भी इसे चखा वह इसका कायल हो गया. तभी से इसे बाकायदा व्यावसायिक तौर पर बनाया जाने लगा.
‘बार्बिक्यू सॉस’ गाढ़ी तरी की तरह इस्तेमाल किया जाता है
नाक से चढ़कर माथे तक पहुंचने वाली सरसों से तैयार मस्टर्ड सॉस के तीन अवतार होते हैं- फ्रेंच, इंग्लिश, और डिजोन सॉस. इसकी तुलना आप बंगाली खानपान की कासुंदी से कर सकते हैं. फ्राइड फिश के साथ सफेद रंग का ‘टार्टर सॉस’ दिया जाता है. ‘बार्बिक्यू सॉस’ गाढ़ी तरी की तरह इस्तेमाल किया जाता है और भुने तंदूरी जैसे व्यंजनों का रस बढ़ाता है. ‘मेयोनीज सॉस’ सैंडविच तथा हैमबर्गर के लिए अनिवार्य माना जाता है. इसे अंडे की जर्दी को तेल में तथा सिरके के साथ फेंट कर तैयार करते हैं.
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