कई सालों की गुलामी के बाद देश को आजाद हुए छह महीने भी नहीं हुए ही हुए थे. देश आजादी की खुशी के साथ-साथ विभाजन और साम्प्रदायिक दंगों का का दंश भी झेल रहा था.
उन दिनों बिड़ला हाउस में रह रहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 30 जनवरी 1948 को सरदार पटेल से मुलाकात की. मुलाकात लंबी चली और वह सांध्यकाल की अपनी प्रार्थना सभा के लिए थोड़े लेट भी हुए. मनु बेन और आभा चटर्जी के साथ उस शाम पांच बजकर 17 मिनट पर गांधी जी प्रार्थना सभा में पहुंचे. वहीं मौजूद लोगों की भीड़ में खाकी कोट पहले एक शख्स ने पहले बापू को प्रणाम किया. मनु बेन ने उसे रोकने की कोशिश तो उसने धक्का देकर उन्हें गिरा दिया और फिर एक पिस्टल निकालकर एक के बाद एक तीन गोलियां 78 साल के जर्जर राष्ट्रपिता पर दाग दीं.
जीवन भर सत्य और अहिंसा के जरिए दुनिया की सबसे बड़ी ताकत यानी ब्रिटिश राज से लड़कर उसे हराने वाले मोहनदास करमचंद गांधी एक हिंसक हत्यारे की गोलियों का शिकार बनकर इस दुनिया से रुखसत हो गए. गांधी जी पर गोलियां दागने वाले शख्स को तुरंत दबोच लिया गया हालांकि उसने भागने की कोशिश भी नहीं की. मुकदमा चला और आज ही के दिन यानी 15 नंबवर 1949 को उसे तब के पंजाब और अब के हरियाणा की अंबाला जेल में फांसी भी दे दी गई. गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के इस कृत्य से उस वक्त पूरा देश सदमे में था.
कौन था नाथूराम गोडसे?
19 मई 1910 को ब्रिटिश राज की बॉम्बे प्रेजीडेंसी के पुणे जिले में जन्मे नाथूराम गोडसे ने अपने 38 साल के जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिसकी वजह से उसको याद किया जाए. लेकिन 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता की हत्या करके उसका नाम भी गांधी के नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया. शुरुआती दिनों से ही गोडसे का झुकाव दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर था.
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लड़कियों की तरह बीता था नाथूराम का बचपन
कहा जाता है कि नाथूराम बेहद कुंठित सोच का व्यक्ति था जिसकी वजह उसका नाम और उसका लालन-पालन था. नाथूराम गोडसे का असली नाम रामचंद्र विनायक गोडसे था. नाथूराम के तीन भाइयों की मौत बेहद कम उम्र में हो गई थी. उसके माता पिता ने अंधविश्वास के चलते नाथूराम को लड़कियों को तरह पालना शुरू किया. इस वजह से उसकी नाक में नथ भी पहनाई गई थी और इसी के चलते उसका नाम भी नाथूराम पड़ गया.
पत्रकार एजाज अशरफ ने अपने एक लेख में इस बात की चर्चा करते हुए लिखा है कि इस वजह शायद नाथूराम के मन में ऐसी कुंठा पैदा हो गई थी जिसे वह हर हाल में मिटाना चाहता था, ऐसे में जब राष्ट्रपिता की हत्या साजिश रची गई तो नाथूराम से बेहतर मानसिक रूप से तैयार हमलावर कोई और नहीं हो सकता था.
आखिर गोडसे ने राष्ट्रपिता को क्यों मारा!
आजादी से पहले का यह ऐसा वक्त था जब देश में जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग शुरू कर दी थी. देश में सांप्रदायिक माहौल खराब हो रहा था. गांधी जी अमन और शांति की पुरजोर कोशिश में लगे थे जिसके चलते दक्षिणपंथी संगठन उनपर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप भी लगा रहे थे. देश आजाद हुआ और विभाजन के बाद पाकिस्तान भी बना. दक्षिणपंथी प्रोपेगेंडा इस कदर फैलाया जा रहा था कि गांधी जी को पाकिस्तान के पैदा होने और देश के बंटवारे का जिम्मेदार ठहराया जाने लगा था. ऐसे माहौल में गांधी जी की हत्या की भूमिका तैयार की गई.
नाथूराम के भाई और इस हत्याकांड के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि एक बार गांधी जी के पुत्र देवदास गांधी नाथूराम से मिलने जेल पहुंचे थे. किताब के मुताबिक नाथूराम ने उनसे कहा था कि तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है. कृपया मेरा यकीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई खराब भाव. जब देवदास ने उससे गांधीजी की हत्या की वजह पूछी तो उसने जवाब दिया ‘सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक वजह से’. नाथूराम ने देवदास से अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा लेकिन पुलिस ने उसे ऐसा नहीं करने दिया.
बड़ी साजिश का मोहरा था नाथूराम!
गांधी जी की हत्या में नौ लोगों पर मुकदमा चला. नाथूराम के साथ-साथ उसके सहयोगी नारायण आप्टे को भी फांसी की सजा दी गई और बाकी लोगों को अलग-अलग वर्षों का कारावास. लेकिन गांधी जी की हत्या की साजिश कितने पीछे तक जाती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि जिस पिस्टल से बापू पर तीन गोलिया बरसाई गईं उसके वास्तविक मालिक का पता तक नहीं लग सका.
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नाथूराम ने गांधी जी की हत्या 1934 में बनी 9 एमएम की ऑटोमैटिक बरेटा पिस्टल से की थी. इटली के तानाशाह मुसोलिनी की सेना के एक अफसर की यह पिस्टल दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका में, ब्रिटिश फौज के सामने इटली के आत्मसमर्पण के बाद ब्रिटिश सेना के भारतीय अधिकारी वीवी जोशी के पास आई. वह ग्वालियर में सिंधिया राजघराने के सैन्य अधिकारी थे वहां से यह पिस्टल एक लोकल आर्म्स डीलर जगदीश गोयल के पास पहुंची, जहां से इसे दंडवते ने खरीदा और होम्योपेथी के डॉक्टर परचुरे के घर पर सात कारतूसों के साथ गोडसे के हवाले किया.
यह पिस्टल किस तरह जगदीश गोयल के पास पहुंची यह बात अब तक एक रहस्य बनी हुई है. पूरी दुनिया को हिला देने वाली इस हत्या के बाद गोडसे ने अदालत में जो कबूलनामा दिया था उसे भी प्रकाशित करने पर रोक लगा दी गई थी. नाथूराम के बयान पर यह रोक अब तक बरकरार है.
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बहरहाल एक व्यक्ति के रुप में नाथूराम गोडसे को फांसी पर चढ़े आज 68 साल हो गए हैं लेकिन एक विकृत मानसिकता के तौर पर गोडसे समाज के किसी ना किसी हिस्से में हमेशा जिंदा रहता है. ऐसी विकृत मानसिकता जो इस देश के राष्ट्रपिता को ही लील गई.
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