आज महान अभिनेता ओम पुरी की पुण्यतिथि है. पिछले साल आज ही दिन वो अचानक दुनिया छोड़कर चले गए. उनका सिनेमाई करियर किसी करिश्मे से कम नहीं है. संघर्षों के मुकाबले कामयाबी की लंबी लकीर खींचने वाले ओम पुरी की कहानी.
जब वो ढाई तीन साल के थे तो उन्हें चारपाई से बांध दिया गया था इसलिए नहीं कि वो कोई शरारत कर रहे थे बल्कि इसलिए कि उन्हें चेचक निकली हुई थी. खैर, चेचक का सीधा रिश्ता तो उनके ‘लुक्स’ से था.
चेचक से इतर भी जिस कलाकार को घर परिवार से लेकर खाने, पीने, पढ़ने, लिखने हर बात के लिए संघर्ष करना पड़ा हो उस कलाकार का संघर्ष कम ही लोग जानते हैं. ऐसा इसलिए नहीं कि उसके संघर्षों की दास्तान छुपी हुई है बल्कि ऐसा इसलिए क्योंकि उसने अपने संघर्षों की दास्तान से कहीं लंबी लकीर अपनी कामयाबी की दास्तान की खींच दी.
उसने दुनिया भर में भारतीय सिनेमा को एक अलग पहचान दिलाई. उसने तमाम नामी गिरामी लोगों के साथ फिल्में की. उसने इस छवि को तोड़कर नहीं बल्कि चकनाचूर करके रख दिया कि हीरो बनने के लिए ‘चॉकलेटी’ चेहरे का होना बहुत जरूरी है. ये भी अलग बात है कि उससे पहले या उसके बाद ये ‘फॉर्मूला’ शायद ही किसी और अभिनेता पर लागू हुआ हो.
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आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए आपको वो अनसुने किस्से सुनाते हैं जो उनके अभिनेता बनने से पहले के हैं. ये किस्से उनकी मशहूरियत के पहले के हैं. चलिए आपको उनके बचपन से लेकर रूपहले पर्दे पर पहुंचने से पहले की कहानी बताते हैं.
खराब बचपन का दर्द
ओम पुरी के पिता रेलवे कर्मचारी थे, मां घरेलू महिला. मां छुआछूत बुरी तरह मानती थीं. उनकी हालत ऐसी थी कि अगर घर से निकल रही हैं और बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो वो कहीं नहीं जाती थीं. अगर घर से बाजार जा रही हैं और ऊपर से कहीं पानी की कुछ छींटें पड़ गईं तो वो मान लेती थीं कि वो गंदा पानी ही होगा. फिर वो घर लौट आती थीं. नहाती थीं, अपनी धोती को साफ करती थीं.
इस स्वभाव का असर ये हुआ कि ओम पुरी को दोस्तों के साथ खेलने का मौका कम ही मिलता था. ओम पुरी के खेलने की जगह थी ट्रेन का इंजन. उनके बचपन का ट्रेन से गहरा रिश्ता है.
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खेलकूद से अलग रेलवे इंजन का एक और फायदा था. ओम पुरी अधजले कोयले घर लाते थे. इसके लिए एक छोटे से बच्चे के संघर्ष को समझना जरूरी है. वो पहले कोयले को बड़ी मेहनत से नीचे गिराते थे. फिर उसे तोड़ते थे और तब घर लाते थे. इस पूरी प्रक्रिया में जलने और चोट लगने दोनों का खतरा रहता था. ये अलग बात है कि ओम पुरी को कभी कोई चोट नहीं लगी.
एक रोज पिता को लगा कि उन्हें बेटे को अपने साथ ले जाना चाहिए तो वो साथ लेकर गए. ओम पुरी की उम्र यही कोई 6 साल रही होगी. पिता जी काम पर चले जाते थे ओम पुरी अकेले घर में रहते थे. एक रात पिता जी को आने में देर हो गई. तब तक ओम पुरी सो गए थे. दुनिया भर के जतन करने के बाद भी ओम पुरी की नींद नहीं खुली. अगले रोज से नियम बना कि पिता जी जब जाएंगे और अगर ओम को नींद आ रही होगी तो वो अपने पैर में एक रस्सी बांध कर उसका एक सिरा खिड़की से बाहर फेंक देंगे.
इसी दौरान ओम पुरी के पिता जिस रेलवे स्टोर में काम करते थे वहां से सीमेंट की 15-20 बोरियां चोरी हो गईं. पुलिस ने इस चोरी के आरोप में उनके पिता जी को गिरफ्तार कर लिया. रेलवे वालों ने धमकी देकर घर खाली करा लिया.
परिवार के लिए वो बहुत बुरा वक्त था. बड़े भाई ने कुली का काम शुरू कर दिया और ओम पुरी एक चायवाले के यहां काम करने लगे. चायवाले से पैसे तो मिलते थे लेकिन उसकी ओम की मां पर बुरी नजर थी. मां ने उससे बचने के तरीके निकाले तो उसने ओम पुरी को ही काम से निकाल दिया.
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फिर किसी तरह जिरह कर के ओम पुरी के पिता को चोरी के आरोप से मुक्त किया गया. उनके पास वकील करने के पैसे तो थे नहीं लिहाजा उन्होंने ना सिर्फ अपना केस खुद ही लड़ा बल्कि जज साहब को ये दलील दी कि वो स्टेशन पर चलकर मुआयना कर लें कि क्या एक अकेले व्यक्ति के लिए 15-20 बोरी सीमेंट अकेले उठाकर लाइन पार कर चोरी करना संभव भी है या नहीं. भटिंडा दरअसल बड़ा जंक्शन हुआ करता था. इसी दलील के आधार पर उन्हें बरी किया गया.
ननिहाल में परवरिश
ओम पुरी ननिहाल पक्ष से मजबूत थे. मामा ने पढ़ने के लिए बुला भी लिया था. जिंदगी पटरी पर आने लगी थी. लेकिन एक रोज ओम पुरी के पिता जी का मामा से झगड़ा हो गया. मामा ने गुस्से में ओम पुरी को वापस भेजने का फैसला कर लिया. ओम पुरी भी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए इतने दृढ़ थे कि उन्होंने घर जाने की बजाए स्कूल में रहना शुरू कर दिया. प्रिसिंपल को पता चला तो बहुत डांट पड़ी लेकिन एक होनहार बच्चे की कहानी सुनकर फिर उन्हीं प्रिंसिपल ने ओम पुरी की पढ़ाई के लिए इंतजाम भी किया. मामा और पिताजी के बीच झगड़े की कहानी भी दिलचस्प है.
ये झगड़ा इसलिए हुआ था कि ओम पुरी के पिता जी को लगता था कि उनकी पत्नी यानी ओम जी की मां को भी पारिवारिक संपत्ति का हिस्सा मिलना चाहिए. इस लड़ाई के चक्कर में एक बार ओम पुरी को उनके पिता ने एक करारा थप्पड़ भी जड़ा था.
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इन मुश्किल रास्तों से निकलकर ओम पुरी कॉलेज पहुंचे. नाटक का चस्का तब तक लग चुका था. छोटी सी एक नौकरी भी मिल गई थी. एक बार चंडीगढ़ के टैगोर हॉल में ओम पुरी का नाटक था. उन्होंने नाटक के लिए छुट्टी मांगी. छुट्टी नहीं मिली तो गुस्से में वो नौकरी छोड़ दी. उसके बाद उन्होंने कॉलेज की लैबोरेट्री में नौकरी की. कुछ रोज बाद उन्हें सरकारी नौकरी भी मिल गई, जहां उनकी तनख्वाह 250 रुपए थी.
ओम पुरी के दिमाग में एनएसडी यानी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का भूत यहीं से लगा था. उन्होंने अपनी इस ख्वाहिश को पूरा किया. यहीं उनकी मुलाकात एक और महान अभिनेता नसीरूद्दीन शाह से हुई. एनएसडी की पढ़ाई के बाद नसीर ने उन्हें फिल्म इंस्टीट्यूट के बारे में बताया. ओम पुरी की अगली मंजिल वहीं थी. उस मंजिल को पाने के बाद का सफर भारतीय फिल्म के इतिहास में दर्ज है. काश! वो सफर अभी चल रहा होता तो उसमें कितने जरूरी और बड़े मुकाम जुड़ते चले जाते.
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